शनिवार, 18 जून 2016

जालोर सांसद देवजी पटेल ने जालोर जिले में विकास हेतु रखी मांगें



जालोर सांसद देवजी पटेल ने जालोर जिले में विकास हेतु रखी मांगें
जालोर भारतीय जनता पार्टी का जिला स्तरीय कार्यकर्ता सम्मेलन शुक्रवार को भीनमाल में आयोजित किया गया। जिसमें राज्य सरकार ने छः मंत्रीयों की टीम को जिम्मेदारी दी गई। जिसमें मंत्रीयों ने बूथ स्तरीय कार्यकर्ताओं से रूबरू होकर क्षेत्र की समस्याओं एवं सुझाव लिये गये। क्षेत्रीय सांसद देवजी पटेल ने पार्टी एवं संगठन के स्थानीय कार्यकर्ताओं, पदाधिकारियों एवं जनप्रतिनियिों की मांग पर राज्य सरकार से जालोर जिले में विकास हेतु मांगें रखी।

मेगा फूड प्रासेसिंग पार्क (एग्रो फुड पार्क): क्षेत्र किसान सकारात्मक सोच आधुनिक तकनीक व मेहनत के बुते कृषि के क्षेत्र में नित्य नये कीर्तिमान रच रहे हैं। यहां के किसान खेतो सें अच्छी पैदावार ले रहे है। क्षेत्र की जलवायु व भूमि इसफगोल, जीरा, सरसों, मिर्च, टमाटर व आलू की खेती के लिए बहुत ही उपयुक्त हैं। लेकिन फसलों के संरक्षण तथा संसाधनों के अभाव में किसानों को इनके मेहनत का पुरा फायदा नहीं मिल रहा है। आज भी इन किसानांे को फसल के संरक्षण के अभाव में बडी मात्रा में उपज खराब हो जाती है। ऐसे में किसान को अपनी उपज को औने-पौने दामांे में बेचना पड़ता है। क्षेत्र में मेगा फुड पार्क की पुरी सम्भावनाएॅ है। इस पार्क में लघु, मध्यम एवं बडे उद्योग लगाये जा सकते हैं। पार्क बनने से स्थानीय किसानांे को एक ही स्थान पर पैकेजिग परिवहन वितरण मुद्रण की विश्व स्तर की सुविधा मिल सकेगी, जिससे इनके आय में वृद्धि होगी तथा रोजगार सृजन भी होगा। अतः किसानों की समस्या को देखते हुए जालोर जिले में मेगा फुड पार्क स्थापित किया जायें।

कृषि विष्व विद्यालय: जालोर जिला राज्य और देश की तुलना मे काफी पिछडा हुआ है। जिले का क्षेत्रफल काफी बडा है तथा यहाॅ मानव शक्ति भी पर्याप्त है साथ ही स्त्री-पुरूष अनुपात भी राज्य की तुलना मे ठीक है। जिले मे लोगो की आय का प्रमुख साधन कृषि है। जिले में बडी मात्रा मे पशुधन है तथा कृषि के बाद लोेगों का आजीविका प्रमुख साधन पशुपालन ही हैं। किसानांे के पास तुलनात्मक रूप से जोत का आकार बडा हैं। जालोर जिला में नर्मदा नहर के आने से पर्याप्त सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो गयी हंै। सिंचित क्षेत्र मे नगदी फसले जैसे- अरण्डी, जीरा व ईसबगोल, मीर्च, पपीता, खजुर की खेती के अच्छे अवसर हैं। लेकिन प्रशिक्षण के अभाव मे यहाॅ के किसान उन्नत कृषि तकनीकी का खेतों में कम उपयोग करते हैं। नर्मदा नहर प्रोजेक्ट आने के पश्चात यहाॅ के किसानों के लिए मिश्रित खेती व फसलांे के विविधिकरण के अपार अवसर है। एक दशक से यह क्षेत्र विष्व का चालीस फीसदी ईसफगोल का उत्पादन करता है। इस प्रकार आज जालोर ईसबगोल उत्पादन के लिहाज से भारत ही नही विष्व मे अहम योगदान रखता है। भीनमाल में ईसबगोल की विशिष्ट मण्डी भी स्थापित है। आज यहाॅ की आवश्यकता है कि हाईस्कूल और इंटरमीडियट पास युवकों को रोजगार संबंधी शिक्षा मिल सके और वे सफल कृषि उद्यमी बने, यहाॅ पर कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना होने से कृषि और ग्रामीण व्यवस्था को रोजगार उन्मुखी बनाना जा सकता है तथा गांवों से युवाओं का पलायन भी रोका जा सकता है। अतः कृषि क्षेत्र में रोजगार को बढ़ाने के लिए जालोर मे कृषि विश्वविद्यालय खोला जायें।




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काॅल्ड स्टोरेज: रानीवाडा व जसवंतपुरा क्षेत्र में किसानों द्वारा टमाटर एवं आलू की खेती की जाती हैं। लेकिन क्षेत्र में काॅल्ड स्टोरेज न होने के कारण किसानों को टमाटर एवं आलू मजबूरन आने-पौने दाम में गुजरात राज्य में बेचने को मजबूर होना पड़ रहा हैं। जिससे किसानों को पैदावार का भरपूर लाभ नहीं मिलता हैं। यदि क्षेत्र में किसानों को काॅल्ड स्टोरेज की सुविधा उपलब्ध करायी जाए तो यह क्षेत्र पोटेट व टमाटो हब बन सकता हैं।

कृषि मंडी की स्थापना एवं मूलभूत सुविधा उपलब्ध करवाना: जालोर जिले में प्रत्येक ब्लाॅक पर मुख्यालय पर कृषि मंडी न होने के कारण किसान अपनी उपज बैचने के लिए अधिकतर गुजरात राज्य में जाते हैं। जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान होने के साथ-साथ फसलों की पैदावार का मूल्य नहीं मिलती हैं। जिले में जहाॅ कृषि मंडी संचालित हैं, वहाॅ मूलभूत सुविधाओं का नितान्त अभाव हैं।

विद्यालयों में कृषि विज्ञान संकाय: जालोर जिले में अधिकर किसान परिवार निवास करते हैं। किसानों के बालक विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने के बाद उच्च शिक्षा कृषि के संबंध में सिखने के इच्छुक भी होते हैं। लेकिन जिले में विद्यालयों में कृषि संकाय न होने के कारण इस विषय से अनभिज्ञ रहते हैं। अतः इस समस्या समाधान हेतु जिले में राजकीय विद्यालयों में कृषि संकाय की स्वीकृति प्रदान की जायें।

गो पालन को प्रोत्साहान: जिस परिवार में गाय पाली जाती हैं, उसकी प्रति गाय पर अनुदान राशि दी जायें, ताकि पशुपालक अपने खेत में जैविक खाद का उपयोग कर सके, जिससें गाय का पालन-पोषण एवं संवर्धन भी हों सकें। इस व्यवस्था से प्रदेश की देशी नस्ल को बढ़ावा मिलेगा।

जालोर के स्वर्णगिरि दुर्ग को पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित करना: जालोर का स्वर्णगिरि दुर्ग एक हजार साल का ऐतिहासिक वैभव समेटे हुए हैं। इस दुर्ग से स्थापत्य कला का सौन्दर्य झलकता हैै। यह दुर्ग राज्य सरकार के पुरातत्व विभाग की धरोहर है एवं वर्ष 1956 से संरक्षित स्मारक है। लेकिन संरक्षण के नाम पर की जा रही औपचारिकता और पुरातत्व विभाग द्वारा पर्याप्त देखभाल न होने के कारण यह ऐतिहासिक धरोहर खत्म हो रही है। आश्चर्यजनक यह है कि पहाड के उपर बने इस दुर्ग की प्रसिद्वि होने के बावजूद इसे देखने वाला कोई नही हैं। कभी दुश्मनों की बडी-बडी तोपे भी इसकी दीवार भेदने मे नाकाम हो गई थी और आज यहाॅ की दीवारे अपने आप गिरती जा रही है। वर्तमान में इस दुर्ग को इसका वैभव पुनः लौटाने की आवश्यकता है। जालोर की आन-बान-शान का प्रतीक जालोर दुर्ग आज भी अपने शौर्य की गाथा गाता है। लेकिन इस ऐतिहासिक स्थल तक पहुंचने के लिए कोई भी सुगम रास्ता नहीं हैं। दुर्ग तक पहुंचने के लिए 2 हजार सीढ़ियांे की दुर्गम चढाई है। इस स्थिति में बाहर से यहां आने वाले लोग या पर्यटक यहाॅ नही पहुच सकते । इसके लिए दुर्ग तक एप्रोच रोड जरूरी हैं। अतः जालोर जिला में पर्यटक को बढावा देने के लिए ऐतिहासिक स्वर्णगिरि दुर्ग की पहाडी पर आधारभूत संरचना विकसित की जायें।







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जालोर में एकलव्य आदर्ष आवासीय काॅलेज खोलना: पश्चिमी राजस्थान का जालोर जिला शिक्षा के क्षेत्र में अत्यन्त पिछड़ा हुआ हैं। क्षेत्र में अधिकतर लोग ग्रामीण क्षेत्र में निवास करते हैं, जिनका व्यवसाय कृषि एवं पशुपालन हैं। क्षेत्र में कुल जनसंख्या का लगभग 30 प्रतिशत संख्या अनुसूचित जाति एवं जनजाति हैं। क्षेत्र में एकलव्य आदर्श आवासीय काॅलेज न होने के कारण गरीब एवं अनुसूचित जाति एवं जनजाति परिवेश में जीवन यापन करने वाले विद्यार्थी शिक्षा से वंचित हैं। अतः जालोर जिले में एकलव्य आदर्श आवासीय काॅलेज खोलने की स्वीकृति प्रदान की जायें।

जालोर जिले में अतिरिक्त जवाहर नवोदय विद्यालय खोलना: जालोर जिला साक्षरता एवं शिक्षा के क्षेत्र में पिछडा हुआ हैं तथा जिले की साक्षरता दर 2011 की जनगणना के अनुसार 55.58 प्रतिशत हैं। जिससे पुरूषों एवं महिलाओं की साक्षरता दर क्रमशः 71.83 तथा 38.73 प्रतिशत हंै। राजस्थान में यह जिला सबसे कम साक्षरता वाला जिला हैं। साक्षरता में लैंगिक अंतर भी सबसे अधिक हैं। यहां अनुसूचित जाति कुल जनसंख्या का 18.6 प्रतिशत तथा अनुसूचित जनजाति 9.00 प्रतिशत हैं। जिले का भूगौलिक विस्तार भी बडा है। वर्तमान जवाहर नवोदय विद्यालय जसवंतपुरा जो जिला मुख्यालय से 75 किमी दूर है, वर्ष 1987 में स्थापना के बाद निःशुल्क एवं गुणवतापूर्ण शिक्षा उपलब्ध करवा रहा हैं। क्षेत्र के विद्यार्थियों की समस्याओं तथा विशेष परिस्थतियों को मध्यनजर रखते हुए एक अतिरिक्त नवोदय विद्यालय सायला (जालोर) में स्वीकृत किये जाने की आवश्यकता हैं ताकि और अधिक संख्या में बच्चों को गुणवता पूर्ण शिक्षा दी जा सकंे। इस हेतु प्रदेश सरकार द्वारा केंद्र को प्रस्ताव भेजा जायें।

जालोर में मेडिकल काॅलेज की स्थापना: वर्ष 2001 की जनगणना अनुसार संसदीय क्षेत्र जालोर-सिरोही की कुल जनसंख्या लगभग 24,85,286 है। क्षेत्र में 2001-2011 के दशक में जनसंख्या में कुल वृद्धि 26.31 प्रतिशत रही है। क्षेत्र में शहरी आबादी कम है, जबकि ग्रामीण आबादी लगभग 92.41 प्रतिशत हैं। ग्रामीण आबादी अधिक होने से स्पष्ट है कि ग्रामीण अचंल के लोग बिमार होने पर निजी अस्पतालों में ईलाज करवाने को मजबूर होते हैं। क्षेत्र से प्रतिदिन सैकड़ों मरीज गाड़ीयों से जाॅच एवं ईलाज हेतु गुजरात जाते हैं। जिससे लोगों को आर्थिक नुकसान एवं समय बर्बाद होता हैं। गरीब एवं पिछड़े क्षेत्र के लोग गुजरात के निजी अस्पतालों में मंहगा ईलाज लेकर आर्थिक रूप से कमजोर हो जाते हैं। उक्त क्षेत्र में यदि मेडिकल काॅलेज की अनुमति दी जाती है तो भूमि की उपलब्धता करवा दी जायेंगी साथ ही भामाशाह द्वारा भवन निर्माण में आर्थिक सहयोग देने को सहमत हैं। अतः संसदीय क्षेत्र जालोर-सिरोही में मेडिकल काॅलेज खोलने की अनुमति प्रदान की जायें।

चिकित्सालयों में आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध करवाना: जिले में सरकारी अस्पतालों में आवश्यक मुलभूत सुविधाओं का नितान्त अभाव हैं। जिससे मरीजों को समस्याओं का सामना करना पड़ता हैं। अतः राजकीय चिकित्सालयों में आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध करवाई जायें।







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जिले में पेयजल हेतु नर्मदा का पानी उपलब्ध करवाना: जालोर जिले में पेयजल की सबसे बड़ी समस्या हैं। क्षेत्र में गीरते भू-जल स्तर एवं फ्लोराईड युक्त पानी क्षेत्र के लोगों के लिए एक भयंकर समस्या हैं। पेयजल व्यवस्था हेतु नर्मदा नहर परियोजना पर एफ.आर, ई.आर, डी.आर प्रोजेक्ट एवं कलस्टर योजनाओं के कार्य वर्तमान में प्रगतिरत हैं। लेकिन लम्बा समय गुजर जाने के बाद भी कार्य पूर्ण नहीं किया गया हैं। अतः उक्त परियोजनाओं अतिशीघ्र पूर्ण करवाकर पेयजल उपलब्ध करवाया जायें।

माही बजाज परियोजना: माही नदी का पानी जालोर जिले सहित सिरोही, बाड़मेर को सुलभ कराने की महत्वकांक्षी योजना 25 साल से कागजों में दफन है ऐसे में आमजन के साथ ही भूमिपुत्रांे की उम्मीदें भी टूटने लगी है। दरअसल वर्ष 1966 में राजस्थान व गुजरात सरकार में हुए समझौते के अनरूप माही परियोजना की कयावाद शुरू हुई। इसके बाद गुजरात सरकार ने राज्य को पानी की आवश्कता का हवाला देते हुए पानी देने से मना कर दिया। बाद में समझौता कमेटी के जरिए इस पर सहमति बनाने के प्रयास किए गए। वर्ष 1988 में आखिर बार इस पर मंथन किया गया। इसके बाद से यह परियोजना कागजों में दफन है। परियोजना के तहत बांसवाडा से सुरंग बनाकर जालोर, सिरोही, बाडमेर के अनेक गांवो को माही नदी से पानी दिया जाना था। परियोजना को माही क्रांसिंग पर अनास पिकवियर व चैनल के जरिए डंूगपुर जिले के टिमरूआ गांव के पास माही नदी से शुरू कर जालोर के बागोडा उपखंड अंतर्गत विशाला गांव तक प्रस्तावित किया गया था। योजना से समांतर 5.94 लाख एवं 7.11 लाख एकड़ भुमि को लिफ्ट से सिचिंत किया जाना प्रस्तावित था। माही बजाज परियोजना की खोसला कमेटी एवं राजस्थान-गुजरात समझौते के अनुसार पानी की मात्रा 40 टीएमसी है। निष्पादित अनुबंध के अनुसार गुजरात राज्य से राजस्थान में उपयोग के लिए सहमति प्राप्त करने एवं इस जल उपयोग के माही बेसिन मास्टर प्लान का कार्य राज्य सरकार स्तर पर नेशनल वाटर डवलपमेंट एजेंसी नई दिल्ली को आवंटित किया हुआ है। जालोर जिला में कम वर्षा के चलते एवं गिरते भू-जल स्तर से पूरा जिला डार्क जोन घोषित किया जा चुका है। गिरते भू-जल स्तर के स्थाई समाधन व जिले को हरा भरा बनाने के लिए माही बांध की वर्षो पुरानी प्रस्तावित योजना का मूर्त रूप देने की आवश्यकता है। अतः क्षेत्र की पेयजल की समस्या को देखत हुए पिछले 25 वर्षो से कागजो में दम तोड रही माही बजाज परियोजना को जल्द से जल्द शुरू किया जायें।

विद्युत विभाग का चीफ आॅफिस जालोर में खोलना: क्षेत्र के विद्युत संबंधी मामले निटपाने का चीफ कार्यालय जालोर का बाड़मेर एवं सिरोही जिले का जोधपुर में हैं। उक्त दोनांे जिलों का चीफ आॅफिस जालोर में बनाया जाना बहुत आवश्यक हैं। वर्तमान में नर्मदा नहर परियोजना का कार्य प्रगतिरत हैं, जो विद्युत विभाग, जलसंसाधन एवं जन स्वास्थ्य अभियान्त्रिक विभाग के सामूहिक प्रयास से इस प्रोजेक्ट को पूर्ण करना संभव होगा। नर्मदा नहर परियोजना का चीफ आॅफिस भी वर्तमान में जालोर जिले के सांचैर में स्थापित हैं। अतः प्रोजेक्ट के सफल क्रियान्वयन हेतु विद्युत विभाग का चीफ कार्यालय जालोर में स्थापित करना जनहित में उचित रहेंगा।




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आहोर-जालोर आरओबी का निर्माण: जालोर शहर के पास आहोर मार्ग पर आरओबी (आॅवर ब्रीज) निर्माण की स्वीकृति जारी की गई। लेकिन लम्बे समय से निर्माण कार्य नहीं हो रहा हैं। अतः उक्त आरओबी का जनहित में शीघ्र निर्माण करवाया जायें।

भीनमाल बाईपास सड़क निर्माण: जालोर जिले के भीनमाल शहर जो की घनी आबादी वाला मुख्य शहर हैं। उपखंड सांचोर, चितलवाना, रानीवाड़ा, भीनमाल, बागोड़ा क्षेत्र के लोगों को जिला एवं संभाग मुख्यालय पर आने-जाने पर शहर के मुख्य बाजार से गुजरना पड़ता हैं। बाजार में स्थानीय लोगों की भीड़-भाड़ होने से साधनों के आवागमन में दुविधा रहती हैं एवं पूरे दिन ट्राफिक जाम रहता हैं। भीनमाल शहर में क्षेत्र का सबसे बड़ा रेलवे स्टेशन है, जहां लंबी दूरी की ट्रेनों का स्टोपेज भी हैं। शहर के दोनों ओर रेलवे क्राॅसिंग भी लगती हैं। उक्त सड़क पर मालवाड़ा, कोड़ी, भीनमाल शहर, बागरा, जालोर, जैतारण (पाली) पर रेलवे क्राॅसिंग से गुजरना पड़ता हैं। उक्त मार्ग पर सरकार द्वारा तीन रेलवे ब्रीज स्वीकृत हुए हैं, लेकिन एक आरओबी के खर्च के बराबर भीनमाल बाईपास सड़क का निर्माण किया जा सकता हैं। जिसमें जिला जिला एवं संभाग मुख्यालय पर आने-जाने वालों लोगों के समय एवं आये दिन होने वाली सड़क दुर्घटनाओं एवं ट्राफिक जाम की दुविधा से बचा जा सकता हैं। अतः भीनमाल शहर के (कोड़ी से 72 जिन्नालय के ऊपर होते हुए खानपुर तक) बाईपास सड़क निर्माण की जनहित में स्वीकृति जारी की जायें।

चारणीम-चितलवाना सड़क निर्माण: नेशनल हाईवे नम्बर 15 के निर्माण से पूर्व चितलवाना जालोर जिले का एक प्रगतिशील मुख्य गांव था। उस समय सांचोर-बालोतरा वाया चितलवाना पड़ोसी राज्य गुजरात को उत्तर-पश्चिम राजस्थान से जोड़ने वाला एकमात्र मार्ग था। इसी विशिष्टता के विभाग द्वारा यहां एक सरकारी डाक बंगला बनवाया गया था और क्षेत्र के ही सरवाना ग्राम से पुलिस थाना को स्थानांतरित कर यहां स्थापित किया गया, लेकिन हाईवे के चालू हो जाने से एवं चितलवाना के पास बहने वाली लूणी नदी का पाट बीच में होने से कच्चा रूट बन्द कर दिया गया। यद्यपि उपखंड मुख्यालय, तहसील मुख्यालय, पंचायत समिति कार्यालय, पशु चिकित्सालय, विभिन्न चार बैंकों की शाखाएं आदि खोले जा चुके हैं, तथापि आवागमन के समुचित साधन न होने से अपेक्षित विकास नहीं हो पा रहा हैं। यह कस्बा एकमात्र पूर्व दिशा मे हाईवे संख्या 15 से जुडा हुआ हैं। शेष मे से पश्चिमी मार्ग कई जगह मीसींग रोड़ से प्रभावित हैं। दक्षिण में सांचोर की तरफ वाले मार्ग पर दो बार सांसद मद से स्वीकृतियां जारी कर सडक निर्माण कराया हैं। लेकिन उत्तर दिशा में लूनी नदी के उस पार वाले 32 गांवो की जनता को दो-तीन बार बसों को बदल कर तथा करीब 25 किलोमीटर का अधिक चक्कर लगाकर धन व समय को व्यय करके चितलवाना आना-जाना पड़ता हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय हैं कि इसके बीच लूनी नदी नहीं आने से इस रोड पर टत्ठ नहीं बनाना पड़ेगा और यह एक बारहमासी सड़क बन जायगी एवं यह सांचोर के लिए बाईपास हो जायेगा। अतः चारणीम से चितलवाना तक के लगभग 5-6 किलोमीटर मार्ग पर डामर सडक बनाने की स्वीकृति दी जायें।




नर्मदा नहर से वंचित गांवों को जोड़ना: नर्मदा नहर का नीर जब राजस्थान प्रदेश के सीलू गांव में प्रवेश किया तब स्थानीय लोगों में बहुत खुश थे कि उन्हें अब पेयजल एवं सिंचाई हेतु नर्मदा का मीठा नीर उपलब्ध होगा। लेकिन किसान हित को नजर अंदाज कर विभागीय अधिकारियों द्वारा बिना क्षेत्र का ज्ञान के सांचोर एवं चितलवाना उपखंड क्षेत्र के कई गांवों को वंचित किया गया। वंचित गांवों को नर्मदा कमांड एरिया से जोड़ा जायें।

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