शनिवार, 4 जून 2016

कुपोषण के खिलाफ जंग में मात खाता दिख रहा राजस्थान

कुपोषण के खिलाफ जंग में मात खाता दिख रहा राजस्थान


जयपुर। सरकार की ओर से कुपोषण को दूर करने के लिए भले ही हर माह करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हों, लेकिन इसके बावजूद आदिवासी अंचल में कुपोषण का कहर जारी है। कुपोषण से ग्रस्त प्रदेश के करीब एक दर्जन जिलों में हालात काफी भयावह है, जहां मासूमों पर मौत का खतरा मंडरा रहा है। इसके चलते ही स्मार्ट सिटी और डिजीटल इंडिया में सहयोग देने वाला प्रदेश स्वस्थ राजस्थान के तौर पर देश में उभरने के बजाय कुपोषण की जंग में हारता दिख रहा है।


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प्रदेश के आदिवासी जिले में कुपोषण से किसी मासूम की मौत पर सियासी रोटियां तो सेकी जाती है, मगर कुपोषण को रोकने के लिए ठोस प्रयास नहीं हो पाते हैं। अशिक्षा और अंधविश्वास के कारण बारां जिले के सहरिया क्षेत्र शाहाबाद, किशनगंज में आलम यह है कुपोषित बच्चे को MTC में भर्ती कराने के बजाय झोलाछाप डाक्टरों को दिखाया जा रहा हैं, जो कि बेदह शर्मनाक होने के साथ ही कई बार जानलेवा भी साबित हो सकता है।




कमोबेश यही हाल बारां, डूंगरपुर, उदयपुर, राजसमंद, प्रतापगढ़, करौली, धौलपुर, श्रीगंगानगर, कोटा और बूंदी बने हुए हैं। अगर महिला एवं बाल विकास विभाग और चिकित्सा विभाग, जिनमें डेढ़ लाख से अधिक कर्मचारी हैं उनकी ओर से कुपोषण की रोकथाम के लिए किए जा रहे खर्चे की बात करें तो करीब 100 करोड़ रुपए प्रतिमाह खर्च किए जा रहे हैं। यानि पर घंटे में साढ़े बारह लाख रुपए कुपोषण की रोकथाम के लिए खर्च किए जा रहे हैं।




इधर, झोलाछाप डॉक्टरों की वजह से उचित इलाज के भाव में ये बच्चे दम तोड़ भी रहे हैं और कुपोषण का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है। आंगनबाडी केंद्र महज दिखावा साबित हो रहे हैं। बावजूद इसके विभाग के मंत्री सुधार का दावा कर रहे हैं।




प्रदेश में लाखों बच्चे कुपोषित हैं, मगर प्रदेश में ऐसे लगभग 15 हजार अतिकुपोषित बच्चे हैं, जो मौत के मुहाने पर खड़े है और जिनका इलाज कुपोषण उपचार केंद्रों में होना चाहिए। विशेषकर आदिवासी जिलों की यह भयावह तस्वीर है।



संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, भारत में हर साल कुपोषण के कारण मरने वाले पांच साल से कम उम्र वाले बच्चों की संख्या दस लाख से भी ज्यादा है। वहीं, एसीएफ की रिपोर्ट बताती है कि भारत में कुपोषण जितनी बड़ी समस्या है, वैसी पूरे दक्षिण एशिया में और कहीं देखने को नहीं मिली है। गौरतलब है कि दक्षिण एशिया में भारत कुपोषण के मामले में सबसे बुरी हालत में है।




राजस्थान और मध्यप्रदेश में किए गए सर्वेक्षणों में पाया गया कि देश के सबसे गरीब इलाकों में आज भी बच्चे भुखमरी और कुपोषण के कारण अपनी जान गंवा रहे हैं। वहीं प्रदेश के चिकित्सा मंत्री इस तस्वीर को झुंठला कर सब्जबाग दिखाते नजर आ रहे हैं।




बहरहाल, ऐसे में कुपोषण से हारती जिंदगी की यह तस्वीर सरकारी दावों पर तो सवालिया निशान लगा ही रही है, वहीं आजादी के 68 सालों बाद भी अगर झोलाछाप डाक्टरों के जाल में जिंदगियां दम तोड़ रहीं है, तो यह हमारी शिक्षा प्रणाली को भी कटघरे में खड़ा कर रही है। इसके साथ ही प्रदेश के वे मासूम, जिन्हें प्रदेश का भविष्य होना था, वे अपनी सांसों के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

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