तीज का त्योहार, जानिए क्यों मनाया जाता है तीज का त्यौंहार
सावन में कई त्योहार मनाए जाते हैं, इस महीने में हरियाली तीज का त्योहार भी मनाया जाता है. जो हिन्दू धर्म का प्रमुख पर्व है. यह त्यौहार पूरे भारत में श्रावण माह के शुक्ल पक्ष तृतीया को तीज व्रत आज मनाया जा रहा है. यह दिन महिलाओं का सबसे खास पर्व माना जाता है. यह पर्व संपूर्ण भारत में अलग-अलग रूप में मनाया जाता है. खासतौर से यह पर्व राजस्थान में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है.
सावन के महीने में चारों और हरियाली होती है, इसलिए इस त्योहार को हरियाली तीज कहते हैं. इसे श्रावणी तीज, कजली तीज या मधुश्रवा तीज के नामो से भी जाना जाता है. इस पर्व को महिलाएं बड़ी ही खुशी के साथ नाचते-गाते हुए मनाती है.
तीज का आगमन सावन में होने वाली भीगी फुहारों से ही शुरू हो जाता है. जिससे चारों ओर हरियाली भी अपने मधुर गान से इस त्यौहार को मनाने के लिए प्रकृति के गले लग जाती है. इस समय बरसात और प्रकृति के मिलने से पूरे वातावरण में मधुर झनकार सी बजने लगती है.
इस त्योहार की मधुर बेला के आगमन के समय नव विवाहिता लड़कियों को उनके ससुराल से पीहर बुला लिया जाता है, अपने पीहर आने के बाद महिलाएं गीत गाती हैं, झूला झूलती हैं और नाचती हैं.
इसलिए मनाते: इस तीज पर्व के 1 दिन पहले ही विवाहित महिलाएं तथा कन्याएं अपने हाथों में मेहंदी लगाकर इसको मनाती हैं. इस व्रत का उद्देश्य यह है कि सुहागन महिलाएं अपना सौभाग्य बनाए रखने के लिए भगवान शिव-पार्वती का व्रत रखती हैं. जिससे मान्यता है कि अविवाहित कन्याएं अच्छा पति पाने के लिए यह व्रत रखती हैं. ऐसी भी मान्यता है कि इस व्रत विवाहित महिलाए मां पार्वती के व्रत रखती है जिससे मां पार्वती खुश होकर पतियों को दीर्घायु होने का आशीर्वाद देती हैं.
मेहंदी और झूलों का उत्सव: तीज का त्यौहार वास्तव में महिलाओं को सच्चा आनंद देता है. इस दिन वे रंग-बिरंगे कपड़े, लकदक करते गहनें पहन दुल्हन की तरह तैयार होती हैं. नवविवाहिताएं इस दिन अपने शादी का जोड़ा भी पहनती हैं. वैसे तीज के मुख्य रंग गुलाबी, लाल और हरा है.
इस त्यौहार पर सभी विवाहिताएं विशेष रूप से श्रृंगार करती हैं. बड़ी संख्या में महिलाएं और युवतियां हाथों में मेहंदी रचाती हैं और पैरों में आलता लगाती हैं. राजस्थान में जिसे ‘मेहंदी-मांडना’ कहते हैं. मेहंदी लगाते वक्त तीज के गीत गाए जाते हैं समूचा वातावरण श्रृंगार से अभिभूत हो उठता है. तीज में मेहंदी के साथ ही झूलों का भी विशेष महत्त्व है.
तीज के कुछ दिन पूर्व से ही पेड़ों की डालियों पर, घर की छत की कड़ों या बरामदे में झूले पड़ जाते हैं और नारियां, सखी-सहेलियों के संग सज-संवरकर लोकगीत, कजरी आदि गाते हुए झूला झूलती हैं और फिर महिलाएं और युवतियां मल्हार और कजरी गाते हुए सहेलियों संग सज संवरकर झूला झूलती हैं और पूरा वातावरण खुशनुमा हो उठता है.
सावन माह का महत्व: सावन माह भारत में मानसून की शुरुआत का संकेत होता है. जैसा कि हम जानते हैं कि मानसून एक नए जीवन और हमारे आसपास हरियाली का एक प्रतीक है. तेज गर्मियों के दिनों के बाद बारिश के तौर पर पृथ्वी को नया जीवन मिलता है.
इस पर्व में हरियाली शब्द से ही साफ है कि इसका ताल्लुक पेड़-पौधों और पर्यावरण से है. इस तरह, सावन माह में मनाया जाने वाला हरियाली पर्व दंपतियों के वैवाहिक जीवन में समृद्धि, खुशी और तरक्की का प्रतीक है. एक तरह से हरियाली तीज का पर्व प्रकृति का त्योहार है, जब महिलाएं अच्छी फसल के लिए भी प्रार्थना करती हैं.
निष्कर्ष: यह त्योहार जीवन के जश्न का प्रतीक है. कोई भी ऐसा त्योहार जो प्यार बढ़ाता हो और लोक कल्याण की भावना को आगे बढ़ाता हो, उसका स्वागत होना चाहिए. बदलते वक्त के साथ, चेतन भगत की कुछ साल पहले दी हुई सलाह महत्वपूर्ण हो जाती है. उन्होंने पुरुषों से भी करवा चौथ का व्रत करने को कहा था.
सावन में कई त्योहार मनाए जाते हैं, इस महीने में हरियाली तीज का त्योहार भी मनाया जाता है. जो हिन्दू धर्म का प्रमुख पर्व है. यह त्यौहार पूरे भारत में श्रावण माह के शुक्ल पक्ष तृतीया को तीज व्रत आज मनाया जा रहा है. यह दिन महिलाओं का सबसे खास पर्व माना जाता है. यह पर्व संपूर्ण भारत में अलग-अलग रूप में मनाया जाता है. खासतौर से यह पर्व राजस्थान में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है.
सावन के महीने में चारों और हरियाली होती है, इसलिए इस त्योहार को हरियाली तीज कहते हैं. इसे श्रावणी तीज, कजली तीज या मधुश्रवा तीज के नामो से भी जाना जाता है. इस पर्व को महिलाएं बड़ी ही खुशी के साथ नाचते-गाते हुए मनाती है.
तीज का आगमन सावन में होने वाली भीगी फुहारों से ही शुरू हो जाता है. जिससे चारों ओर हरियाली भी अपने मधुर गान से इस त्यौहार को मनाने के लिए प्रकृति के गले लग जाती है. इस समय बरसात और प्रकृति के मिलने से पूरे वातावरण में मधुर झनकार सी बजने लगती है.
इस त्योहार की मधुर बेला के आगमन के समय नव विवाहिता लड़कियों को उनके ससुराल से पीहर बुला लिया जाता है, अपने पीहर आने के बाद महिलाएं गीत गाती हैं, झूला झूलती हैं और नाचती हैं.
इसलिए मनाते: इस तीज पर्व के 1 दिन पहले ही विवाहित महिलाएं तथा कन्याएं अपने हाथों में मेहंदी लगाकर इसको मनाती हैं. इस व्रत का उद्देश्य यह है कि सुहागन महिलाएं अपना सौभाग्य बनाए रखने के लिए भगवान शिव-पार्वती का व्रत रखती हैं. जिससे मान्यता है कि अविवाहित कन्याएं अच्छा पति पाने के लिए यह व्रत रखती हैं. ऐसी भी मान्यता है कि इस व्रत विवाहित महिलाए मां पार्वती के व्रत रखती है जिससे मां पार्वती खुश होकर पतियों को दीर्घायु होने का आशीर्वाद देती हैं.
मेहंदी और झूलों का उत्सव: तीज का त्यौहार वास्तव में महिलाओं को सच्चा आनंद देता है. इस दिन वे रंग-बिरंगे कपड़े, लकदक करते गहनें पहन दुल्हन की तरह तैयार होती हैं. नवविवाहिताएं इस दिन अपने शादी का जोड़ा भी पहनती हैं. वैसे तीज के मुख्य रंग गुलाबी, लाल और हरा है.
इस त्यौहार पर सभी विवाहिताएं विशेष रूप से श्रृंगार करती हैं. बड़ी संख्या में महिलाएं और युवतियां हाथों में मेहंदी रचाती हैं और पैरों में आलता लगाती हैं. राजस्थान में जिसे ‘मेहंदी-मांडना’ कहते हैं. मेहंदी लगाते वक्त तीज के गीत गाए जाते हैं समूचा वातावरण श्रृंगार से अभिभूत हो उठता है. तीज में मेहंदी के साथ ही झूलों का भी विशेष महत्त्व है.
तीज के कुछ दिन पूर्व से ही पेड़ों की डालियों पर, घर की छत की कड़ों या बरामदे में झूले पड़ जाते हैं और नारियां, सखी-सहेलियों के संग सज-संवरकर लोकगीत, कजरी आदि गाते हुए झूला झूलती हैं और फिर महिलाएं और युवतियां मल्हार और कजरी गाते हुए सहेलियों संग सज संवरकर झूला झूलती हैं और पूरा वातावरण खुशनुमा हो उठता है.
सावन माह का महत्व: सावन माह भारत में मानसून की शुरुआत का संकेत होता है. जैसा कि हम जानते हैं कि मानसून एक नए जीवन और हमारे आसपास हरियाली का एक प्रतीक है. तेज गर्मियों के दिनों के बाद बारिश के तौर पर पृथ्वी को नया जीवन मिलता है.
इस पर्व में हरियाली शब्द से ही साफ है कि इसका ताल्लुक पेड़-पौधों और पर्यावरण से है. इस तरह, सावन माह में मनाया जाने वाला हरियाली पर्व दंपतियों के वैवाहिक जीवन में समृद्धि, खुशी और तरक्की का प्रतीक है. एक तरह से हरियाली तीज का पर्व प्रकृति का त्योहार है, जब महिलाएं अच्छी फसल के लिए भी प्रार्थना करती हैं.
निष्कर्ष: यह त्योहार जीवन के जश्न का प्रतीक है. कोई भी ऐसा त्योहार जो प्यार बढ़ाता हो और लोक कल्याण की भावना को आगे बढ़ाता हो, उसका स्वागत होना चाहिए. बदलते वक्त के साथ, चेतन भगत की कुछ साल पहले दी हुई सलाह महत्वपूर्ण हो जाती है. उन्होंने पुरुषों से भी करवा चौथ का व्रत करने को कहा था.
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