सरकारों-पार्टियों के दलित उत्थान के दावों की सच्चाईः राजस्थान में 82 फीसदी दलित ग्रामीण परिवार 5000 रूपए महीने से कम पर गुजारे को मजबूर
— हर पार्टी अंबेडकर को अपना रही, दलितों का मसीहा बनने का दावा कर रही
— ग्रामीण इलाकों के 3.93 फीसदी दलित परिवार ही सरकारी नौकरी में
— 74,408 ग्रामीण दलित परिवार ही ऐसे हैं जिनमें सरकारी नौकरी में है
— नौकरियों में आरक्षण का लाभ पूरे दलित वर्ग को नहीं मिला
— निजी क्षेत्र की नौकरियों में भी एक फीसदी की ही हिस्सेदारी
— आरक्षण हो या योजनाएं उनका लाभ चुनिंदा दलित परिवारों को ही मिला
— आम दलित को आरक्षसण और योजनाओं दोनों का फायदा नहीं मिला
जयपुर। सरकारें और पार्टियां बाबा साहब अंबेडकर की जयंती धूमधाम से मनाकर दलितों की मसीहा होने के दावे भले करें, लेकिन आजादी के 68 साल बाद भी दलितों की हालत मेंं कोई सुधार नहीं आ पाया है। राजस्थान में 82 फीसदी दलित ग्रामीण परिवार आज भी पांच हजार रुपए महीना भी नहीं कमा पाते, यह आय अगर प्रति व्यक्ति के हिसाब से गिनी जाए तो हजार रुपए प्रति व्यक्ति भी नहीं बैठेगी।
68 साल में दलितों के लिए कितनी ही योजनाएं बनी और सरकारों ने दलित हितैषी होने का खूब ढिंढोरा पिटा। अब जरा कुछ आंकड़ों पर नजर दौड़ा लीजिए, हालात खुद ब खुद पता लग जाएंगे कि हमारी सरकारों की नीतियों से दलित कितना उपर उठ पाए हैं। 2011 में हुई सामाजिक आर्थिक जनगणना के आंकड़ें बताते हैे कि राजस्थान के 18.50 लाख ग्रामीण एससी दलित परिवारों में से महज 18 फीसदी परिवारों की मासिक आय ही पांच हजार रुपए या इससे उपर है। 82 फीसदी ग्रामीण दलित परिवार पांच हजार रुपए भी नहीं कमा पाते।
सामाजिक आर्थिक जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में महज 74, 408 दलित परिवार ही सरकारी नौकरी में हैं यानी कुल ग्रामीण दलित परिवारों का महज 3.93 फीसदी। महज 2.18% दलित परिवार ही आयकर देते हैं। आंकड़े यह बताने के लिए काफी हैं कि सरकारों के तमाम दावों के बावजूद दलितों की स्थिति अमें कोई सुधार नहीं आया है। आरक्षण का लाभ चंद परिवारों को ही मिल पाया है। ऐसे में अंबेडकर के नाम पर दलितों के हितेषी होने का दावा करने वाली पार्टियों और सरकारों के दावों पर सवालिया निशान लग जाता है। सवाल यह उठता है कि दलितों के नाम पर चलाई जा रही भारी भरकम योजनाओं का पैसा आखिर कहां गया, आरक्षण हो या योजनाएं उसका फायदा आम दलित तक तो नहीं पहुंचा, ये आंकड़े बता रहे हैं।
सामाजिक आर्थिक जनगणना में ग्रामीण एससी परिवारों के हालात :
— ग्रामीण एससी परिवार : 18 लाख 91 हजार 189
— प्रदेश के कुल परिवारों का 18.50 फीसदी
— 41189 एससी परिवार यानी 2.18% आयकर देते हैं
— 74408 यानी 3.93% परिवार सरकारी नौकरी वाले हैं
— 15 लाख 66 हजार 817 यानी 82.85% परिवार 5 हजार से कम मासिक आय पर गुजारा कर रहे हैं
— हर पार्टी अंबेडकर को अपना रही, दलितों का मसीहा बनने का दावा कर रही
— ग्रामीण इलाकों के 3.93 फीसदी दलित परिवार ही सरकारी नौकरी में
— 74,408 ग्रामीण दलित परिवार ही ऐसे हैं जिनमें सरकारी नौकरी में है
— नौकरियों में आरक्षण का लाभ पूरे दलित वर्ग को नहीं मिला
— निजी क्षेत्र की नौकरियों में भी एक फीसदी की ही हिस्सेदारी
— आरक्षण हो या योजनाएं उनका लाभ चुनिंदा दलित परिवारों को ही मिला
— आम दलित को आरक्षसण और योजनाओं दोनों का फायदा नहीं मिला
जयपुर। सरकारें और पार्टियां बाबा साहब अंबेडकर की जयंती धूमधाम से मनाकर दलितों की मसीहा होने के दावे भले करें, लेकिन आजादी के 68 साल बाद भी दलितों की हालत मेंं कोई सुधार नहीं आ पाया है। राजस्थान में 82 फीसदी दलित ग्रामीण परिवार आज भी पांच हजार रुपए महीना भी नहीं कमा पाते, यह आय अगर प्रति व्यक्ति के हिसाब से गिनी जाए तो हजार रुपए प्रति व्यक्ति भी नहीं बैठेगी।
68 साल में दलितों के लिए कितनी ही योजनाएं बनी और सरकारों ने दलित हितैषी होने का खूब ढिंढोरा पिटा। अब जरा कुछ आंकड़ों पर नजर दौड़ा लीजिए, हालात खुद ब खुद पता लग जाएंगे कि हमारी सरकारों की नीतियों से दलित कितना उपर उठ पाए हैं। 2011 में हुई सामाजिक आर्थिक जनगणना के आंकड़ें बताते हैे कि राजस्थान के 18.50 लाख ग्रामीण एससी दलित परिवारों में से महज 18 फीसदी परिवारों की मासिक आय ही पांच हजार रुपए या इससे उपर है। 82 फीसदी ग्रामीण दलित परिवार पांच हजार रुपए भी नहीं कमा पाते।
सामाजिक आर्थिक जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में महज 74, 408 दलित परिवार ही सरकारी नौकरी में हैं यानी कुल ग्रामीण दलित परिवारों का महज 3.93 फीसदी। महज 2.18% दलित परिवार ही आयकर देते हैं। आंकड़े यह बताने के लिए काफी हैं कि सरकारों के तमाम दावों के बावजूद दलितों की स्थिति अमें कोई सुधार नहीं आया है। आरक्षण का लाभ चंद परिवारों को ही मिल पाया है। ऐसे में अंबेडकर के नाम पर दलितों के हितेषी होने का दावा करने वाली पार्टियों और सरकारों के दावों पर सवालिया निशान लग जाता है। सवाल यह उठता है कि दलितों के नाम पर चलाई जा रही भारी भरकम योजनाओं का पैसा आखिर कहां गया, आरक्षण हो या योजनाएं उसका फायदा आम दलित तक तो नहीं पहुंचा, ये आंकड़े बता रहे हैं।
सामाजिक आर्थिक जनगणना में ग्रामीण एससी परिवारों के हालात :
— ग्रामीण एससी परिवार : 18 लाख 91 हजार 189
— प्रदेश के कुल परिवारों का 18.50 फीसदी
— 41189 एससी परिवार यानी 2.18% आयकर देते हैं
— 74408 यानी 3.93% परिवार सरकारी नौकरी वाले हैं
— 15 लाख 66 हजार 817 यानी 82.85% परिवार 5 हजार से कम मासिक आय पर गुजारा कर रहे हैं
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