शनिवार, 9 जनवरी 2016

कृष्‍ण लीला: रुक्मणि की प्रेम कथा

कृष्‍ण लीला: रुक्मणि की प्रेम कथा
कृष्‍ण लीला: रुक्मणि की प्रेम कथा
श्रीकृष्ण के जीवन में जिस दूसरी महिला की अहम भूमिका रही, वह उनकी पहली पत्नी रुक्मणि थीं। राजकुमारी रुक्मणि विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री थीं। जब कृष्ण बाहु युद्ध के महारथी चाणूर के साथ अखाड़े में उतरे थे, उस समय रुक्मणि मथुरा में ही थीं। वह उन पलों की भी साक्षी थीं, जब कृष्ण ने मथुरा के राजा कंस को झटके में ढेर कर दिया था। मथुरा राज्य में कंस के अत्याचारी शासन को खत्म करने और समता स्थापित करने की ओर श्रीकृष्ण का यह पहला कदम था। सोलह वर्ष की उम्र में जब कृष्ण ने वृंदावन छोड़ा था, उससे पहले ही सारे संसार में उनकी रासलीला की कहानियां मशहूर हो गई थीं।

लोग कृष्ण के नृत्य और वृन्दावन में होने वाली खूबसूरत घटनाओं का वर्णन लोक गीतों के माध्यम से करते थे और बताते थे कि कैसे एक साधारण से गांव के लोग कृष्ण की मौजूदगी में एक साथ इकठ्ठा होकर आनंद और स्नेह से सराबोर हो जाते हैं। रुक्मणि ने बचपन से ही से सब बातें सुन रखी थी। जब कृष्ण ने कंस का वध किया था तो रुक्मणि लगभग बारह साल की थीं। उसी समय से उन्होंने अपना मन बना लिया था कि वह कृष्ण के अलावा किसी और से शादी नहीं करेंगी। उस समय कृष्ण एक मामूली ग्वाले से ज्यादा कुछ नहीं थे, जिसने एक बहादुरी का काम किया था, लेकिन रुक्मणि एक बहुत बड़े साम्राज्य की राजकुमारी थीं। फिर भी वो कृष्ण से विवाह करना चाहती थीं। उन्होंने कृष्ण के सामने अपने प्रेम का इजहार करने के लिए कई तरीके भी आजमाए। कृष्ण भी इस बात से अनजान नहीं थे, क्योंकि उन्हें हर किसी की भावनाओं और इरादों के बारे में पता होता था।









अगले कुछ साल कृष्ण ब्रह्मचारी बनकर घूमते रहे। रुक्मणि ने यह तय कर लिया कि जब भी वे विदर्भ पहुंचकर ‘भिक्षांदेहि’ कहेंगे तो वह उन्हें भिक्षा देने वालों में सबसे आगे होंगी। वो कृष्ण के साथ-साथ घूमती रहीं, हालांकि वह उनके झुंड से अलग रहती थीं। कृष्ण जहां भी जाते, वह वहां पहुंचतीं और उन्हें भिक्षा देतीं। वह उन्हें भिक्षा देने वाली अकेली महिला नहीं थीं लेकिन सबसे खास जरूर थीं, क्योंकि वो कृष्ण से विवाह करना चाहती थीं। ऐसे कई लोग थे जो कृष्ण का पीछा करने की कोशिश करते थे और चाहते थे कि कैसे भी उनकी नजर में आ जाएं। उनके नीले जादू ने लोगों को पागल बना दिया था।









कृष्ण को इसमें बड़ा मजा आता था लेकिन उन्होंने अपने इस जादू का दुरुपयोग कभी नहीं किया। वह बस यही सोचते थे कि लोगों को कैसे ऊपर उठाया जाए। आप चाहे किसी आदमी से प्यार करें या किसी औरत से या फिर किसी गधे से या किसी और से, जब किसी के मन में प्रेम पैदा हो जाता है तो कोई भी समझदार इंसान उसे विकसित ही करना चाहता है, उसे खत्म करना नहीं चाहता। संभव है कि किसी तरह की भावनात्मक विवशता के चलते वह अपने प्यार की दिशा मोडऩे की कोशिश करे, लेकिन उसे खत्म कभी नहीं करना चाहेगा। इसी तरह कृष्ण भी अपने इस नीले जादू को जारी रखते थे। वे लोगों को प्रेम करने के लिए प्रेरित तो करते थे लेकिन साथ ही यह कोशिश भी करते थे कि लोग उस प्यार को एक सही दिशा दे सकें जिससे वह उनके लिए लाभकारी हो सके। वह यह नहीं चाहते थे कि लोगों के मन में निराशा और ईष्र्या आए कि वे उन्हें पा नहीं सके। उनके जीवन में न जाने कितनी ही ऐसी स्थितियां आईं, जब उन्होंने एक स्त्री के स्नेह को ज्यादा सकारात्मक और उपयोगी बनाने के लिए उसे दूसरी दिशा देने की कोशिश की ताकि वह अपने प्रेम को मात्र एक शारीरिक इच्छा न समझे और खुद को एक उच्च संभावना में रूपांतरित कर सके। उनकी इस कोशिश का एक उदाहरण राजकुमारी रुक्मणि भी थीं।









जब भी रुक्मणि को किसी त्योहार या किसी उत्सव का बहाना मिलता तो वह कृष्ण की एक झलक पाने और उनसे बात करने की आस में मथुरा पहुंच जातीं। कृष्ण ने अपनी ओर उनके इस दृढ़ आकर्षण को महसूस किया था, लेकिन वह उनके इस प्रकार के प्रेम को बढ़ावा नहीं देना चाहते थे। वह जानते थे कि रुक्मणि एक राजकुमारी थीं, जबकि वो खुद कहीं के राजा नहीं थे। चूंकि रुक्मणि से विवाह का प्रश्न ही नहीं उठता था, इसलिए वह उनकी इस तरह की प्रेम भावना को और भडक़ाना नहीं चाहते थे। वह हमेशा उनके प्रेम की आग को शांत करने की कोशिश करते थे, लेकिन साथ ही वह उस प्रेम को पूरी तरह कुचलना भी नहीं चाहते थे। इसलिए रुक्मणि के इस प्रेम की ओर बस इतना ही ध्यान दिया कि उसे सही दिशा में मोड़ा जा सके। लेकिन रुक्मणि का निश्चय दृढ़ था।









जब कृष्ण के मित्र उद्धव विदर्भ आए तो रुक्मणि ने अपना निर्णय उन्हें बताते हुए कहा- ‘चाहे जो हो जाए, मैं केवल कृष्ण से ही विवाह करूंगी। अगर उन्होंने मुझसे शादी करने से मना किया तो मैं आग में कूदकर जान दे दूंगी।’ उधर रुक्मणि का भाई रुक्मी उनकी शादी चेदि के राजा शिशुपाल से कराना चाहता था, क्योंकि यह एक बहुत अच्छी संधि होती। रुक्मी की महत्वाकांक्षाएं बहुत बढ़ चुकी थीं। वह अपनी बहन रुक्मणि का विवाह शिशुपाल से कराकर एक बहुत महत्वपूर्ण गठबंधन बनाना चाहता था। खुद वह राजा जरासंध की पोती से विवाह करना चाहता था। चूंकि जरासंध बूढ़ा हो गया था, इसलिए रुक्मी ने अंदाजा लगाया कि अगर जरासंध अपने पूर्वजों की दुनिया में चला जाए तो आसपास के क्षेत्र में वही सबसे शक्तिशाली व्यक्ति होगा और इस तरह वह इस पूरे साम्राज्य का राजा बन जाएगा। उसकी इस मंशा को पूरा करने में रुक्मणि एक बहुत खास मोहरा साबित हो सकती थीं।









रुक्मणि को यह सब पता चल गया। वह उन लड़कियों में से नहीं थीं, जो महिला होने के नाते शांत रह जाएं। रुक्मणि ने इतनी तीव्रता के साथ अपनी बात रखी कि वे समझ ही नहीं पाए कि आखिर उनके साथ क्या किया जाए।









कई बार उनके भाई ने उन्हें जबरदस्ती झुकाने की सोची, लेकिन वह ऐसा करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया क्योंकि रुक्मणि बहुत तेज स्वभाव की थीं। विदर्भ से लौटकर उद्धव ने कृष्ण को बताया कि रुक्मणि केवल आपसे ही विवाह करने की जिद पर अड़ी हुई हैं और अगर ऐसा नहीं हुआ तो वह खुद को खत्म कर लेंगी। उद्धव की यह बात सुनकर कृष्ण मुस्कुराए और बोले – ‘मैंने न जाने कितनी ही राजकुमारियों को यही कहते सुना है, लेकिन बाद में सबने किसी और से शादी कर ली, और अब वे सब खुशी-खुशी जी रही हैं। ऐसा कहना लड़कियों के लिए आम बात है लेकिन बाद में वे सभी अपने लिए योग्य वर से शादी करके उनके साथ आराम से रहने लगती हैं।









कृष्ण की बात सुनकर उद्धव बोले – ‘नहीं, वासुदेव तुम गलत समझ रहे हो। वो बहुत जिद्दी हैं और अपनी मर्जी की मालकिन हैं।’ इस पर कृष्ण ने पूछा, ‘इतनी दृढ़ संकल्प वाली महिला मुझ जैसे ग्वाले से विवाह क्यों करेगी भला? वह अपने लिए कोई सुंदर सा राजकुमार ढूंढ लें और उससे विवाह कर लें।’ लेकिन रुक्मणि ने अपना इरादा नहीं बदला और वह इस पर अड़ी रहीं।









जब कृष्ण और बलराम को जरासंध के आगमन को टालने और नगर को जलने से बचाने के लिए मथुरा छोडऩा पड़ रहा था तो रुक्मणि के दादा कैशिक ने उन दोनों को आसरा दिया था। ऐसा उन्होंने इसलिए किया, क्योंकि रुक्मणि ने उन्हें धमकी दी थी कि अगर उन्होंने उन दोनों जरूरतमंदों की मदद नहीं की तो वह उनके सामने ही अपनी जान दे देंगी। ऐसे में कैशिक के सामने इन दोनों लडक़ों को सहारा देने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा था। कुछ समय बाद रुक्मणि के लिए एक स्वयंवर का आयोजन किया गया। स्वयंवर एक ऐसा आयोजन होता था, जिसमें राजकुमारी अपना मनपसंद वर चुन सकती थी। हालांकि यह स्वयंवर दिखावे के लिए किया गया था क्योंकि इसमें केवल उन्हीं राजाओं को आमंत्रित किया गया था, जो रुक्मणि के योग्य ही नहीं थे। सबकुछ पहले से तय था, क्योंकि किसी भी हालत में रुक्मणि की शादी शिशुपाल से होनी थी। यह सुनिश्चित करने के लिए खुद जरासंध भी वहां मौजूद था।




जब यह योजना बन रही रही थी, तो रुक्मणि ने अपने पिता और भाई से झगड़ा करके ये सब रोकने की हर संभव कोशिश की, लेकिन वे दोनों नहीं माने।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें