शुक्रवार, 1 सितंबर 2017

गोरखपुर के बाद अब बांसवाड़ा में 51 दिनों मे 81 नवजात शिशुओं की मौत, 4 की हालत अब भी नाजुक

गोरखपुर के बाद अब बांसवाड़ा में 51 दिनों मे 81 नवजात शिशुओं की मौत, 4 की हालत अब भी नाजुक


बांसवाड़ा। राजस्थान के आदिवासी बाहुल क्षेत्र बांसवाडा में प्राय गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था में समुचित पोषाहार नहीं मिलने से उनके बच्चे अत्यधिक कमजोर पैदा हो रहे हैं ओर इसके बाद इनमें से कई नवजात बच्चे मौत का शिकार हो रहे हैं। बांसवाडा जिले के राजकीय महात्मा गांधी चिकित्सालय मे बीते 53 दिनों मे ऐसे 81 नवजात बच्चों की दुनिया मे कदम रखने के चन्द दिनों बाद ही मौत हो गई। इनमें 50 बच्चे जुलाई माह में और 31 बच्चे 22 अगस्त तक मौत के मुंह मे जा चुके हैं।




ये मृतक नवताज शिशु 1 से 20 दिनों की अवधि उम्र के थे। पिछले आठ माह के आंकडों की बात कि जाए तो यहां पर जुलाई माह मे एकाएक मौतों का आंकडा काफी हद तक ऊपर बढ़ गया। यही क्रम अगस्त 2017 तक दिखाई दिया है। इससे पहले 6 माह मे जनवरी में सबसे ज्यादा 33 व जून में 21 बच्चों की सबसे कम मौतें हुई।




शिशु रोग विशेषज्ञ डाक्टर रंजना चरपोटा ने बताया कि मौतों के पीछे प्रमुख कारण बच्चोें का कमजोर पैदा होना, प्रसव से पहले गर्भवती को उचित मात्रा में पोषक नहीं मिलना तथा अधिकांश बच्चे जो अस्पताल के एसएनसीयू वार्ड मे इलाज के लिए पहुुंचते हैं, उनका वजन डेढ़ किलो से भी काफी हद तक कम पाया गया है। प्रसव के पूर्व प्रसुताओं मे हिमोग्लोबिन भी कम होता है और प्रसव पूर्व देखभाल सही नहीं होने के कारण प्रसव भी समय से पूर्व हो रहे हैं। इस स्थिति मे बच्चे के बचने की गुजाईश कम हो जाती है।




देखभाल में लापरवाही :

ग्रामीण अंचलों मे आशा सहयोगिनी आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और एएनएम के माध्यम ये गर्भवती के स्वास्थ्य की उचित देख भाल नहीं होना भी मौत का एक कारण है। इससे प्रसुताओं मे कम हिमोग्लोबिन का पता नहीं चल पाता। प्रसव पूर्व आयरन फॉलिक एसीड की गाोलियां नहीं दिए जाने के कारण रक्त मे कमी पाई जा रही है।




ये भी है कारण :

जून तक मृत्यु दर जिला अस्पताल में आंकी जा रही थी, लेकिन इसके बाद मिशन पुकार के कारण सक्रियता बढ़ी, निगरानी जागरूगता बढ़ी तो गंभीर प्रसुताएं रैफर होकर ज्यादा आने लगी। इससे भी आंकडा बढ़ा है।




मिट्टी खाती हैं गर्भवती महिलाएं :

ग्रामीण क्षेत्रों मे ज्यादातर गर्भवती महिलाएं केल्शियम की गोलियां भी समुचित मात्रा मे नहीं ले पाती है। ऐसे मे केल्शियम की कमी होने पर वे घर के लेपे हुए आंगन की मिटटी कुरेद कर सेवन कर केल्शियम की कमी को पुरा करने का प्रयास करती है। इससे जन्म लेने वाले नवताज शिशु में कीड़े पड़ जाते हैं। ऐसे में बच्चे प्राय बीमार हो जाते हैं और कई बार कमजोरी के कारण मौत के मुं​ह में समा जाते हैं।









चार बच्चों की है हालत खराब :

नवजात शिशु के परिजन रामलाल ने बताया कि हमारे बच्चे को सांस नहीं ली जा रही है। इसलिए डॉक्टर ने बाहर ले जाने के लिए बोला है, लेकिन हमारे पास पैसे की व्यवस्था नहीं होने के कारण हम ऐसा नहीं कर सकते। भगवान जो करें वो सही। इसी तरह अभी अस्पताल मे चार नवजात शिशु और मौत के मुंह मे जाने लिए खड़े हैं। वहीं डाक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए हैं। बाहर ले जाओ, यहां पर कोई इलाज नहीं हो रहा है।




परिजनों से पहले ही लिखवाकर ले लेते हैं डॉक्टर :

खास बात तो ये देखने मिलती है कि अस्पताल मे प्रसुताओं को भर्ती करने वाले टिकिट पर उनके परीजनों के हाथ से डाक्टर 'नवजात शिशु को इलाज कराने बाहर ले जाना चाहते हैं' ये लिखवा देते हैं और इलाज करते हैं, ताकि इलाज के दौरान बच्चे की मौत हो जाए तो परीजनों की जिम्मेदारी बता दी जाती है। हालांकि लिखने के लिए परिजन मजबूर रहते हैं, क्योकि डॉक्टर दवा नहीं करेगा, ऐसा मानकर ये आदिवासी लोग लिख देते हैं।

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