इस नगर वधू की सुंदरता के कारण हुआ युद्ध, फिर बनी बौद्ध भिक्षुणी
इतिहासकारों के मुताबिक अपनी सुंदरता के लिए मशहूर राज नर्तकी आम्रपाली का जन्म आज से करीब 25 सौ साल पहले वैशाली के आम्रकुंज में हुआ था। कहा जाता है कि वह आम वृक्ष के नीचे से वैशाली गणतंत्र के महनामन नामक एक सामंत को मिली। बाद में वह सामंत राजसेवा से त्याग पत्र देकर आम्रपाली को वैशाली के करीब आज के अंबारा गांव ले आया।
जब आम्रपाली की उम्र करीब 11 वर्ष हुई तो सामंत उसे लेकर फिर वैशाली लौट आया।इतिहासकारों का मानना है कि 11 वर्ष की छोटी-सी उम्र में ही आम्रपाली को सबसे सुंदर घोषित कर नगर वधू यानी वैशाली जनपद 'कल्याणी' बना दिया गया था। इसके बाद गणतंत्र वैशाली के कानून के तहत आम्रपाली को नर्तकी बनना पड़ा।विदेशी यात्रियों ने भी कि है उसकी खूबसूरती की तारीफ
वहां मौजूद शिष्यों को यह बात खल गई। उन्होंने कहा, यह आपके चरणों योग्य नहीं है, लेकिन बुद्ध नहीं माने। बुद्ध के विचार और व्यवहार से आम्रपाली इतनी प्रभावित हुई कि उसने राज नर्तकी का काम छोड़ भिक्षुणी बनने का फैसला किया। उसने अपना आम्र उपवन व अन्य सभी धन भिक्षु संघ के लिए समर्पित कर दिया।
इतिहासकारों के मुताबिक अपनी सुंदरता के लिए मशहूर राज नर्तकी आम्रपाली का जन्म आज से करीब 25 सौ साल पहले वैशाली के आम्रकुंज में हुआ था। कहा जाता है कि वह आम वृक्ष के नीचे से वैशाली गणतंत्र के महनामन नामक एक सामंत को मिली। बाद में वह सामंत राजसेवा से त्याग पत्र देकर आम्रपाली को वैशाली के करीब आज के अंबारा गांव ले आया।
जब आम्रपाली की उम्र करीब 11 वर्ष हुई तो सामंत उसे लेकर फिर वैशाली लौट आया।इतिहासकारों का मानना है कि 11 वर्ष की छोटी-सी उम्र में ही आम्रपाली को सबसे सुंदर घोषित कर नगर वधू यानी वैशाली जनपद 'कल्याणी' बना दिया गया था। इसके बाद गणतंत्र वैशाली के कानून के तहत आम्रपाली को नर्तकी बनना पड़ा।विदेशी यात्रियों ने भी कि है उसकी खूबसूरती की तारीफ
प्रसिद्ध विदेशी चीनी यात्री फाह्यान और ह्वेनसांग के यात्रा वृतांतों में भी वैशाली गणतंत्र और आम्रपाली पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। दोनों ने लगभग एकमत से आम्रपाली को सौंदर्य की मूर्ति बताया। वैशाली गणतंत्र के कानून के अनुसार हजारों सुंदरियों में आम्रपाली का चुनाव कर उसे सर्वश्रेष्ठ सुंदरी घोषित कर जनपद कल्याणी की पदवी दी गई थी।
बिंबिसार ने आम्रपाली के लिए लड़ा था युद्ध
राजा बिंबिसार आम्रपाली पर मोहित हो गया था। उसने आम्रपाली को प्राप्त करने के लिए लिच्छवि से युद्ध किया। आम्रपाली और बिंबिसार का एक पुत्र भी हुआ जिसका नाम जीवक रखा गया। बिम्बिसार ने जीवक को शिक्षा प्राप्ति के लिए तक्षशीला भेजा। यही जीवक वहां से शिक्षा प्राप्त कर प्रसिद्ध चिकित्सक व राज वैद्य बना।
इस तरह बनी भिक्षुणी
एक बार गौतम बुद्ध वैशाली पहुंचे। समाचार सुनकर वहां नर्तकी आम्रपाली भी उनके उपदेश सुनने पहुंची। वहां बुद्ध एक वृक्ष की छाया में बैठे थे और हजारों उपासक उनके उपदेश सुन रहे थे। उपदेश खत्म होने पर आम्रपाली ने नतमस्तक होकर तथागत को अपने यहां अगले दिन भोजन पर आमंत्रित किया। वह बोली, ”तथागत! आपके चरण कमलों से इस दासी की कुटिया पवित्र हो जाएगी।” बुद्ध ने आम्रपाली की प्रार्थना स्वीकार कर ली।वहां मौजूद शिष्यों को यह बात खल गई। उन्होंने कहा, यह आपके चरणों योग्य नहीं है, लेकिन बुद्ध नहीं माने। बुद्ध के विचार और व्यवहार से आम्रपाली इतनी प्रभावित हुई कि उसने राज नर्तकी का काम छोड़ भिक्षुणी बनने का फैसला किया। उसने अपना आम्र उपवन व अन्य सभी धन भिक्षु संघ के लिए समर्पित कर दिया।
क्यों बुद्ध ने स्वीकार किया एक नगर वधू को भिक्षुणी
माना जाता है कि आम्रपाली के मानवीय तत्व से ही प्रभावित होकर भगवान बुद्ध ने भिक्षुणी संघ की स्थापना की थी। इस संघ के जरिए भिक्षुणी आम्रपाली ने नारियों की महत्ता को जो प्रतिष्ठा दी वह उस समय में एक बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है।
सरस कहानी
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