खजुराहो में है लक्ष्मण मंदिर, सोलह हजार शिल्पकारों ने किया इसका निर्माण
खजुराहो बुन्देलखण्ड में स्थित एक ऐसा स्थल है जो अतीत के स्वर्णिम साध्य के साथ वर्तमान के सामने गौरवपूर्ण मुद्रा में खड़ा है। खजुराहो बुन्देलखण्ड का वक्षस्थल, वास्तुकला का अपूर्व भण्डार समस्त विश्व का आकर्षण, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक चेतना का केन्द्र है। खजुराहो की स्थापत्य कला में निर्माण के बिन्दु-बिन्दु में प्रेम के अनुपम आख्यान अथवा कामसूत्र की शाश्वत कला गुथी है। पत्थरों में काम क्रीड़ाएं, काम कला का हर रूप सजीव रूप से उत्कीर्ण है।
मध्ययुगीन मास की ये सजीव मूर्तियां आज भी अतुलनीय हैं। आज भी ऐसा लगता है कि यहां की मिथुन-मूर्तियों के अंग-प्रत्यंग में खनक भरी गुनगुनाहट है, जिनके उद्वेलन को शब्द सीमा में नहीं बांधा जा सकता है। हरे-भरे जंगलों की हरीतिमा में छिपा यह अनमोल सौन्दर्य प्रायः 600 वर्षों तक मानव के नेत्रों से अछूता रहा। सन् 1840 में एक ब्रिटिश शिकारी दल ने इस स्थल का पता लगाया था। बाद में उत्खनन के माध्यम से मिट्टी के गर्भ में दबा यह अनुपम सौन्दर्य बाहर आया तथा सन् 1923 में यह सर्वसाधारण में यात्रा हेतु चर्चित हुआ। यहां के शिल्प सौन्दर्य को देखकर यही कहा जा सकता है खजुराहो के दर्शन के बिना भारत-दर्शन अधूरा है।
निर्माण कला की दृष्टि से खजुराहो के मंदिरों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। एक- पूर्ववर्ती, जिसके अन्तर्गत चौसठ योगिनी लालगुहा महादेव, ब्रह्मा मातंगेश्वर और वराह मंदिर आदि आते हैं। दूसरा- परवर्ती, जिसमें शेष सभी मंदिर आते हैं। चंदेल वंश के राजाओं ने कुल पचासी मंदिर बनवाए थे, जिनमें से वर्तमान में केवल बाइस मंदिर शेष बचे हैं ।
खजुराहो में लक्ष्मण मंदिर स्थित है। इसका निर्माण लगभग 930 ई. में यशोवर्मन नामक राजा ने कराया था। इनका एक नाम लक्ष्मण वर्मन भी था इसलिए यह मंदिर लक्ष्मण मंदिर कहलाता है। वैसे यह मंदिर भगवान विष्णु का है। पंचायतन शैली में बना हुआ यह मंदिर खजुराहो में अब तक प्राप्त सभी मंदिरों में सबसे सुरक्षित स्थिति में है। कहा जाता है कि इस मंदिर के निर्माण के लिए मथुरा से सोलह हजार शिल्पकारों को बुलाया गया था तथा यह मंदिर लगभग सात वर्ष में बनकर तैयार हुआ था।
लक्ष्मण मंदिर के बाद विश्वनाथ मंदिर लगभग 1002 ई. में महाराजा धंगदेव वर्मन ने बनवाया था। यह मंदिर भी लक्ष्मण मंदिर के समान ही पंचायतन शैली का बना हुआ था, किंतु वर्तमान में केवल दो उप मंदिर उत्तर-पूर्व एवं दक्षिण-पश्चिम कोनों में ही स्थित है। बाकी दक्षिण पूर्व एवं उत्तर-पश्चिम कोनों के उपमंदिर टूट चुके हैं। मंदिर के सामने का नंदी मंदिर जो कि विश्वनाथ मंदिर के ही चबूतरे पर बना है।
चित्रगुप्त मंदिर राजा धंगदेव वर्मन के पुत्र महाराजा गण्डदेव ने 11वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में बनवाया था। खजुराहो में बने मंदिरों में केवल यही एकमात्र सूर्य मंदिर है। इस मंदिर का नाम चित्रगुप्त नामक उपदेवता के नाम पर पड़ा जिनके बारे में हिन्दू धारणा है कि यह मनुष्यों के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं। गर्भगृह में स्थित रक्षारूढ़ भगवान सूर्य की प्रतिमा के दाहिने ओर हाथ में लेखनी लिए चित्रगुप्त की खण्डित प्रतिमा है। यह मंदिर निरन्धार शैली में बना है।
खजुराहो में सबसे प्राचीन मंदिर ‘‘कंदारिया महादेव मंदिर’’ है। जोकि मध्यकालीन भारतीय स्थापत्य का भव्यतम स्मारक है। यह भारत की सर्वोत्तम वास्तुकृतियों में अपना गौरवपूर्ण स्थान रखता है। यह मंदिर 117 फुट ऊंचा, 117 फुट लंबा तथा 66 फुट चौड़ा है। मंदिर को सामने की ओर से देखने से यूं प्रतीत होता है जैसे कि एक शिखर वाला विशाल पर्वत खड़ा हुआ हो एवं मंदिर का प्रवेश द्वार यू प्रतीत होता है जैसे किसी कन्दरा या गुफा का द्वार हो इसलिए ही इस मंदिर का नाम कंदारिया महादेव अर्थात् कंदरा में रहने वाले शिव पड़ा।
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