शुक्रवार, 22 अप्रैल 2016

बाड़मेर.एक बिरादरी एेसी भी, जिसका आंगन सदियों से कुंवारा



बाड़मेर.एक बिरादरी एेसी भी, जिसका आंगन सदियों से कुंवारा
एक बिरादरी एेसी भी, जिसका आंगन सदियों से कुंवारा

शहर से 10 किलोमीटर दूर आटी मालाणी गांव की पहाडिय़ों की तलहटी में स्थित मेघवाल समाज के जयपाल गौत्र की कुलदेवी चामुंडा माता का मंदिर। यह मंदिर बेटियों की शादी के लिए जाना जाता है। जयपाल समाज की सदियों से परम्परा रही है कि बेटी का विवाह मंदिर परिसर में ही होता है। इस कारण उनके घर के आंगन आज भी कुंवारे हैं। कहा जाता है कि घर के आंगन में जब तक बेटी का विवाह नहीं होता, तब तक उसे कुंवारा ही माना जाता है। मंदिर में शादी की परम्परा के बारे में गांव के बुजुर्ग चेतनराम जयपाल की मानें तो लगभग 250 वर्षों से यह परम्परा चली आ रही है।

एेसे हुई शुरुआत

लगभग 250 वर्ष पूर्व जैसलमेर के खुहड़ी गांव से जयपाल गौत्र के लोग आटी आकर बसे। तब वह खुहड़ी गांव से अपने साथ में लकड़ी के पालणे में माताजी की प्रतिमा लेकर आए। आटी गांव में तत्कालीन जागीरदार हमीरसिंह राठौड़ ने उन्हें यहां पर बसने के लिए स्थान दिया। उस स्थान पर बिरादरी के लोगों ने मंदिर बनाकर माताजी की प्रतिमा की प्रतिष्ठा कर दी। मंदिर को ही अपना घर मान लिया। उस समय विवाह योग्य बेटी की शादी मंदिर में ही हुई। फिर यह परम्परा बन गई, जो आज भी कायम है।

पाट बिठाई से विदाई तक सब मंदिर में

बेटी के विवाह का आयोजन पाट बिठाई से शुरू होता है। जयपाल समाज के लोग पाट बिठाई मंदिर से करते हैं। फिर फेरे, भोजन व विदाई तक का कार्यक्रम मंदिर परिसर में ही होता है। इस दौरान आस-पास रहने वाले परिवार विवाह का सामान लेकर मंदिर में ही रुकते हैं। बारात को भी मंदिर में रुकवाते हैं। एक ही स्थान पर सम्पूर्ण कार्यक्रम होता है।

बेटे की बारात भी मंदिर से रवाना

मंदिर परिसर में बेटियों की शादी होती है। वहीं बेटे की शादी में पाट बिठाई की रस्म व बारात की रवानगी भी मंदिर से होती है। बारात के आगमन पर नववधु को भी मंदिर में रुकवाया जाता है। इस दौरान मंदिर में रात को जागरण व अगले दिन सुबह पूजा-पाठ करने के बाद ही नववधू गृह प्रवेश करती है।

सप्तमी पर भरता है मेला

मंदिर में भादवा व माघ सुदी सप्तमी को मेला भरता है। इस दौरान गौत्र सहित आस-पास के लोग मंदिर में पूजा-अर्चना करने आते हैं। नए दूल्हे व दुल्हन शादी की प्रथम चूनड़ी मंदिर में चढ़ाते हैं।

बलि प्रथा पर रोक

मंदिर कमेटी के मंत्री हीरालाल जयपाल बताते हैं कि लगभग 135 वर्ष पहले तक शादी के अवसर पर बलि प्रथा प्रचलित थी, लेकिन जयपाल गौत्र में जन्मे महंत प्रागनाथ महाराज ने इस प्रथा को बंद करवाया। तब से लेकर आज तक बलि प्रथा पर रोक कायम है।

मंदिर ही हमारा घर

सदियों से चली आ रही परम्परा को आज भी कायम रखा है। मंदिर को ही घर मानते हैं। बेटियों की शादी मंदिर में ही होती है।

मेताराम जयपाल, अध्यापक, राउप्रावि आटी

मंदिर में शादी शुभ

जयपाल गौत्र की कुलदेवी चामुंडा माता मंदिर में ही बेटियों की शादी होती है। मंदिर में शादी करना शुभ माना जाता है। परम्परा कायम है।

रणजीत जयपाल, सरपंच, ग्राम पंचायत आटी

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