10 लाख भारतीय मुस्लिमों ने तीन तलाक के खिलाफ पिटीशन पर किए दस्तखत
नई दिल्ली. तीन तलाक के खिलाफ मुस्लिम महिलाएं एकजुट हो रही हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (एमआरएम) ने तीन तलाक के खिलाफ एक अभियान चलाया है। दावा है कि इस प्रैक्टिस को खत्म करने के लिए करीब 10 लाख मुस्लिमों ने पिटीशन पर दस्तखत किए हैं। इनमें ज्यादातर महिलाएं हैं। धर्म से जोड़कर न देखा जाए...
- न्यूज एजेंसी के मुताबिक, एमआरएम की ओर से जो पिटीशन साइन करवाई जा रही है, उसमें कहा जा रहा है कि इसको धर्म से जोड़कर ना देखा जाए, क्योंकि यह एक सोशल प्रॉब्लम है।
- बता दें कि कई महिलाएं सुप्रीम कोर्ट में भी पिटीशन लगाकर तीन तलाक को खत्म करने की मांग कर चुकी हैं।
- केंद्र सरकार भी सुप्रीम कोर्ट से कह चुकी है कि यह कॉन्स्टिट्यूशन में औरत और आदमी को मिले बराबरी के हक के खिलाफ है।
- हालांकि, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने इस प्रैक्टिस का बचाव किया है। उसका कहना है कि किसी महिला की हत्या हो, इससे बेहतर है कि उसे तलाक दिया जाए।
- AIMPLB का कहना है, "धर्म में मिले हकों पर कानून की अदालत में सवाल नहीं उठाए जा सकते।"
मोदी ने भी किया था तीन तलाक का विरोध
- पिछले साल नरेंद्र मोदी ने भी कहा था कि वो तीन तलाक के खिलाफ हैं। उन्होंने कहा था, "मुस्लिम महिलाओं की जिंदगी को तीन तलाक से खत्म करने की इजाजत नहीं दी जा सकती।"
- उन्होंने अपोजिशन पर इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देने का आरोप भी लगाया था।
UP चुनाव में क्या हुआ
- बीजेपी ने ट्रिपल तलाक का मुद्दा उठाया। सपा, बसपा, कांग्रेस चुप रहे। यही चुप्पी मुस्लिम महिलाओं को बीजेपी के करीब ले गई। नतीजा यह रहा कि बीजेपी को 15% मुस्लिम महिलाओं ने वोट दिए। बीजेपी ने मुस्लिम बहुल 124 सीटों (20%+मुस्लिम) में से 99 सीट जीती।
- बता दें कि 20 करोड़ आबादी वाले उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों की तादाद 18.5% है।
चुनाव के दौरान मोदी के मंत्री ने यह कहा था
- यूनियन मिनिस्टर रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि UP चुनाव के बाद सरकार तीन तलाक पर बैन का फैसला ले सकती है।
- फरवरी में प्रसाद ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "सरकार उप्र चुनाव के बाद तीन तलाक पर पाबंदी लगाने का बड़ा कदम उठा सकती है।"
- "केंद्र सरकार इस सामाजिक बुराई को खत्म करने के लिए कमिटेड है। हम महिलाओं के लिए इंसाफ, बराबरी और गरिमा के 3 बिंदुओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी यह मामला उठाएंगे।"
- "इस मुद्दे का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन इससे महिलाओं की गरिमा और उनका सम्मान जरूर जुड़ा हुआ है।"
- "सरकार आस्था का सम्मान करती है, लेकिन इबादत और सामाजिक बुराई एक साथ नहीं रह सकती।"
SC ने कहा था बेहद गंभीर मामला
- 16 फरवरी को इस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ''इश्यू बेहद गंभीर है। इससे छोड़ा नहीं जा सकता। कानूनी तौर पर विचार करने के लिए बड़ी बेंच की जरूरत होगी।''
- बेंच ने कहा कि पार्टियां अगली सुनवाई तक अपने इश्यूज लिखित में अटॉर्नी जनरल के पास जमा करा दें, जो 15 पेज से ज्यादा ना हों।
- कोर्ट ने कहा कि इन मामलों पर 11 मई से संविधान के तहत 5 जजों की कॉन्स्टिट्यूशन बेंच सुनवाई करेगी।
- सुनवाई के दौरान केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को तलाक और निकाह हलाला जैसे मुद्दों पर सुनवाई के लिए अपने सवाल सौंपे थे। इनमें से 4 सवालों पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी मुहर लगा दी थी।
ये थे चार सवाल जिन पर SC ने मुहर लगाई
1.धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत तीन तलाक, हलाला और बहु-विवाह की इजाजत संविधान के तहत दी जा सकती है या नहीं?
2. समानता का अधिकार, गरिमा के साथ जीने का अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में प्राथमिकता किसे दी जाए?
3. पर्सनल लॉ को संविधान के आर्टिकल 13 के तहत कानून माना जाए या नहीं?
4.क्या तीन तलाक, निकाह हलाला और बहु-विवाह उन अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत सही है, जिस पर भारत ने भी साइन किए हैं?
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