बुधवार, 3 अक्टूबर 2018

जैसलमेर बुजूर्ग बने सलाहकार, युवाओं को दे मौका भाजपा के लिए नया युवा चेहरा रहेगा फायदेमंद

जैसलमेर बुजूर्ग बने सलाहकार, युवाओं को दे मौका

भाजपा के लिए नया युवा चेहरा रहेगा फायदेमंद

भैरूसिंह भाटी तेजपाला

जैसलमेर। युवा, युवा कहकर मात्र युवाओं को लुभाना मात्र ठगने जैसा है। हां अगर चुनाव में भी युवाओं को मौका दे तो फिर बात बनती है। वर्तमान में जिले की परिस्थिति को देखते हुए पूर्व विधायक व विधायक पर दांव खेलना भाजपा को महंगा पड़ सकता है। दोनो नेताओं को जैसलमेर की जनता ने सेवा का मौका दे दिया है और परख भी लिया है। अब उनको युवाओं का सलाहकार बनकर युवा को मौका देना चाहिए। अब युवाओं का गाईड बनकर जिले के चहुंमुखी विकास में भागीदारी बनना चाहिए। पर कुर्सी का मोह नहीं छूट रहा है। दोनों द्वारा वही रटी-रटायी बात सामने की जाती है। जिले के विकास का कोई विजन नहीं, अकाल का दंष झेलने वाले इस अति पिछड़े जिले के लिए कोई विषेष तोहफा नहीं। युवाओं को रोजगार मिले। खनिज, उद्योग, बिजली, पानी, षिक्षा आदि पर बात हो। कुछ नया कर गुजरने की तमन्ना रखने वाला जैसलमेर को तेज तर्रार युवा लीडर की जरूरत है। मात्र एक जमीन आवंटन वो भी कभी नहरी या बारानी की टर्र-टर्र रट कर बैठे है। मजे की बात यह है कि इन कठपुतली नेताओं के कारण जिले की हजारों बीघा जमीन बाहरी लोगों को आवंटन कर दी गई। तब इन नेताओं को किसानों का हक दिखाई नहीं दे रहा था। अब जब चुनाव नजदीक है तो टिकट पाने के लिए कभी बारानी-कभी नहरी भूमि आवंटन की आड़ लेकर किसानों के हक को ढाल बनाया जा रहा है। जबकि हकीकत यह है कि धरतीपुत्र की परेषानी व समस्याओं को कोई नहीं सुन रहा है। बस किसानों के नाम पर कुर्सी पाने की लालसा रखने वाले नेताओं को जनता भी मुंह तोड़ जवाब देने के मूड में दिखाई दे रही है। अब मतदाता की भी सोच बहुत ज्यादा बदल चुकी है। मतदाता बहुत ही समझदार है। किसान, मजदूर, बेरोजगार, गांव के गरीब, आर्थिक रूप से पिछड़े व्यक्तियों की उन्नति व उनको आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए मदद करने वाले युवा को इस बार पार्टी को मौका देना चाहिए।

किस्सा कुर्सी का

कुर्सी का मोह छूट नहीं रहा है। कुर्सी पानी की लालसा में पार्टी लाईन को भी दरकिनार कर देते है। सब को अपने स्वार्थ की पड़ी है। उनको बस कुर्सी चाहिए। जनता के सुख-दुःख में भागीदार बनने के बजाय अपनी कुर्सी बचाने व पाने के लिए किसी भी हद तक चले जाते है। इनका स्वाभिमान, कर्तव्य, संकल्प, गौरव, परोपकारी मन बरसाती मेढ़क की तरह है। जैसे ही चुनाव नजदीक आते है टर्र-टर्र शुरू कर देते है। आखिर चुनाव के समय ही  गौरव, संकल्प और स्वाभिमान क्यों याद आता है, जनता तो पांच साल तक वही रहती है वही रहेगी, उनका गौरव कब आएगा, उनके लिए संकल्प क्यों नही लिया जाता,जनता का भी स्वाभिमान है उनको हर वक्त तार तार किया जाता है उसका क्या?

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