रविवार, 21 फ़रवरी 2016

मातृभाषा दिवस: बोली फूटती है, तब भाषा जन्म लेती है

मातृभाषा दिवस: बोली फूटती है, तब भाषा जन्म लेती है


कोटा बारह कोसा बोली पलटे, बनफल पलटे पाकां बरस छत्तीस जोबन पलटे, लखण न पलटे लाखां....
तात्पर्य है 12 कोस चलने पर बोली बदल जाती है और वन फल पकने पर बदलते हैं। यौवन 36 बरस में पलटता है, लेकिन आदतें जीवनभर नहीं बदलती। आज मातृभाषा दिवस है और बदलती बोली के फूटते बोल ही भाषा के जनक होते हैं। यही कारण है कि साहित्य, धर्म, व्यवसाय समेत हर बात को फैलाने के लिए बोलियों का उपयोग किया गया।

राजस्थानी भाषा की आधा दर्जन बोलियों में हाड़ौती भी शामिल है। हाड़ौती यानी हाड़ा राजाओं की बोली, जो हाड़ौती अंचल में बोली जाती रही है। कोटा, बारां, बूंदी, झालावाड़ और आस-पास के क्षेत्रों में हाड़ौती के बोल ज्यादा सुनाई देते हैं।

15वीं शताब्दी में लिखा युद्ध काव्य

हाड़ौती बोली की शुरुआत का स्पष्ट कोई प्रमाण मौजूद नहीं है। हाड़ौती से जुड़े साहित्यकारों की मानें तो 15वीं शताब्दी में गागरौन के शिवदास गाडण ने अचलदास खींची की वचनिका लिखी। यह एक युद्ध काव्य था, जो कि गद्य और पद्य दोनों में लिखा गया।

शिवदास के ही वंशज के तौर पर पहचाने गए गागरौन के संत पीपाजी के भी कई पद हाड़ौती में मिलते हैं। संत पीपाजी रामानंद के प्रमुख शिष्यों में एक थे। इसके बाद बड़ा नाम सन् 1857 में अपनी कलम से विदेशी दासता के खिलाफ अलख जगाने वाले बूंदी के कवि पं.सूर्यमल्ल मिश्रण का है, जो राजस्थानी की आन बान के वाहक बने।

सूर्यमल्ल मिश्रण ने भरी ऊर्जा, जगाई जनचेतना

बूंदी के राजकवि पं.सूर्यमल्ल मिश्रण ने राजस्थानी कविता को नई चेतना और ऊर्जा दी। इसके बाद भैरवलाल काला बादल का गीत 'अब तो बरसा दे बळती आग काला बादळ रेÓ उनकी पहचान ही बन गया। काला बादल के गीत लोगों में अव्यवस्था के खिलाफ विद्रोह जगाते थे।

तू हाल सभा में चाल म्हारा ढोला जी, तू खाग्यो रे घर को माल म्हारा ढोला जी..., गोली सूँ डरो तो घूँघट लो, थां की पागां म्हॉने दो, लो हाथां में चुड़लो घाल म्हारा ढोला जी। गीत का उपयोग लांबाखोह की महिलाओं ने बरड़ के किसान आंदोलन में अपने पतियों को ले जाने के लिए किया था।

आज की हाड़ौती

आजादी के बाद भी हाड़ौती में कवि सम्मेलनों के माध्यम से कवियों ने गांव-गांव में अलख जगाई। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी हाड़ौती के कवि सम्मेलन हो रहे हैं। कवि सम्मेलनों के सबसे लोकप्रिय कवियों में एक जगदीश सोलंकी ने भी अपनी काव्ययात्रा की शुरुआत में राजस्थानी गीत लिखे और उनके राजस्थानी गीतों का एक लघु संकलन प्रकाशित हुआ।

अतुल कनक ने काव्ययात्रा का शुरुआत तो हिन्दी कविताओं से की, बाद में राजस्थानी की ओर रुख किया। राजस्थानी उपन्यास जूण जातरा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया। अंचल में प्रेमजी प्रेम, डॉ. शांति भारद्वाज राकेश, अंबिका दत्त साहित्य अकादमी पुरस्कार और डॉ.ओम नागर को साहित्य अकादमी का ही युवा पुरस्कार मिला है।

इनका रहा योगदान

डॉ. कन्हैयालाल शर्मा ने हाड़ौती बोली के भाषाई विवेचन के लिए बहुत काम किया। उन्होंने हाड़ौती बोली और साहित्य शीर्षक से पुस्तक लिखी। उन्होंने युद्ध काव्य पृथ्वीराज का कड़ा, लोककथा का संपादन करते हुए रंज्या हीर और तेजाजी का प्रकाशन किया। डॉ.नरेन्द्र नाथ चतुर्वेदी ने 2011 में हाड़ौती अंचल की हिन्दी काव्य परम्परा और विकास पुस्तक लिखी।

हाड़ौती के लोक गीतों पर आधारित कमला कमलेश की पुस्तक हाड़ौती लोक काव्य सम्पदा भी महत्वपूर्ण है। अतुल कनक व ओम नागर ने संयुक्त रूप से 2010 में राजस्थानी भाषा की पत्रिका राजस्थानी गंगा के हाड़ौती विशेषांक का संपादन किया। हाड़ौती में तेजाजी गायन को शब्दों में पिरोने का काम चित्रकार मदन मीणा ने किया।

बाइबिल का अनुवाद

हाड़ौती में बाइबिल का अनुवाद भी किया गया। इसका एक पृष्ठ इंटरनेट पर मौजूद भी है। इस पृष्ठ में हाड़ौती में उपयोग लिए जाने वाले शब्दों की मौजूदगी है। इस पृष्ठ में दिया गया संदेश...ईश्वर के सान्निध्य से आदमी अंधकार से उजास की ओर आता है। हम सब उसी की संतानें हैं।

होने लगा नया लेखन

समय के साथ हाड़ौती लेखन में भी बदलाव आया। नई कविता लेखन के साथ-साथ अनुवाद भी होने लगा। अनुवाद में डॉ.शांति भारद्वाज राकेश, अतुल कनक, ओम नागर और अम्बिका दत्त के साथ ही रामेश्वर शर्मा रामू भैया जुटे हैं।

विभिन्न भाषाओं से हाड़ौती में अनुवाद के साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा आधा दर्जन पुस्तकें प्रकाशित की जा चुकी हैं। अंता से हाड़ौती भाषा की मासिक पत्रिका कूंपळ निकालने के लिए क्षेत्र के साहित्यकारों द्वारा गोष्ठियां की जा चुकी है। जल्द ही इस मासिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू होगा।







साभार प्रमोद मेवाड़ा.

1 टिप्पणी:

  1. जीव वनस्पति सभी में, बसे प्राण अनमोल।
    जीव जंतु कुल विश्व के, मुख अपना ले खोल।
    मुख अपना ले खोल, सभी नें वाणी पाई।
    मानव किन्तु विशेष, ईश ने कृपा दिखाई।
    भाषा दिवस मनाय, कराओ दर्ज उपस्थिति।
    करो प्रकट आभार, बचाओ जीव वनस्पति।।

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