शनिवार, 16 जनवरी 2016

जन-जन की आस्था का केन्द्र भाण्ड़वपुर जैन तीर्थ



जन-जन की आस्था का केन्द्र भाण्ड़वपुर जैन तीर्थ


जेताराम परिहार/जीवाणा

जिले का का अति प्राचीन भाण्ड़वपुर तीर्थ जन -जन की आस्था का केन्द्र बना हुआ है। तीर्थ प्रेरक मुनिराज जयरत्न विजय महाराज की निश्रा में यहा पर वर्ष भर कई धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन होता रहता है । और यहा पर देष भर से दर्षनार्थ श्रद्धालु आते है।मान्यता के अनुचार

विक्रम की सातवीं शताब्दी मे दियावट पट्टी मंे स्थित बेसाला (विशाला)नामक कस्बा था। जिसमें ष्वेताम्बर मूर्तिपूजन जैनों के सैकडों समृद्ध परिवार थे। उस विषाला नगरी में भव्य विषाल सौध षिखरी जिन मन्दिर का निर्माण करवाकर सम्बत् 813 मार्गषीर्श षुक्ला सप्तमी सोमवार को श्री महावीर प्रभु की प्राण प्रतिश्ठा की गई। मात्र जिनालय के एक स्तम्भ पर 813 श्री महावीर इतना लेख उत्कीर्ण है। कालान्तर में मेमन धाडेंतियों के धाड़ के कारण मन्दिर एवं विशाला नगरी खण्डहर बन गई।दैवयाग से प्रभू महावरी की प्रतिमा अखण्ड रही। निकटवर्ती केामता ग्रामवासी श्रीपालजी संघवी आदि जैन श्री वीर प्रभू केा लेने बेसाला ( वर्तमान विषाला) आये। श्री वीर प्रभू केा बैलगाडी में बिराजित कर कोमता ग्राम की और प्रस्थान किया, परन्तु जब बैलगाडी नही चली तब सभी ने स्तुतिपूर्वक वीर प्रभू को प्रार्थना की कि ‘ हे प्रभु! आपकी इच्छा हो वहाॅ पधारिये । हम आपके पीछे-पीछे चलेंगे। ऐसी प्रार्थना कर बैलों की रस्सी खोल दी। स्वतः बैल चलने षुरू हुए जो वर्तमान के पोशाणा मेंगलवा होकर भाण्डुक वन ( वर्तमान में भुण्डवा ) जंगल में बैलगाडी रूक गई। पुनः वहाॅ से आगे चलने के लाख प्रयत्न किए परन्तु सभी प्रयत्न निश्फल हुए । पिछली रात्रि में श्रीपालजी संघवी केा स्वप्न में अधिश्ठायक देव ने कहा कि ‘ प्रभु वीर की यहीं बिराजमान होने की इच्छा है। अतः तेरी षक्ति मुजब चैत्य बनवाकर प्रभु वीर की प्रतिमाजी स्थापित कर , उनकी सेवना पूजना करने से तुम्हारी सभी और से वृद्धि होगी। श्री पालजी संघवी ने प्रातः सभी को स्वप्न संबंधी आदेश कह सुनाया। सभी ने एकमज बनकर वि.सं. 1065 में ऊॅची कुर्सी पर षिखरबद्ध मन्दिर का निर्माण कार्य षुरू करवाया। वि.सं. 1100 के माघ शुक्ला पंचमी गुरूवार के षुभ दिन लगांष में विधिविधानपूर्वक भगवान श्री महावीर स्वामीजी की प्रभावाषाली प्राचीन प्रतिमा को गादिनषीन ( प्रतिश्ठित ) की और षिखर पर स्वर्णकलशध्वजदण्ड स्थापित किए । अद्यावधि मूल षिखर पर कोमता निवासी संघवी परिवार ध्वजारोहण करते है। श्री श्रीपालजी वर्धमान गोत्रीय परिवारजन आज भी अपने बच्चांें के झडुलिये (बाल) यहाॅ उतारते है और वर्श में एकबार तीर्थ-यात्रार्थ अवष्य आते है। उनके जन-धन वृद्धि का यही मुख्य कारण है।



वीरप्रभु की प्रभाविकता एवं वर्तमान में मान्यताः -

1. श्री भाण्डवपुर तीर्थ (भुण्डवा) निवासी सभी आमजन श्री महावीर प्रभु के प्रति अनन्य श्रद्धा-भक्तियुक्त होकर उपासना करते है।

2. विवाह के समय सभी ग्राम निवासी छेडा-बन्दी जुहार (दर्षन) करते आते है।

3. प्रथम बिलोणे का घी श्री महावीरजी के दीपक में दिवले के रूप में चढाते है।

4. अशाढ सुदी 14 ( चैमासी चैदस) के दिन महावीरजी का अगला (कृशि हलोतरा न करना) का पालन करते है।

5. भाद्रवा की पूनम केा प्रति घर से गोला-साकर (नवैध) के रूप में चढाने सभी आते है।

6. नई फसल में से महावीरजी का अंष मानकर कबूतरों केा दाना डालतें है।

7. भगवान महावीर के नाम से ओरण (जंगल) है जिसके कटाई पर गाॅवसाही प्रतिबन्ध (बन्दा) है।

8. पर्व त्यौहार आदि विषेश प्रसंगांे पर एवं मनौति पूर्ण होने पर सभी जन दर्षन करने आते है।





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