शनिवार, 19 मार्च 2016

बाड़मेर,मेतीसरा मंे तीन पीढि़यांे एक साथ खेलती है जत्था गेर



बाड़मेर,मेतीसरा मंे तीन पीढि़यांे एक साथ खेलती है जत्था गेर
बाड़मेर,19 मार्च। बाड़मेर जिले के सिवाना उपखण्ड के मोतीसरा गांव के बाशिन्दें अपने गांव की वर्षों पुरानी पारम्परिक जत्था गेर नृत्यकला की पहचान कायम रखे हुए है। होली के पर्व पर मारवाड़ की ग्राम्य संस्कृति से ओत-प्रोत अद्भुत पुरूषांे की ओर से नृत्य होता है। मोतीसरा गांव मंे आज भी तीन से चार पीढि़यांे (बेटा,बाप,दादा और पर दादा) एक साथ गेर खेलते है।

जत्था गेर नृत्य के दौरान 15-20 पुरुष ग्रामीण परंपरागत वेशभूषा से सज-धजकर पैरों में भारी भरकम घुंघरु, कमर पर कमरपट्टा, हाथों में सटीयां (डांडीया) लेकर घनवाद्य यन्त्र ,ढोल की थाप एवं थाली की मधुर टंकार से मोहित होकर बड़े जोश, उमंग और उत्साह से एक साथ जत्था बनाकर गोल घेरे में नाचते है। ढोलवादक ढोल को जत्थे के बीच में खड़ा रहकर बजाता है। वहीं गेरिए (नृतक) ढोल की ढंकार के अनुरुप जत्था गेर की विभिन्न शैलियॉ एकवड़ी, बेवड़ी और खोड़ीटांग में स्फूर्ति से अपने आजु-बाजु एक-दुसरे नृतक से डांडियां टकराते हुए अपना हुनर दिखाते है। नाचते- थिरकते गेरियों का यकायक बैठना और पलक झपकते ही खड़ा होना मोतीसरा की गेर का अपना अलग ही ढंग है। जिला प्रशासन से सम्मानित मोतीसरा के गेर नृतकों ने जग विख्यात कुंभलगढ़ फेस्टिवल, जालोर महोत्सव समेत विभिन्न पर्यटन उत्सवांे में भाग लेकर बाड़मेर जिले का नाम गौरवांतित किया है। फाल्गुनी फिजा में सांस्कृतिक सौहार्द घोलने वाला यह गेर नृत्य इन दिनों गांव में धूम मचा रहा है। इसको देखने के लिए आसपास के कई गांवों से ग्रामीण पहुंच रहे है। गेर नृतक तगाराम मेघवाल के मुताबिक जत्था गेर नृत्य उनके गांव की सांस्कृतिक विरासत है। इस अद्भुत कला को वे कई वर्षों से संजोये हुए है।

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