जयपुर |हर सप्ताह मॉनिटरिंग, बड़ी-बड़ी बैठकें लेकिन ग्रामीण विकास की योजनाओं की हालात जस के तस
— पिछले छह माह की साप्ताहिक समीक्षा बैठकों के मिनिट्स से हुआ खुलासा
— छह माह पहले की समीक्षा बैठकों में जो निर्देश दिए गए उनमें से 80 फीसदी निर्देश हर सप्ताह रिपीट होते हैं
— बार-बार समीक्षा के बावजूद ग्राउंड पर न योजनाओं में तेजी आ रही, न सिस्टम सुधर रहा
— समीक्षा बैठक के 25 बिंदुओं में से छह माह में पांच की भी पालना नहीं हुई
— बैठक, पीपीटी, मॉनिटरिंग की इस प्रणाली का ग्राउंड पर असर नहीं होने पर उठे सवाल
— नीचे की मशीनरी पर निर्देशों का असर ही नहीं हो रहा
जयपुर | ग्रामीण विकास और पंचायती राज विभाग के आला अफसर हर सप्ताह योजनाओं की समीक्षा का दावा करते हैं, ख़ामियों पर लंबे-चौड़े निर्देश जारी करते हैं, लेकिन ये निर्देश कागजों में ही दबकर रह जाते हैं। पिछले छह माह की साप्ताहिक समीक्षा बैठकों के निर्देशों की हालात तो यही बयां कर रहे हैं। ग्रामीण विकास और पंचायतीराज विभाग लाभार्थियों और बजट दोनों के हिसाब से सबसे बड़ा विभाग है। मनरेगा जैसी योजना का काम भी यही विभाग देखता है। विभाग के मंत्री और आला अफसर पारदर्शिता और मॉनिटरिंग की लंबी-चौड़ी कवायद भी करते हैं लेकिन ग्राउंड पर नतीजा नहीं दिख रहा।
विभाग के सचिव हर सप्ताह योजनाओं की समीक्षा बैठक करते हैं और ख़ामियों को ठीक करने के निर्देश जारी करते हैं। इस साप्ताहिक बैठक के बाकायदा मिनिट्स जारी होते हैं, ये मिनिट्स जिलों के अफसरों को भी भेजे जाते हैं। पिछले छह माह की साप्ताहिक बैठकों में दिए गए निर्देश और ग्राउंड पर उनकी पालना का अध्ययन किया गया तो हालात बद से बदतर नज़र आए। पिछले छह माह में साप्ताहिक बैठकों के मिनिट्स में दिए गए लगभग अस्सी फीसदी निर्देशों की ग्राउंड पर कोई पालना ही नहीं हुई।
अब साप्ताहिक बैठकों में दिए गए निर्देशों की हालत देखिए, पिछले छह माह से हर बैठक में निर्देश दिए जा रहे हैं कि थर्ड पार्टी निरीक्षण की रिपोर्ट जिलों से मंगवाकर उसकी पालना करवाएं, लेकिन उसकी पालना नहीं हो रही। इसी तरह आवास योजना की पहली किश्त जिन लाभार्थियों की बकाया है, उसका जल्द भुगतान करवाने के छह माह से निर्देश दिए जा रहे हैं| अब-तक पांच हजार से ज्यादा गरीब पैसे का इंतजार कर रहे हैं, उनके मकान अधूरे पड़े हैं।
विधानसभा के लंबित सवालों के जवाब जल्द देने के हर बैठक में निर्देश दिए जा रहे हैं, लेकिन सवालों के जवाब नहीं दिए जा रहे। विभाग की 100 से ज्यादा बंद पड़ी योजनाओं का पैसा सरकारी खातों में जमा करवाने के निर्देश पिछले तीन माह से दिए जा रहे हैं,लेकिन ग्राउंड पर उसका असर ही नहीं हो रहा। ग्रामसेवकों को नई मोबाइल एप के पासवर्ड उपलब्ध कराने के लिए पिछले पांच माह से निर्देश जारी किए जा रहे हैं, अब-तक पासवर्ड नहीं मिले।
मुख्यमंत्री जलस्वावलंबन योजना की वेबसाइट की ऑडिट के निर्देश पिछली पांच बैठकों से दिए जा रहे हैं, लेकिन हालात जस के तस हैं। जब आला अफसरों के निर्देशों की पालना ही ग्राउंड पर नहीं हो तो आम आदमी की तो बिसात ही क्या? ऐसे में ग्रामीण विकास योजनाओं की जमीनी हालात का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है, यही वजह है कि दावों के बावजूद न योजनाएं आगे बढ़ रही हैं, न आम आदमी को उनका फायदा मिल पा रहा।
— पिछले छह माह की साप्ताहिक समीक्षा बैठकों के मिनिट्स से हुआ खुलासा
— छह माह पहले की समीक्षा बैठकों में जो निर्देश दिए गए उनमें से 80 फीसदी निर्देश हर सप्ताह रिपीट होते हैं
— बार-बार समीक्षा के बावजूद ग्राउंड पर न योजनाओं में तेजी आ रही, न सिस्टम सुधर रहा
— समीक्षा बैठक के 25 बिंदुओं में से छह माह में पांच की भी पालना नहीं हुई
— बैठक, पीपीटी, मॉनिटरिंग की इस प्रणाली का ग्राउंड पर असर नहीं होने पर उठे सवाल
— नीचे की मशीनरी पर निर्देशों का असर ही नहीं हो रहा
जयपुर | ग्रामीण विकास और पंचायती राज विभाग के आला अफसर हर सप्ताह योजनाओं की समीक्षा का दावा करते हैं, ख़ामियों पर लंबे-चौड़े निर्देश जारी करते हैं, लेकिन ये निर्देश कागजों में ही दबकर रह जाते हैं। पिछले छह माह की साप्ताहिक समीक्षा बैठकों के निर्देशों की हालात तो यही बयां कर रहे हैं। ग्रामीण विकास और पंचायतीराज विभाग लाभार्थियों और बजट दोनों के हिसाब से सबसे बड़ा विभाग है। मनरेगा जैसी योजना का काम भी यही विभाग देखता है। विभाग के मंत्री और आला अफसर पारदर्शिता और मॉनिटरिंग की लंबी-चौड़ी कवायद भी करते हैं लेकिन ग्राउंड पर नतीजा नहीं दिख रहा।
विभाग के सचिव हर सप्ताह योजनाओं की समीक्षा बैठक करते हैं और ख़ामियों को ठीक करने के निर्देश जारी करते हैं। इस साप्ताहिक बैठक के बाकायदा मिनिट्स जारी होते हैं, ये मिनिट्स जिलों के अफसरों को भी भेजे जाते हैं। पिछले छह माह की साप्ताहिक बैठकों में दिए गए निर्देश और ग्राउंड पर उनकी पालना का अध्ययन किया गया तो हालात बद से बदतर नज़र आए। पिछले छह माह में साप्ताहिक बैठकों के मिनिट्स में दिए गए लगभग अस्सी फीसदी निर्देशों की ग्राउंड पर कोई पालना ही नहीं हुई।
अब साप्ताहिक बैठकों में दिए गए निर्देशों की हालत देखिए, पिछले छह माह से हर बैठक में निर्देश दिए जा रहे हैं कि थर्ड पार्टी निरीक्षण की रिपोर्ट जिलों से मंगवाकर उसकी पालना करवाएं, लेकिन उसकी पालना नहीं हो रही। इसी तरह आवास योजना की पहली किश्त जिन लाभार्थियों की बकाया है, उसका जल्द भुगतान करवाने के छह माह से निर्देश दिए जा रहे हैं| अब-तक पांच हजार से ज्यादा गरीब पैसे का इंतजार कर रहे हैं, उनके मकान अधूरे पड़े हैं।
विधानसभा के लंबित सवालों के जवाब जल्द देने के हर बैठक में निर्देश दिए जा रहे हैं, लेकिन सवालों के जवाब नहीं दिए जा रहे। विभाग की 100 से ज्यादा बंद पड़ी योजनाओं का पैसा सरकारी खातों में जमा करवाने के निर्देश पिछले तीन माह से दिए जा रहे हैं,लेकिन ग्राउंड पर उसका असर ही नहीं हो रहा। ग्रामसेवकों को नई मोबाइल एप के पासवर्ड उपलब्ध कराने के लिए पिछले पांच माह से निर्देश जारी किए जा रहे हैं, अब-तक पासवर्ड नहीं मिले।
मुख्यमंत्री जलस्वावलंबन योजना की वेबसाइट की ऑडिट के निर्देश पिछली पांच बैठकों से दिए जा रहे हैं, लेकिन हालात जस के तस हैं। जब आला अफसरों के निर्देशों की पालना ही ग्राउंड पर नहीं हो तो आम आदमी की तो बिसात ही क्या? ऐसे में ग्रामीण विकास योजनाओं की जमीनी हालात का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है, यही वजह है कि दावों के बावजूद न योजनाएं आगे बढ़ रही हैं, न आम आदमी को उनका फायदा मिल पा रहा।
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