बाड़मेर। सभी जीवों को जीने का अधिकार है- आचार्य श्री
बाड़मेर। जहां नेमी के चरण पड़े गिरनार की धरती है... भजन के साथ आचार्य देेवेश श्री जिनपीयुषसागरसूरिजी म.सा ने चातुर्मास का मंगलकारी मंगलाचरण के साथ ही स्थानीय जिनकांतिसागरसूरि आराधना भवन में उपस्थित जन समुदाय को भावविभोर कर दिया।
प्रखर प्रवचनकार मुनि सम्यकरत्नसागरजी महाराज ने सर्वमंगलमय वर्षावास 2017 के अन्तर्गत गर्भपात या गर्भकल्याणक जैसे विषय पर जिनकांतिसागरसूरि आराधना भवन में उपस्थिति जनसमुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि इस 21वीं सदी में मानव जन्म प्राप्त करना अत्यन्त दुष्कर है। मैत्री करूणा, प्रेम, जीवदया, प्राणीमात्र के प्रति करूणा आदि के भाव भगवान नेमीनाथ जीवन चरित्र को सुनने व समझने पर प्राप्त होते है। इन्हीें आत्मगुणों की वजह से तीर्थंकर परमात्मा के च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान व निर्वाण कल्याणक मनाते है लेकिन उनके आदर्शों को गौण करके मात्र आयोजनों व प्रयोजनों से मानव जीवन सार्थ व सफल नहीं हो सकता है। 24 तीर्थंकरों के 121 कल्याणक इस आर्य भूमि में पर घटित हुए आर्यभूमि में आचार-विचार व आचरण की शुद्धता होने की वजह से उनका जन्म आर्य भूमि पर हुआ। अनार्य भूमि में ये सब व्यवस्था नहीं है। आज कोई व्यक्ति अनार्य देशों में जाकर वहां की व्यवस्थाएं देखकर आर्यदेश में आकर आर्यदेश की व्यवस्थाओं में खामियां निकालता है तो समझना लेना कि भवान्तर में उसका जन्म अनार्य देश में होगा जहां धर्म नहीं है। आर्य संस्कृति में ये व्यवस्था थी की वो अनार्य देशों के साथ कोई संबंध नहीं रखते थे। 24 तीर्थंकरों में से किसी भी परमात्मा का जन्म अनार्यभूमि में नहीं हुआ। तीर्थंकर परमात्मा के जन्म-दीक्षा-केवलज्ञान-मोक्ष कल्याणक होता है लेकिन उनका कभी भी शादी कल्याणक नहीं होता है क्योंकि शादी को कभी भी कल्याणक नहीं कहा गया है शादी करना, करवाना ओर उसकी अनुमोदना करना कल्याण का नहीं अकल्याण का मार्ग है। जिस आर्यदेश में तीर्थंकर परमात्मा का गर्भकल्याणक होने पर देवलोक के इन्द्र भी ंवंदन ओर उत्सव मनाते है वहीं उसी आर्यदेश की भूमि पर खुले आम गर्भापात जैसा अधम पाप सम्पन्न हो रहा है। जो गर्भापात करते है, करवाते है तथा अनुमोदना करवाते है वो कभी अंहिसाप्रेमी नहीं होते है। ये वो देश है जहां पशुओं का वध करने पर सजा है लेकिन एक पंचेन्द्रिय जीव की गर्भ में हत्या करने पर कोई सजा नहीं है। जहां पशुओं के वध के लिए बुचड़खाने व कत्लखाने बंद करवाने के लिए आन्दोलन व नारेबाजी करते है लेकिन उसी देश में घर-घर में बुचड़खाने व कत्लखाने पनप रहे है जो गर्भापात जैसे अधम पाप करके संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव की हत्या कर देते है। ओर ये बुचड़खाने कुकुड़मुते की तरह पनप रहे है।
मुनि श्री ने कहा कि अनार्य देशों में जो भी साधन-सामग्री का आविष्कार हुआ है वो सब हिंसात्मक तरीके से हुआ है। कवियों व संतों से मां शब्द की व्याख्या करने का सामथ्र्य नहीं था वहीं आज की माताएं गर्भापात करके संज्ञी पचेन्द्रिय जीव की हत्यारी बनती है। तीर्थंकर के सिद्धान्तों को मानने वाला कभी भी चमत्कारों को नहीं मानता है। जैन आगमों यहां तक उल्लेख मिलता है कि एक बालक एक भव में 100 पिता हो सकते है तथा एक पिता के एक भव में एक लाख बालक हो सकते है। 3 माह का गर्भ में रहा हुआ जीव कु्रर लेश्या के परिणाम से मरकर सांतवी नरक तक जा सकता है। जहां 33 सागरोपम की महाभयंकर पीड़ा व वेदना सहन करता है गर्भाधान के समय में अश्लील चित्रों को देखना, मसालेदार व्यजंन खाने का कार्य जो माताएं करती है वो कभी बलशाली व संस्कारवान पुत्र को जन्म नहीं दे सकती है। जो मां अपने जीवन में संस्कारों का निर्माण नहीं कर सकती है वो कभी भी देश के लिए देशभक्त पुत्र को जन्म नहीं दे सकती है। दुनिया की बातें सुनने जैसी है तथा जिनवाणी सुनकर आचारण उतारने जैसी है। चिड़ा-फाड़ा करना, आॅपरेशन करना, छेदन-भेदन करने का कार्य आर्य संस्कृति की चिकित्सा पद्धति में नहीं था। आर्यदेश का खान-पान व चिकित्सा पद्धति अहिंसात्मक थी। एक जीव मां के गर्भ मंे अधिक से अधिक 24 वर्ष तक तथा कम से कम अंतरमुहुर्त तक रहता है। मुहुर्त व चैघड़िया देखकर कर दो माताएं पुत्र को जन्म देती है वो कभी भी बलशाली, तीर्थंकर, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव की आत्मा को जन्म नहीं दे सकती है। होनहार बलवान है तथा कर्मसता के आगे किसी की भी नहीं चलती है।
मुनि श्री ने कहा कि पुत्र के लक्षण पालने में और बहु के लक्षण बारने अर्थात् चैखट पर ही पता चल जाते है। गर्भपात एक और पाप चार है। अतिथि की हत्या का पाप, शरणागत की हत्या का पाप, अनाथ की हत्या का पाप तथा अपने खून की हत्या का पाप इस गर्भापात जैसे अधम कार्य में है। सभी जीव कर्माधीन है तथा इस धरती पर आने वाला प्रत्येक जीव अपनी व्यवस्था करके आता है। जीव मां की गर्भ से जन्म बाद में लेता है लेकिन मां के आंचल में दूध पहले आता है। गर्भापात करनेवाला डाॅक्टर, करवाने वाले माता-पिता उनका सहयोग करने वाले सभी पापी, अधमी, अपराधी और गुनहगार है। जब अशुभ कर्मों का उदय आयेगा तब उनको भवान्तर में संतान का सुख प्राप्त नहीं होगा। बांझ नाम कर्म का उदय होगा तथा किसी डाॅक्टर की ताकत नहीं की उसके बांझपन को दूर कर संतान का सुख दिलवा सके। मां वो होती है जो अपने प्राणों की भी बाजी लगाकर पुत्र के प्राणों की रक्षा करती है। जैन शास्त्रों में गर्भापात करवाने वाली माता को नागिन से भी बद्तर बताया गया है।
स्थंभन पाश्र्वनाथ सामुहिक अट्ठम तप आराधना 29 से- मिडिया प्रभारी चन्द्रप्रकाश छाजेड़ ़ ने बताया कि आचार्य भगवंत के चातुर्मासिक आराधना अन्तर्गत खरतरगच्छ की राजधानी बाड़मेर नगर में धर्म प्रभावना एवं सावन की फुहार से बह रही बयार से जन-जन आनन्दित है। जहां एक तरफ आचार्य भगवंत की जिनवाणी की बारिस हो रही है और दूसरी तरफ मेघराज बरस रहे है। 29, 30, 31 जुलाई को स्थम्भन पाश्र्वनाथ भगवान की अट्ठम तप की आराधना तथा 31 जुलाई को प्रातः 8.45 बजे श्रीमती प्रिंयका मालू के निर्देशन में स्थम्भन पाश्र्वनाथ भगवान की भव्य नाटक की प्रस्तुति आराधना भवन में दी जायेगी
रिपोर्ट :- चन्द्रप्रकाश छाजेड़ / बाड़मेर
बाड़मेर। जहां नेमी के चरण पड़े गिरनार की धरती है... भजन के साथ आचार्य देेवेश श्री जिनपीयुषसागरसूरिजी म.सा ने चातुर्मास का मंगलकारी मंगलाचरण के साथ ही स्थानीय जिनकांतिसागरसूरि आराधना भवन में उपस्थित जन समुदाय को भावविभोर कर दिया।
प्रखर प्रवचनकार मुनि सम्यकरत्नसागरजी महाराज ने सर्वमंगलमय वर्षावास 2017 के अन्तर्गत गर्भपात या गर्भकल्याणक जैसे विषय पर जिनकांतिसागरसूरि आराधना भवन में उपस्थिति जनसमुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि इस 21वीं सदी में मानव जन्म प्राप्त करना अत्यन्त दुष्कर है। मैत्री करूणा, प्रेम, जीवदया, प्राणीमात्र के प्रति करूणा आदि के भाव भगवान नेमीनाथ जीवन चरित्र को सुनने व समझने पर प्राप्त होते है। इन्हीें आत्मगुणों की वजह से तीर्थंकर परमात्मा के च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान व निर्वाण कल्याणक मनाते है लेकिन उनके आदर्शों को गौण करके मात्र आयोजनों व प्रयोजनों से मानव जीवन सार्थ व सफल नहीं हो सकता है। 24 तीर्थंकरों के 121 कल्याणक इस आर्य भूमि में पर घटित हुए आर्यभूमि में आचार-विचार व आचरण की शुद्धता होने की वजह से उनका जन्म आर्य भूमि पर हुआ। अनार्य भूमि में ये सब व्यवस्था नहीं है। आज कोई व्यक्ति अनार्य देशों में जाकर वहां की व्यवस्थाएं देखकर आर्यदेश में आकर आर्यदेश की व्यवस्थाओं में खामियां निकालता है तो समझना लेना कि भवान्तर में उसका जन्म अनार्य देश में होगा जहां धर्म नहीं है। आर्य संस्कृति में ये व्यवस्था थी की वो अनार्य देशों के साथ कोई संबंध नहीं रखते थे। 24 तीर्थंकरों में से किसी भी परमात्मा का जन्म अनार्यभूमि में नहीं हुआ। तीर्थंकर परमात्मा के जन्म-दीक्षा-केवलज्ञान-मोक्ष कल्याणक होता है लेकिन उनका कभी भी शादी कल्याणक नहीं होता है क्योंकि शादी को कभी भी कल्याणक नहीं कहा गया है शादी करना, करवाना ओर उसकी अनुमोदना करना कल्याण का नहीं अकल्याण का मार्ग है। जिस आर्यदेश में तीर्थंकर परमात्मा का गर्भकल्याणक होने पर देवलोक के इन्द्र भी ंवंदन ओर उत्सव मनाते है वहीं उसी आर्यदेश की भूमि पर खुले आम गर्भापात जैसा अधम पाप सम्पन्न हो रहा है। जो गर्भापात करते है, करवाते है तथा अनुमोदना करवाते है वो कभी अंहिसाप्रेमी नहीं होते है। ये वो देश है जहां पशुओं का वध करने पर सजा है लेकिन एक पंचेन्द्रिय जीव की गर्भ में हत्या करने पर कोई सजा नहीं है। जहां पशुओं के वध के लिए बुचड़खाने व कत्लखाने बंद करवाने के लिए आन्दोलन व नारेबाजी करते है लेकिन उसी देश में घर-घर में बुचड़खाने व कत्लखाने पनप रहे है जो गर्भापात जैसे अधम पाप करके संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव की हत्या कर देते है। ओर ये बुचड़खाने कुकुड़मुते की तरह पनप रहे है।
मुनि श्री ने कहा कि अनार्य देशों में जो भी साधन-सामग्री का आविष्कार हुआ है वो सब हिंसात्मक तरीके से हुआ है। कवियों व संतों से मां शब्द की व्याख्या करने का सामथ्र्य नहीं था वहीं आज की माताएं गर्भापात करके संज्ञी पचेन्द्रिय जीव की हत्यारी बनती है। तीर्थंकर के सिद्धान्तों को मानने वाला कभी भी चमत्कारों को नहीं मानता है। जैन आगमों यहां तक उल्लेख मिलता है कि एक बालक एक भव में 100 पिता हो सकते है तथा एक पिता के एक भव में एक लाख बालक हो सकते है। 3 माह का गर्भ में रहा हुआ जीव कु्रर लेश्या के परिणाम से मरकर सांतवी नरक तक जा सकता है। जहां 33 सागरोपम की महाभयंकर पीड़ा व वेदना सहन करता है गर्भाधान के समय में अश्लील चित्रों को देखना, मसालेदार व्यजंन खाने का कार्य जो माताएं करती है वो कभी बलशाली व संस्कारवान पुत्र को जन्म नहीं दे सकती है। जो मां अपने जीवन में संस्कारों का निर्माण नहीं कर सकती है वो कभी भी देश के लिए देशभक्त पुत्र को जन्म नहीं दे सकती है। दुनिया की बातें सुनने जैसी है तथा जिनवाणी सुनकर आचारण उतारने जैसी है। चिड़ा-फाड़ा करना, आॅपरेशन करना, छेदन-भेदन करने का कार्य आर्य संस्कृति की चिकित्सा पद्धति में नहीं था। आर्यदेश का खान-पान व चिकित्सा पद्धति अहिंसात्मक थी। एक जीव मां के गर्भ मंे अधिक से अधिक 24 वर्ष तक तथा कम से कम अंतरमुहुर्त तक रहता है। मुहुर्त व चैघड़िया देखकर कर दो माताएं पुत्र को जन्म देती है वो कभी भी बलशाली, तीर्थंकर, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव की आत्मा को जन्म नहीं दे सकती है। होनहार बलवान है तथा कर्मसता के आगे किसी की भी नहीं चलती है।
मुनि श्री ने कहा कि पुत्र के लक्षण पालने में और बहु के लक्षण बारने अर्थात् चैखट पर ही पता चल जाते है। गर्भपात एक और पाप चार है। अतिथि की हत्या का पाप, शरणागत की हत्या का पाप, अनाथ की हत्या का पाप तथा अपने खून की हत्या का पाप इस गर्भापात जैसे अधम कार्य में है। सभी जीव कर्माधीन है तथा इस धरती पर आने वाला प्रत्येक जीव अपनी व्यवस्था करके आता है। जीव मां की गर्भ से जन्म बाद में लेता है लेकिन मां के आंचल में दूध पहले आता है। गर्भापात करनेवाला डाॅक्टर, करवाने वाले माता-पिता उनका सहयोग करने वाले सभी पापी, अधमी, अपराधी और गुनहगार है। जब अशुभ कर्मों का उदय आयेगा तब उनको भवान्तर में संतान का सुख प्राप्त नहीं होगा। बांझ नाम कर्म का उदय होगा तथा किसी डाॅक्टर की ताकत नहीं की उसके बांझपन को दूर कर संतान का सुख दिलवा सके। मां वो होती है जो अपने प्राणों की भी बाजी लगाकर पुत्र के प्राणों की रक्षा करती है। जैन शास्त्रों में गर्भापात करवाने वाली माता को नागिन से भी बद्तर बताया गया है।
स्थंभन पाश्र्वनाथ सामुहिक अट्ठम तप आराधना 29 से- मिडिया प्रभारी चन्द्रप्रकाश छाजेड़ ़ ने बताया कि आचार्य भगवंत के चातुर्मासिक आराधना अन्तर्गत खरतरगच्छ की राजधानी बाड़मेर नगर में धर्म प्रभावना एवं सावन की फुहार से बह रही बयार से जन-जन आनन्दित है। जहां एक तरफ आचार्य भगवंत की जिनवाणी की बारिस हो रही है और दूसरी तरफ मेघराज बरस रहे है। 29, 30, 31 जुलाई को स्थम्भन पाश्र्वनाथ भगवान की अट्ठम तप की आराधना तथा 31 जुलाई को प्रातः 8.45 बजे श्रीमती प्रिंयका मालू के निर्देशन में स्थम्भन पाश्र्वनाथ भगवान की भव्य नाटक की प्रस्तुति आराधना भवन में दी जायेगी
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