मंगलवार, 11 अक्तूबर 2016

नए कलेवर में दिखा संघ, जानिए RSS के बदलाव का इतिहास

 नए कलेवर में दिखा संघ, जानिए RSS के बदलाव का इतिहास
 नए कलेवर में दिखा संघ, जानिए RSS के बदलाव का इतिहास

मंगलवार को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) कार्यकर्ता दशहरे के दिन 91 साल बाद खाकी हॉफ पैंट के बजाए भूरे रंग की पतलून में नजर आए। गणवेश का हिस्सा बनी इस नई पतलून के साथ आरएसएस के स्थापना दिवस विजयादशमी पर निकला पथ संचलन द्रोणाचार्य राजकीय महाविद्यालय से शुरू हुआ। पतलून की कमी के कारण इस बार मंगलवार को सिर्फ गुड़गांव महानगर में ही पथ संचालन आयोजित हुआ। 16 अक्तूबर को मानेसर महानगर के वार्ड एक में दूसरा आयोजन होगा।
सबसे पहले शस्त्र पूजा की गई उसके पश्चात बौद्धिक के अंतर्गत वरिष्ठ आरएसएस पदाधिकारियों ने स्वयं सेवकों को संबोधित किया। प्रांत कारवाह देव प्रसाद भारद्वाज,महानगर कार्यवाह विजय कुमार, भाग संघ चालक वेद मंगला, विभाग प्रचारक शिव कुमार भी उपस्थित रहे। उसके पश्चात 1000 कार्यकर्ता नए और सम्पूर्ण गणवेश में हाथों में लाठियां लिए पथ संचलन को तत्पर दिखे।

उत्साह से भरे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता अनुशासित कदमों के साथ सड़कों पर कदम ताल करते हुए उतरे। आगे आगे खुली जीप में वरिष्ठ कार्यकर्ता सवार थे और देश भक्ति नारे लगा रहे थे। पुलिस की कड़ी सुरक्षा के बीच यह पथ संचलन द्रोणाचार्य राजकीय महाविद्यालय पुराना गुड़गांव से शुरू हुआ। कालेज के पुराने रेलवे रोड की ओर जाने वाले गेट से पथ संचलन में शामिल आरएसएस कार्यकर्ता निकले।

कई स्थानों पर फूल मालाओं से इनका स्वागत भी किया गया। न्यू कालोनी, न्यू रेलवे रोड से होता हुआ द्रोणाचार्य राजकीय महाविद्यालय के मुख्य प्रवेश द्वार से द्रोणाचार्य कालेज में आएगा। विभाग प्रचारक शिव कुमार ने बताया कि इसी तरह 16 अक्तूबर अपराह्न 3 बजे सेक्टर 1 से महानगर मानेसर में पथ संचलन निकाला जाएगा।

आजादी और आजादी के बाद संघ के योगदान से नई पीढ़ी को अवगत कराएं: देव प्रसाद भारद्वाज
प्रांत कारवाह देव प्रसाद भारद्वाज ने आह्वान किया कि आजादी और आजादी के पश्चात राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने देश हित में काफी योगदान किया है। इन योगदान और कुर्बानियों से देश की नई पीढ़ी को अवगत कराना हर कार्यकर्ता का लक्ष्य होना चाहिए। ताकि हम संघ की शाखाओं को विस्तार कर हर क्षेत्र के युवा को इससे ज्यादा से ज्यादा संख्या में जोड़ सके। हर गांव हर घर संघ से जुड़ना चाहिए। ताकि हम ताकि हम हिन्दु संस्कृति को संरक्षित रख सके।

पहले भी हुए बदलाव
1925 सितंबर में स्थापना के समय कार्यकर्ता खाकी हॉफ पैंट, शर्ट और टोपी पहनते थे
1930 में खाकी टोपी के स्थान पर काली टोपी शामिल हो गई
1940 में खाकी शर्ट के स्थान पर सफेद शर्ट को स्वीकृति मिली
1958 में पैरो में ऊंचे बूट या विकल्प में रेकजीन के काले जूतों को शामिल किया गया
1973 में अपेक्षाकृत हल्के जूते का इस्तेमाल किया गया
2011 में चमडे़ के बजाए कैनवास बेल्ट का इस्तेमाल शुरू हुआ।
2015 में नागपुर राष्ट्रीय अधिवेशन में पतलून को स्वीकृति मिली, नई ड्रेस गुड़गांव में ही सिली गई।

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