बाड़मेर। माटी की हो जाती है मिट्टी पलीत
दुर्गेश चौधरी@बाड़मेर.
बाड़मेर। सीमावर्ती जिले के सबसे बड़े चिकित्सालय में स्थित मोर्चरी में शवों को सुरक्षित रखने के लिए डीप फ्रिज नहीं होने से कई बार शव की दुर्गति हो जाती है। यहां राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की तरफ से आधुनिक मोर्चरी का निर्माण तो कर दिया गया है, लेकिन डीप फ्रिज नहीं दिया गया है। इससे कई बार मुश्किल खड़ी हो जाती है।
जिले में पिछले एक दशक में व्यावसायिक गतिविधियां बढऩे के साथ ही अपराध में तेजी से वृद्धि हुई है। बाहरी प्रदेश के किसी व्यक्ति की मौत पर उसके परिजनों को सूचित करने एवं आने में कई बार 2 से 3 दिन लग जाते हैं। ऐसे में उस शव की सुरक्षा करना चिकित्सा विभाग व पुलिस के लिए मुश्किल हो जाता है। वहीं दूसरी तरफ किसी की मौत पर परिजनों व समाज के विरोध के बाद पोस्टमार्टम में देरी से भी शव को सुरक्षित रखना भारी पड़ जाता है।
जीवाणुओं से खतरा
व्यक्ति की मौत के बाद एक बार शव कड़क हो जाता है। करीब सात-आठ घंटे बाद शव शिथिल पडऩे लगता है और उसमें जीवाणुओं की संख्या तेजी से बढऩे लगती है। उसके सारे अंगों में पानी निकलने लगता है। एेसे में तेज गर्मी से शव सड़ांध मारने लगता है। अधिकांश मामलों में परिजनों के अभाव में मोर्चरी में रखे शवों के लिए बर्फ की व्यवस्था नहीं हो पाती। लिहाजा शव की हालत भी खराब होने लगती है।
आधुनिक मोर्चरी का निर्माण पूर्ण
राजकीय चिकित्सालय में आधुनिक मोर्चरी का निर्माण कार्य पूर्ण हो चुका है। यहां पर पुरानी मोर्चरी के पास ही 15 लाख रुपए की लागत से तीन कमरों का निर्माण किया जा चुका है। इसमें से एक कक्ष में शव का पोस्टमार्टम व क्लिनिंग कक्ष है। वहीं अन्य दो कक्षों में से एक चिकित्सक कक्ष। यहां विद्युत, पानी, पेयजल व परिजनों के रात में रुकने की व्यवस्था भी की गई है। मोर्चरी के आगे सड़क भी बनाई गई है।
प्रयास कर रहे हैं
चिकित्सालय में आधुनिक मोर्चरी का निर्माण हो चुका है। भीषण गर्मी में शव को सुरक्षित रखने के लिए डीप फ्रिज आवश्यक है। इसके लिए प्रयास कर रहे हैं।
डॉ. देवेन्द्र भाटिया, प्रमुख चिकित्सा अधिकारी, राजकीय चिकित्सालय
दुर्गेश चौधरी@बाड़मेर.
बाड़मेर। सीमावर्ती जिले के सबसे बड़े चिकित्सालय में स्थित मोर्चरी में शवों को सुरक्षित रखने के लिए डीप फ्रिज नहीं होने से कई बार शव की दुर्गति हो जाती है। यहां राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की तरफ से आधुनिक मोर्चरी का निर्माण तो कर दिया गया है, लेकिन डीप फ्रिज नहीं दिया गया है। इससे कई बार मुश्किल खड़ी हो जाती है।
जिले में पिछले एक दशक में व्यावसायिक गतिविधियां बढऩे के साथ ही अपराध में तेजी से वृद्धि हुई है। बाहरी प्रदेश के किसी व्यक्ति की मौत पर उसके परिजनों को सूचित करने एवं आने में कई बार 2 से 3 दिन लग जाते हैं। ऐसे में उस शव की सुरक्षा करना चिकित्सा विभाग व पुलिस के लिए मुश्किल हो जाता है। वहीं दूसरी तरफ किसी की मौत पर परिजनों व समाज के विरोध के बाद पोस्टमार्टम में देरी से भी शव को सुरक्षित रखना भारी पड़ जाता है।
जीवाणुओं से खतरा
व्यक्ति की मौत के बाद एक बार शव कड़क हो जाता है। करीब सात-आठ घंटे बाद शव शिथिल पडऩे लगता है और उसमें जीवाणुओं की संख्या तेजी से बढऩे लगती है। उसके सारे अंगों में पानी निकलने लगता है। एेसे में तेज गर्मी से शव सड़ांध मारने लगता है। अधिकांश मामलों में परिजनों के अभाव में मोर्चरी में रखे शवों के लिए बर्फ की व्यवस्था नहीं हो पाती। लिहाजा शव की हालत भी खराब होने लगती है।
आधुनिक मोर्चरी का निर्माण पूर्ण
राजकीय चिकित्सालय में आधुनिक मोर्चरी का निर्माण कार्य पूर्ण हो चुका है। यहां पर पुरानी मोर्चरी के पास ही 15 लाख रुपए की लागत से तीन कमरों का निर्माण किया जा चुका है। इसमें से एक कक्ष में शव का पोस्टमार्टम व क्लिनिंग कक्ष है। वहीं अन्य दो कक्षों में से एक चिकित्सक कक्ष। यहां विद्युत, पानी, पेयजल व परिजनों के रात में रुकने की व्यवस्था भी की गई है। मोर्चरी के आगे सड़क भी बनाई गई है।
प्रयास कर रहे हैं
चिकित्सालय में आधुनिक मोर्चरी का निर्माण हो चुका है। भीषण गर्मी में शव को सुरक्षित रखने के लिए डीप फ्रिज आवश्यक है। इसके लिए प्रयास कर रहे हैं।
डॉ. देवेन्द्र भाटिया, प्रमुख चिकित्सा अधिकारी, राजकीय चिकित्सालय
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