बाड़मेर तेल क्षेत्रों में छा रही हरीतिमा
वर्षा की कमी वाले क्षेत्रों में भी जल स्त्रोत देंगे वन्य जीवों को सहारा
परंपरागत कौशल और नवाचारों का मेल ला रहा सुखद बदलाव
बाड़मेर, 23 सितम्बर। वर्षा जल संरक्षण के लिए थार रेगिस्तान में अपनाए जाने वाले परंपरागत तरीकों और ग्रामीणों के साथ नई तकनीक को अपना कर किए जा रहे नवाचारों के चलते बाड़मेर के तेल-गैस उत्पादन क्षेत्रों में हरियाली की चादर छा रही है। जिले में इस वर्ष कमजोर मानसून के चलते जहाँ किसानों और पशुपालकों के माथे पर चिंता की लकीरें छाई हुई हैं, वहीं नवाचारों से सम्बंधित इन क्षेत्रों में पुनर्जीवित नाड़ियां और खडीन वन्य जीवों को जीवनदायी सहारा देंगे।
बाड़मेर जिले की साढ़े छह सौ से अधिक वर्षा जल संचय और संभरण संरचनाओं को पुनर्जीवित करने के प्रयासों का लाभ न्यून वर्षा के बावजूद दृष्टिगोचर होने वाला है। एक या दो बारिश वाले क्षेतों में भी वर्षा जल की अमृत बूंदों को सहेजे ये नाड़ियां वन्यजीवों के लिए सहारा साबित होंगी।
केयर्न ऑयल एंड गैस के सहयोग से ग्रम्मीणों ने जिले की 15 नाड़ियों का पुनरुद्धार किया है। सामान्य वर्षा के वर्ष में इन नाड़ियों की सहायता से 50 लाख घनमीटर जल का संचय संभव हो सकेगा। मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन योजना में सहभागिता निभाते हुए बाप नाड़ी, उत्तरलाई नाड़ी के अलावा भाडखा-बोथिया और शिव में इन कार्यों को किया गया है।
जिन क्षेत्रों में भू-संरचना उपयुक्त है वहाँ खडीनों के माध्यम से वाटर हार्वेस्टिंग कार्यक्रम को आगे बढ़ाया जा रहा है। इनकी संख्या भाडखा, बोथिया और गुडा मालानी क्षेत्र में अधिक है। कुल 630 खडीन संरचनाओं को ग्रामीणों के साथ मिलकर साकार किया गया है। सामान्य वर्षाकाल गुजरने के पश्चात् इनसे छह माह से अधिक तक इनका उपयोग हो सकेगा।
थार के किसानों को कृषि नवाचारों से जोड़ कर उनके खेतों में हरियाली और परिवार में बढ़ी हुई आय को लाया जा रहा है। वाड़ी प्रोजेक्ट के तहत 1160 किसानों को लाभान्वित किया गया है। मृदा जाँच और उपलब्ध सीमित जल के अनुसार बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति से उन्हें जोड़ा गया है।
आज इन खेतों में छाई हरीतिमा विकास की कहानी कह रही है। इन किसानों को बेर गोला, अनार और गूंदे एक लाख पौधे वितरित कर समय-समय पर उनके रख रखाव और बढ़ोतरी से सम्बंधित प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है। इससे किसानों की सालाना आय में चालीस हज़ार रूपए तक की बढ़ोतरी हुई है।
जीरो डिस्चार्ज लक्ष्य को पूरा करने वाले मंगला प्रोसेसिंग टर्मिनल के वाटर पॉइंट्स भी जैव-विविधता को बढ़ाने में मददगार साबित हो रहे हैं। इन जल क्षेत्रों के आसपास किंगफिशर, कोयल, गौरैया, चील आदि का प्रवास देखा जा सकता है। भाग्यम टर्मिनल के वाटर पॉइंट को 'भाग्यम बर्ड सैंक्चुअरी" के नाम से विकसित किया जा रहा है।
एमजीएस विश्वविद्यालय बीकानेर में पर्यावरण विभाग के हैड डॉ अनिल कुमार छंगाणी ने प्रोजेक्ट शुरुआत से अब तक विभिन्न दौरों और सर्वेक्षण के बाद बाड़मेर के तेल क्षेत्रों में हुए पर्यावरण प्रयासों को 'आदर्श बेंचमार्क' की संज्ञा दी है।
ग्रीन बेल्ट विकास ने संक्रिया क्षेत्र के 33 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र में हरियाली की चादर बिछा दी है। इन प्रयासों का असर आसपास के पर्यावरण पर भी सकारात्मक रूप में हुआ है। हाल ही में विभिन्न सरकारी एजेंसियों ने बाड़मेर तेल क्षेत्रों के पर्यावरण मापदंडों पर ऑडिट के पश्चात यहाँ की वायु और भू जल गुणवत्ता को सुरक्षित पाया।
आरजे ब्लॉक क्षेत्र में 300 से अधिक वनस्पतियों और जीवों की प्रजातियों के साथ समृद्ध जैव विविधता है। इन्हें संरक्षित करने का प्रयास प्रयास बाड़मेर के "गंगाली वन क्षेत्र" में किया गया था और जमीन के पानी को टैप करने में सफल रहा। जंगली जानवरों के लिए पूरी तरह से पीने के पानी के भंडारण के लिए "गजलर" नामक एक छोटा पेयजल तालाब वन क्षेत्र में बोरवेल से लगभग 200 मीटर दूर विकसित किया जाता है। यह सुविधा बाड़मेर जिले में गंगाली के आरक्षित वन क्षेत्र में स्थित है। जून 2017 में वाटर पॉइंट की शुरुआत के बाद जंगली जानवरों और पक्षी प्रजातियों को यहाँ पर स्पॉट किया जा रहा है।
वर्षा की कमी वाले क्षेत्रों में भी जल स्त्रोत देंगे वन्य जीवों को सहारा
परंपरागत कौशल और नवाचारों का मेल ला रहा सुखद बदलाव
बाड़मेर, 23 सितम्बर। वर्षा जल संरक्षण के लिए थार रेगिस्तान में अपनाए जाने वाले परंपरागत तरीकों और ग्रामीणों के साथ नई तकनीक को अपना कर किए जा रहे नवाचारों के चलते बाड़मेर के तेल-गैस उत्पादन क्षेत्रों में हरियाली की चादर छा रही है। जिले में इस वर्ष कमजोर मानसून के चलते जहाँ किसानों और पशुपालकों के माथे पर चिंता की लकीरें छाई हुई हैं, वहीं नवाचारों से सम्बंधित इन क्षेत्रों में पुनर्जीवित नाड़ियां और खडीन वन्य जीवों को जीवनदायी सहारा देंगे।
बाड़मेर जिले की साढ़े छह सौ से अधिक वर्षा जल संचय और संभरण संरचनाओं को पुनर्जीवित करने के प्रयासों का लाभ न्यून वर्षा के बावजूद दृष्टिगोचर होने वाला है। एक या दो बारिश वाले क्षेतों में भी वर्षा जल की अमृत बूंदों को सहेजे ये नाड़ियां वन्यजीवों के लिए सहारा साबित होंगी।
केयर्न ऑयल एंड गैस के सहयोग से ग्रम्मीणों ने जिले की 15 नाड़ियों का पुनरुद्धार किया है। सामान्य वर्षा के वर्ष में इन नाड़ियों की सहायता से 50 लाख घनमीटर जल का संचय संभव हो सकेगा। मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन योजना में सहभागिता निभाते हुए बाप नाड़ी, उत्तरलाई नाड़ी के अलावा भाडखा-बोथिया और शिव में इन कार्यों को किया गया है।
जिन क्षेत्रों में भू-संरचना उपयुक्त है वहाँ खडीनों के माध्यम से वाटर हार्वेस्टिंग कार्यक्रम को आगे बढ़ाया जा रहा है। इनकी संख्या भाडखा, बोथिया और गुडा मालानी क्षेत्र में अधिक है। कुल 630 खडीन संरचनाओं को ग्रामीणों के साथ मिलकर साकार किया गया है। सामान्य वर्षाकाल गुजरने के पश्चात् इनसे छह माह से अधिक तक इनका उपयोग हो सकेगा।
थार के किसानों को कृषि नवाचारों से जोड़ कर उनके खेतों में हरियाली और परिवार में बढ़ी हुई आय को लाया जा रहा है। वाड़ी प्रोजेक्ट के तहत 1160 किसानों को लाभान्वित किया गया है। मृदा जाँच और उपलब्ध सीमित जल के अनुसार बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति से उन्हें जोड़ा गया है।
आज इन खेतों में छाई हरीतिमा विकास की कहानी कह रही है। इन किसानों को बेर गोला, अनार और गूंदे एक लाख पौधे वितरित कर समय-समय पर उनके रख रखाव और बढ़ोतरी से सम्बंधित प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है। इससे किसानों की सालाना आय में चालीस हज़ार रूपए तक की बढ़ोतरी हुई है।
जीरो डिस्चार्ज लक्ष्य को पूरा करने वाले मंगला प्रोसेसिंग टर्मिनल के वाटर पॉइंट्स भी जैव-विविधता को बढ़ाने में मददगार साबित हो रहे हैं। इन जल क्षेत्रों के आसपास किंगफिशर, कोयल, गौरैया, चील आदि का प्रवास देखा जा सकता है। भाग्यम टर्मिनल के वाटर पॉइंट को 'भाग्यम बर्ड सैंक्चुअरी" के नाम से विकसित किया जा रहा है।
एमजीएस विश्वविद्यालय बीकानेर में पर्यावरण विभाग के हैड डॉ अनिल कुमार छंगाणी ने प्रोजेक्ट शुरुआत से अब तक विभिन्न दौरों और सर्वेक्षण के बाद बाड़मेर के तेल क्षेत्रों में हुए पर्यावरण प्रयासों को 'आदर्श बेंचमार्क' की संज्ञा दी है।
ग्रीन बेल्ट विकास ने संक्रिया क्षेत्र के 33 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र में हरियाली की चादर बिछा दी है। इन प्रयासों का असर आसपास के पर्यावरण पर भी सकारात्मक रूप में हुआ है। हाल ही में विभिन्न सरकारी एजेंसियों ने बाड़मेर तेल क्षेत्रों के पर्यावरण मापदंडों पर ऑडिट के पश्चात यहाँ की वायु और भू जल गुणवत्ता को सुरक्षित पाया।
आरजे ब्लॉक क्षेत्र में 300 से अधिक वनस्पतियों और जीवों की प्रजातियों के साथ समृद्ध जैव विविधता है। इन्हें संरक्षित करने का प्रयास प्रयास बाड़मेर के "गंगाली वन क्षेत्र" में किया गया था और जमीन के पानी को टैप करने में सफल रहा। जंगली जानवरों के लिए पूरी तरह से पीने के पानी के भंडारण के लिए "गजलर" नामक एक छोटा पेयजल तालाब वन क्षेत्र में बोरवेल से लगभग 200 मीटर दूर विकसित किया जाता है। यह सुविधा बाड़मेर जिले में गंगाली के आरक्षित वन क्षेत्र में स्थित है। जून 2017 में वाटर पॉइंट की शुरुआत के बाद जंगली जानवरों और पक्षी प्रजातियों को यहाँ पर स्पॉट किया जा रहा है।
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