सोमवार, 8 अगस्त 2016

बाड़मेर। गांव का एेसा सरकारी आवासीय स्कूल जहां की व्यवस्थाएं निजी स्कूलों को दे रही हैं मात

बाड़मेर। गांव का एेसा सरकारी आवासीय स्कूल जहां की व्यवस्थाएं निजी स्कूलों को दे रही हैं मात



बाड़मेर। बेहतर शेक्षणिक माहोल ,भव्य आकर्षण भवन ,प्ले ग्रांउड ,जैसी सुविधाओ के बीच पढ़ना कभी गरीब बच्चो के लिये सपना की तरह रहा हो लेकिन बाड़मेर जिले के बायतु ब्लॉक के माडपुरा गांव के सरकारी स्कुल की हकीकत है। निजी स्कुलो में संपन्र परिवारों के बच्चो को ही पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ है लेकिन अब गरीब के बच्चो को ऐसा अवसर मिलने लगा है। वह भी कस्तूरबा गाँधी आवासीय विद्यालय में और सुविधाओ के मामले में कई निजी स्कुलो को मात दे रहा है।




कस्तूरबा गाँधी आवासीय विद्यालय के मुख्यद्वार पर रखे आगन्तुक रजिस्टर में अपना नाम पता दर्ज कर देने के बाद ही भीतर प्रवेश मिलता है। विद्यालय परिसर में हरे भरे बगीचे की सुन्‍दरता का माहोल है । बगीचे की सुन्‍दरता का जिक्र करने पर हमें बताया गया कि सभी शिक्षिकाएँ और बालिकाएँ मिलकर इस हरियाली को बनाए रखने और साफ-सुथरा रखने का प्रयास करती हैं। इस काम में उनके वरिष्ठ अधिकारियों का भी सदैव सहयोग रहता है। यहाँ नियुक्त चौकीदार भगाराम जी इन पौधों की बहुत अच्छी देखभाल करते हैं।

कक्षाओं से गुजरते हुए हमने देखा कि सभी बच्चियां नीचे दरी पटी पर बैठेकर पढ़ाई कर रहे थे। एक हाल में दो-तीन कम्प्‍यूटर रखे हुए हैं। यहाँ पर सभी बालिकाओं को कम्प्यूटर सिखाने का प्रयास किया जा रहा है। कुछ लड़कियाँ बेहतर ढंग से कम्प्यूटर का प्रयोग करना सीख गई हैं और अब अपनी दूसरी सहेलियों को भी सिखा रही हैं। एक कमरे में बड़ा रंगीन टी.वी. है। आप लोग क्या देखते हो ? इस सवाल के जवाब में कई लड़कियों ने एक साथ कहा - हा । प्रधानअध्यापिका पुष्पा जी चौधरी ने बताया कि फुर्सत के समय सब अपनी-अपनी रुचि का खेल खेलते हैं या टी.वी. देखते हैं।




उन्होंने बताया कि यहाँ पर ऐसी लड़कियाँ आती हैं जो या तो कभी स्कूल ही नहीं गई हैं या फिर पढ़ाई छोड़कर घर बैठ गई हैं। ऐसे में इनको आवासीय विद्यालय में रख पाना ही बड़ी चुनौती होती है। हम सभी लोग प्रयास करते हैं कि उन्हें किसी किस्म की तकलीफ न हो और साथ ही यहाँ अच्छा भी लगे। कुछ दिन रह लेने के बाद जब इन सबकी आपस में दोस्ती हो जाती है तब इनका मन लगने लगता है। फिर तो छुटिटयों में घर जाने पर भी इनके फोन आते रहते हैं कि मैडम कब वापिस आ जाएँ। विद्यालय की दीवारों पर हाथों से बने हुऐ चार्ट और बहुत से चित्र लगे हैं।




एक कमरे में एक छोटी बच्ची पढ़ाई कर रही थी तो तो हमने पूछा की बड़ी होकर क्या बनना चाहती है ? उस बच्ची ने जवाब में कहा शिक्षिका बनना चाहती हैं, अपनी शिक्षिकाओं की तरह ही। ये अच्छी बात है। देश को बहुत सारे अच्छे शिक्षक और शिक्षिकाओं की जरूरत है।

विद्यालय में बच्चियों को मीनू के हिसाब से खाना खिलाया जाता है।उनके खानपान का अच्छा ध्यान रखा जाएगा। बालिकाएँ खाना शुरू करने से पहले हाथ धोकर बैठती है फिर सब एक साथ प्रार्थना करते है उसके बाद खाना शुरू करते है।


छिन्दरपाल कौर मैडम विद्यालय बच्चियों को पढ़ाने के साथ साथ रोजाना शाम के समय नियमित रूप से खो खो, कबड्डी और दौड जैसे खेल इन बच्चियों को खिलाती है। वे बताती हैं कि इस विद्यालय की बालिकाओं खेलकूद-प्रतियोगिता में राज्य स्तर तक अपने झण्डे फहराए हैं।

दो शिक्षिकाएँ,यहाँ पर बालिकाओं के साथ ही रहती हैं। भीतर ही उनका कमरा है। रोज शाम को सब लोग आपस में मिलकर खेल खेलते हैं,गीत गाते हैं।

चौकीदार भगाराम जी ने बताया की वो यहाँ पर तब से ही चौकीदार के रूप में नियुक्त हैं,जब से इस विद्यालय की स्थापना हुई थी। यहाँ की व्यवस्था और सुरक्षा को दुरूस्त रखने में इनकी सराहनीय भूमिका है। इसी क्षेत्र के रहने वाले हैं, इसलिए जानते हैं कि कौन, कैसा है। शाम होने के बाद वे किसी को भी विद्यालय परिसर के आसपास फटकने नहीं देते हैं। उनका मानना है कि पौधों को पानी देने तथा बच्चों को स्नेह देने से बहुत पुण्‍य मिलता है।


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