2016 की पहली शनिश्चरी अवामस्या 9 जनवरी 2016 को, कष्ट दूर करने के ये हैं उपाय----पंडित दयानंद शास्त्री
नया साल सभी के लिए कुछ ना कुछ नया और शुभ लेकर आता है।
इस साल भी शनि दोष से पीडि़त या फिर अन्य ग्रहों की उल्टी चाल से ग्रस्त लोगों को अपनी पीड़ा दूर करने के लिए लंबा इंतजार नहीं करना पड़ेगा।
नए साल 2016 की पहली शनिश्चरी अमावस्या 9 जनवरी 2016 को है। इसे लेकर शनि मंदिरों में तैयारियां शुरू की जा चुकी हैं। इसी के साथ पीडि़त लोग भी अपने कष्टों से निजात पाने के लिए खास उपाय कर सकते हैं।
शनिश्चरी अमावस्या शनिवार को सुबह 7:40 बजे से शुरू होकर दूसरे दिन 10 जनवरी 2016, रविवार सुबह 7:20 बजे तक रहेगी।
ये उपाय करें----
---सुंदरकांड का पाठ, हनुमानजी को चोला चढ़ाएं।
---सरसों या तिल के तेल के दीपक में दो लोहे की कीलें डालकर पीपल पर रखें।
-----शनिदेव पर तिल या सरसों के तेल का दान करें।
-----चीटीं को शक्कर का बूरा डालें।
----अपने वजन के बराबर सरसों का खली (पीना) गौशाला में डालें।
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
श्री शनिस्तोत्रम्-----
यह स्तोत्र जातकों के हर प्रकार के कष्टों को दूर करने वाला है। यह स्तोत्र मानसिक अशांति, पारिवारिक कलह व दांपत्य सुख में दरार पाटने में समर्थ है।
यदि इस स्तोत्र का 21 बार प्रति शनिवार को लगातार 7 शनिवार को पाठ किया जाये साथ ही शनिदेव का तैलाभिषेक से पूजन किया जाए तो निश्चय ही इन बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
‘‘तुष्टोददाति वैराज्य रुष्टो हरति तत्क्षणात्’’ धन्य है शनिदेव। शिव का आशीर्वाद प्राप्त कर स्वयं भी आशुतोष बन गये।
प्रस्तुत स्तोत्र ज्वलंत उदाहरण है।
राजा दशरथ शनि से युद्ध करने उनके पास गये थे, किन्तु धन्य है शनिदेव - जिसने शत्रु को मनचाहा वरदान देकर सेवक बना लिया। विशेष कहने की आवश्यकता नहीं, स्वयं शनि-स्तोत्र ही इसका प्रमाण है। अत: इसका स्तवन, श्रवण से लाभान्वित हो स्वयं को कृतार्थ करना चाहिए।
शनि का प्रकोप शान्त करने के लिए पुराणों में एक कथा भी मिलती है कि महाराजा दशरथ के राज्यकाल में उनके ज्योतिषियों ने उन्हें बताया कि महाराज, शनिदेव रोहिणी नक्षत्र को भेदन करने वाले हैं। जब भी शनिदेव रोहिणी नक्षत्र का भेदन करते हैं तो उस राज्य मेें पूरे बारह वर्ष तक वर्षा नहीं होती है और अकाल पड़ जाता है। इससे प्रजा का जीवित बच पाना असम्भव हो जाता है। महाराज दशरथ को जब यह बात ज्ञात हुई तब वह नक्षत्र मंडल में अपने विशेष रथ द्वारा आकाश मार्ग से शनि का सामना करने के लिए पहुँच गये।
शनिदेव महाराज दशरथ का अदम्य साहस देखकर बहुत प्रसन्न हुए और वरदन मांगने के लिए कहा। शनिदेव को प्रसन्न देख महाराज दशरथ ने उनकी स्तुति की और कहा कि हे शनिदेव! प्रजा के कल्याण हेतु आप रोहिणी नक्षत्र का भेदन न करें। शनि महाराज प्रसन्न थे और उन्होंने तुरन्त उन्हें वचन दिया कि उनकी पूजा पर उनके रोहिणी भेदन का दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा और उसके साथ यह भी कहा कि जो व्यक्ति आप द्वारा किये गये इस स्तोत्र से मेरी स्तुति करेंगे, उन पर भी मेरा अशुभ प्रभाव कभी नहीं पड़ेगा।
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
श्री शनि चालीसा-----
शनि चालीसा का पाठ सबसे सरल है।
अतः यहां सर्वाधिक प्रचलित चालीसा प्रस्तुत की जा रही है। शनि चालीसा भी हनुमान चालीसा जैसे ही अति प्रभावशाली है।
शनि प्रभावित जातकों के समस्त कष्टों का हरण शनि चालीसा के पाठ द्वारा भी किया जा सकता है।
सांसारिक किसी भी प्रकार का शनिकृत दोष, विवाह आदि में उत्पन्न बाधाएं इस शनि चालीसा की 21 आवृति प्रतिदिन पाठ लगातार 21 दिनों तक करने से दूर होती हैं और जातक शांति सुख सौमनस्य को प्राप्त होता है।
अन्य तो क्या पति-पत्नी कलह को भी 11 पाठ के हिसाब से यदि कम से कम 21 दिन तक किया जाये तो अवश्य उन्हें सुख सौमनस्यता की प्राप्ति होती है।
श्री शनि चालीसा----
दोहा----
जय-जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महराज।
करहुं कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज।।
चौपाई----
जयति-जयति शनिदेव दयाला।
करत सदा भक्तन प्रतिपाला।।
चारि भुजा तन श्याम विराजै।
माथे रतन मुकुट छवि छाजै।।
परम विशाल मनोहर भाला।
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला।।
कुण्डल श्रवण चमाचम चमकै।
हिये माल मुक्तन मणि दमकै।।
कर में गदा त्रिशूल कुठारा।
पल विच करैं अरिहिं संहारा।।
पिंगल कृष्णो छाया नन्दन।
यम कोणस्थ रौद्र दुःख भंजन।।
सौरि मन्द शनी दश नामा।
भानु पुत्रा पूजहिं सब कामा।।
जापर प्रभु प्रसन्न हों जाहीं।
रंकहु राउ करें क्षण माहीं।।
पर्वतहूं तृण होई निहारत।
तृणहंू को पर्वत करि डारत।।
राज मिलत बन रामहि दीन्हा।
कैकइहूं की मति हरि लीन्हा।।
बनहूं में मृग कपट दिखाई।
मात जानकी गई चुराई।।
लषणहि शक्ति बिकल करि डारा।
मचि गयो दल में हाहाकारा।।
दियो कीट करि कंचन लंका।
बजि बजरंग वीर को डंका।।
नृप विक्रम पर जब पगु धारा।
चित्रा मयूर निगलि गै हारा।।
हार नौलखा लाग्यो चोरी।
हाथ पैर डरवायो तोरी।।
भारी दशा निकृष्ट दिखाओ।
तेलिहुं घर कोल्हू चलवायौ।।
विनय राग दीपक महं कीन्हो।
तब प्रसन्न प्रभु ह्नै सुख दीन्हों।।
हरिशचन्द्रहुं नृप नारि बिकानी।
आपहुं भरे डोम घर पानी।।
वैसे नल पर दशा सिरानी।
भूंजी मीन कूद गई पानी।।
श्री शकंरहि गहो जब जाई।
पारवती को सती कराई।।
तनि बिलोकत ही करि रीसा।
नभ उड़ि गयो गौरि सुत सीसा।।
पाण्डव पर ह्नै दशा तुम्हारी।
बची द्रोपदी होति उघारी।।
कौरव की भी गति मति मारी।
युद्ध महाभारत करि डारी।।
रवि कहं मुख महं धरि तत्काला।
लेकर कूदि पर्यो पाताला।।
शेष देव लखि विनती लाई।
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई।।
वाहन प्रभु के सात सुजाना।
गज दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना।।
जम्बुक सिंह आदि नख धारी।
सो फल ज्योतिष कहत पुकारी।।
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं।
हय ते सुख सम्पत्ति उपजावैं।।
गर्दभहानि करै बहु काजा।
सिंह सिद्धकर राज समाजा।।
जम्बुक बुद्धि नष्ट करि डारै।
मृग दे कष्ट प्राण संहारै।।
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी।
चोरी आदि होय डर भारी।।
तैसहिं चारि चरण यह नामा।
स्वर्ण लोह चांदी अरु ताम्बा।।
लोह चरण पर जब प्रभु आवैं।
धन सम्पत्ति नष्ट करावैं।।
समता ताम्र रजत शुभकारी।
स्वर्ण सर्व सुख मंगल भारी।।
जो यह शनि चरित्रा नित गावै।
कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै।।
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला।
करैं शत्राु के नशि बल ढीला।।
जो पंडित सुयोग्य बुलवाई।
विधिवत शनि ग्रह शान्ति कराई।।
पीपल जल शनि-दिवस चढ़ावत।
दीप दान दै बहु सुख पावत।।
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा।
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा।।
दोहा---
प्रतिमा श्री शनिदेव की, लोह धातु बनवाय।
प्रेम सहित पूजन करै, सकल कष्ट कटि जाय।।
चालीसा नित नेम यह, कहहिं सुनहिं धरि ध्यान।
नि ग्रह सुखद ह्नै, पावहिं नर सम्मान।।
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
दशरथ कृत शनि स्तोत्र----
(हिन्दी पद्य रूपान्तरण)----
हे श्यामवर्णवाले, हे नील कण्ठ वाले।
कालाग्नि रूप वाले, हल्के शरीर वाले।।
स्वीकारो नमन मेरे, शनिदेव हम तुम्हारे।
सच्चे सुकर्म वाले हैं, मन से हो तुम हमारे।।
स्वीकारो नमन मेरे।
स्वीकारो भजन मेरे।।
हे दाढ़ी-मूछों वाले, लम्बी जटायें पाले।
हे दीर्घ नेत्र वालेे, शुष्कोदरा निराले।।
भय आकृति तुम्हारी, सब पापियों को मारे।
स्वीकारो नमन मेरे।
स्वीकारो भजन मेरे।।
हे पुष्ट देहधारी, स्थूल-रोम वाले।
कोटर सुनेत्र वाले, हे बज्र देह वाले।।
तुम ही सुयश दिलाते, सौभाग्य के सितारे।
स्वीकारो नमन मेरे।
स्वीकारो भजन मेरे।।
हे घोर रौद्र रूपा, भीषण कपालि भूपा।
हे नमन सर्वभक्षी बलिमुख शनी अनूपा ।।
हे भक्तों के सहारे, शनि! सब हवाले तेरे।
हैं पूज्य चरण तेरे।
स्वीकारो नमन मेरे।।
हे सूर्य-सुत तपस्वी, भास्कर के भय मनस्वी।
हे अधो दृष्टि वाले, हे विश्वमय यशस्वी।।
विश्वास श्रद्धा अर्पित सब कुछ तू ही निभाले।
स्वीकारो नमन मेरे।
हे पूज्य देव मेरे।।
अतितेज खड्गधारी, हे मन्दगति सुप्यारी।
तप-दग्ध-देहधारी, नित योगरत अपारी।।
संकट विकट हटा दे, हे महातेज वाले।
स्वीकारो नमन मेरे।
स्वीकारो नमन मेरे।।
नितप्रियसुधा में रत हो, अतृप्ति में निरत हो।
हो पूज्यतम जगत में, अत्यंत करुणा नत हो।।
हे ज्ञान नेत्र वाले, पावन प्रकाश वाले।
स्वीकारो भजन मेरे।
स्वीकारो नमन मेरे।।
जिस पर प्रसन्न दृष्टि, वैभव सुयश की वृष्टि।
वह जग का राज्य पाये, सम्राट तक कहाये।।
उत्तम स्वभाव वाले, तुमसे तिमिर उजाले।
स्वीकारो नमन मेरे।
स्वीकारो भजन मेरे।।
हो वक्र दृष्टि जिसपै, तत्क्षण विनष्ट होता।
मिट जाती राज्यसत्ता, हो के भिखारी रोता।।
डूबे न भक्त-नैय्या पतवार दे बचा ले।
स्वीकारो नमन मेरे।
शनि पूज्य चरण तेरे।।
हो मूलनाश उनका, दुर्बुद्धि होती जिन पर।
हो देव असुर मानव, हो सिद्ध या विद्याधर।।
देकर प्रसन्नता प्रभु अपने चरण लगा ले।
स्वीकारो नमन मेरे।
स्वीकारो भजन मेरे।।
होकर प्रसन्न हे प्रभु! वरदान यही दीजै।
बजरंग भक्त गण को दुनिया में अभय कीजै।।
सारे ग्रहों के स्वामी अपना विरद बचाले।
स्वीकारो नमन मेरे।
हैं पूज्य चरण तेरे।।
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
आरती श्री शनिदेव की----
कर्मफल दाता श्री शनिदेव की भक्ति और आरती करने से हर प्रकार के कष्टों का शमन हो जाता है। श्री शनिदेव को काला कपड़ा और लोहा बहुत प्रिय है। उन्हें आक का फूल बहुत भाता है। शनिवार और अमावस्या तिथि को उनको उड़द, गुड़, काले तिल और सरसों का तेल चढ़ाना लाभप्रद रहता है। श्रद्धापूर्वक उनकी आरती करने से सब प्रकार की प्रतिकूलताएं समाप्त हो जाता हैं।
दोहा----
जय गणेश, गिरजा, सुवन,
मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुख दूर करि,
कीजै नाथ निहाल।।
जय-जय श्री शनिदेव प्रभु,
सुनहं विनय महाराज।
करहंु कृपा रक्षा करो,
राखहुं जन की लाज।।
आरती श्री शनिदेव तुम्हारी।।
प्रेम विनय से तुमको ध्याऊं, सुधि लो बेगि हमारी।।
आरती श्री शनिदेव तुम्हारी।।
देवों में तुम देव बड़े हो, भक्तों के दुख हर लेते।
रंक को राजपाट, धन-वैभव, पल भर में दे देते।
तेरा कोई पार न पाया तेरी महिमा न्यारी।
आरती श्री शनिदेव तुम्हारी।।
वेद के ज्ञाता, जगत-विधाता तेरा रूप विशाला।
कर्म भोग करवा भक्तों का पाप नाश कर डाला।
यम-यमुना के प्यारे भ्राता, भक्तों के भयहारी।
आरती श्री शनिदेव तुम्हारी।।
स्वर्ण सिंहासन आप विराजो, वाहन सात सुहावे।
श्याम भक्त हो, रूप श्याम, नित श्याम ध्वजा फहराये।
बचे न कोई दृष्टि से तेरी, देव-असुर नर-नारी।।
आरती श्री शनिदेव तुम्हारी।।
उड़द, तेल, गुड़, काले तिल का तुमको भोग लगावें।
लौह धातु प्रिय, काला कपड़ा, आक का गजरा भावे।
त्यागी, तपसी, हठी, यती, क्रोधी सब छबी तिहारी।
आरती श्री शनिदेव तुम्हारी।।
शनिवार प्रिय शनि अमावस, तेलाभिषेक करावे।
शनिचरणानुरागी मदन तेरा आशीर्वाद नित पावे।
छाया दुलारे, रवि सुत प्यारे, तुझ पे मैं बलिहारी।
आरती श्री शनिदेव तुम्हारी।।
नया साल सभी के लिए कुछ ना कुछ नया और शुभ लेकर आता है।
इस साल भी शनि दोष से पीडि़त या फिर अन्य ग्रहों की उल्टी चाल से ग्रस्त लोगों को अपनी पीड़ा दूर करने के लिए लंबा इंतजार नहीं करना पड़ेगा।
नए साल 2016 की पहली शनिश्चरी अमावस्या 9 जनवरी 2016 को है। इसे लेकर शनि मंदिरों में तैयारियां शुरू की जा चुकी हैं। इसी के साथ पीडि़त लोग भी अपने कष्टों से निजात पाने के लिए खास उपाय कर सकते हैं।
शनिश्चरी अमावस्या शनिवार को सुबह 7:40 बजे से शुरू होकर दूसरे दिन 10 जनवरी 2016, रविवार सुबह 7:20 बजे तक रहेगी।
ये उपाय करें----
---सुंदरकांड का पाठ, हनुमानजी को चोला चढ़ाएं।
---सरसों या तिल के तेल के दीपक में दो लोहे की कीलें डालकर पीपल पर रखें।
-----शनिदेव पर तिल या सरसों के तेल का दान करें।
-----चीटीं को शक्कर का बूरा डालें।
----अपने वजन के बराबर सरसों का खली (पीना) गौशाला में डालें।
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
श्री शनिस्तोत्रम्-----
यह स्तोत्र जातकों के हर प्रकार के कष्टों को दूर करने वाला है। यह स्तोत्र मानसिक अशांति, पारिवारिक कलह व दांपत्य सुख में दरार पाटने में समर्थ है।
यदि इस स्तोत्र का 21 बार प्रति शनिवार को लगातार 7 शनिवार को पाठ किया जाये साथ ही शनिदेव का तैलाभिषेक से पूजन किया जाए तो निश्चय ही इन बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
‘‘तुष्टोददाति वैराज्य रुष्टो हरति तत्क्षणात्’’ धन्य है शनिदेव। शिव का आशीर्वाद प्राप्त कर स्वयं भी आशुतोष बन गये।
प्रस्तुत स्तोत्र ज्वलंत उदाहरण है।
राजा दशरथ शनि से युद्ध करने उनके पास गये थे, किन्तु धन्य है शनिदेव - जिसने शत्रु को मनचाहा वरदान देकर सेवक बना लिया। विशेष कहने की आवश्यकता नहीं, स्वयं शनि-स्तोत्र ही इसका प्रमाण है। अत: इसका स्तवन, श्रवण से लाभान्वित हो स्वयं को कृतार्थ करना चाहिए।
शनि का प्रकोप शान्त करने के लिए पुराणों में एक कथा भी मिलती है कि महाराजा दशरथ के राज्यकाल में उनके ज्योतिषियों ने उन्हें बताया कि महाराज, शनिदेव रोहिणी नक्षत्र को भेदन करने वाले हैं। जब भी शनिदेव रोहिणी नक्षत्र का भेदन करते हैं तो उस राज्य मेें पूरे बारह वर्ष तक वर्षा नहीं होती है और अकाल पड़ जाता है। इससे प्रजा का जीवित बच पाना असम्भव हो जाता है। महाराज दशरथ को जब यह बात ज्ञात हुई तब वह नक्षत्र मंडल में अपने विशेष रथ द्वारा आकाश मार्ग से शनि का सामना करने के लिए पहुँच गये।
शनिदेव महाराज दशरथ का अदम्य साहस देखकर बहुत प्रसन्न हुए और वरदन मांगने के लिए कहा। शनिदेव को प्रसन्न देख महाराज दशरथ ने उनकी स्तुति की और कहा कि हे शनिदेव! प्रजा के कल्याण हेतु आप रोहिणी नक्षत्र का भेदन न करें। शनि महाराज प्रसन्न थे और उन्होंने तुरन्त उन्हें वचन दिया कि उनकी पूजा पर उनके रोहिणी भेदन का दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा और उसके साथ यह भी कहा कि जो व्यक्ति आप द्वारा किये गये इस स्तोत्र से मेरी स्तुति करेंगे, उन पर भी मेरा अशुभ प्रभाव कभी नहीं पड़ेगा।
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
श्री शनि चालीसा-----
शनि चालीसा का पाठ सबसे सरल है।
अतः यहां सर्वाधिक प्रचलित चालीसा प्रस्तुत की जा रही है। शनि चालीसा भी हनुमान चालीसा जैसे ही अति प्रभावशाली है।
शनि प्रभावित जातकों के समस्त कष्टों का हरण शनि चालीसा के पाठ द्वारा भी किया जा सकता है।
सांसारिक किसी भी प्रकार का शनिकृत दोष, विवाह आदि में उत्पन्न बाधाएं इस शनि चालीसा की 21 आवृति प्रतिदिन पाठ लगातार 21 दिनों तक करने से दूर होती हैं और जातक शांति सुख सौमनस्य को प्राप्त होता है।
अन्य तो क्या पति-पत्नी कलह को भी 11 पाठ के हिसाब से यदि कम से कम 21 दिन तक किया जाये तो अवश्य उन्हें सुख सौमनस्यता की प्राप्ति होती है।
श्री शनि चालीसा----
दोहा----
जय-जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महराज।
करहुं कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज।।
चौपाई----
जयति-जयति शनिदेव दयाला।
करत सदा भक्तन प्रतिपाला।।
चारि भुजा तन श्याम विराजै।
माथे रतन मुकुट छवि छाजै।।
परम विशाल मनोहर भाला।
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला।।
कुण्डल श्रवण चमाचम चमकै।
हिये माल मुक्तन मणि दमकै।।
कर में गदा त्रिशूल कुठारा।
पल विच करैं अरिहिं संहारा।।
पिंगल कृष्णो छाया नन्दन।
यम कोणस्थ रौद्र दुःख भंजन।।
सौरि मन्द शनी दश नामा।
भानु पुत्रा पूजहिं सब कामा।।
जापर प्रभु प्रसन्न हों जाहीं।
रंकहु राउ करें क्षण माहीं।।
पर्वतहूं तृण होई निहारत।
तृणहंू को पर्वत करि डारत।।
राज मिलत बन रामहि दीन्हा।
कैकइहूं की मति हरि लीन्हा।।
बनहूं में मृग कपट दिखाई।
मात जानकी गई चुराई।।
लषणहि शक्ति बिकल करि डारा।
मचि गयो दल में हाहाकारा।।
दियो कीट करि कंचन लंका।
बजि बजरंग वीर को डंका।।
नृप विक्रम पर जब पगु धारा।
चित्रा मयूर निगलि गै हारा।।
हार नौलखा लाग्यो चोरी।
हाथ पैर डरवायो तोरी।।
भारी दशा निकृष्ट दिखाओ।
तेलिहुं घर कोल्हू चलवायौ।।
विनय राग दीपक महं कीन्हो।
तब प्रसन्न प्रभु ह्नै सुख दीन्हों।।
हरिशचन्द्रहुं नृप नारि बिकानी।
आपहुं भरे डोम घर पानी।।
वैसे नल पर दशा सिरानी।
भूंजी मीन कूद गई पानी।।
श्री शकंरहि गहो जब जाई।
पारवती को सती कराई।।
तनि बिलोकत ही करि रीसा।
नभ उड़ि गयो गौरि सुत सीसा।।
पाण्डव पर ह्नै दशा तुम्हारी।
बची द्रोपदी होति उघारी।।
कौरव की भी गति मति मारी।
युद्ध महाभारत करि डारी।।
रवि कहं मुख महं धरि तत्काला।
लेकर कूदि पर्यो पाताला।।
शेष देव लखि विनती लाई।
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई।।
वाहन प्रभु के सात सुजाना।
गज दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना।।
जम्बुक सिंह आदि नख धारी।
सो फल ज्योतिष कहत पुकारी।।
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं।
हय ते सुख सम्पत्ति उपजावैं।।
गर्दभहानि करै बहु काजा।
सिंह सिद्धकर राज समाजा।।
जम्बुक बुद्धि नष्ट करि डारै।
मृग दे कष्ट प्राण संहारै।।
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी।
चोरी आदि होय डर भारी।।
तैसहिं चारि चरण यह नामा।
स्वर्ण लोह चांदी अरु ताम्बा।।
लोह चरण पर जब प्रभु आवैं।
धन सम्पत्ति नष्ट करावैं।।
समता ताम्र रजत शुभकारी।
स्वर्ण सर्व सुख मंगल भारी।।
जो यह शनि चरित्रा नित गावै।
कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै।।
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला।
करैं शत्राु के नशि बल ढीला।।
जो पंडित सुयोग्य बुलवाई।
विधिवत शनि ग्रह शान्ति कराई।।
पीपल जल शनि-दिवस चढ़ावत।
दीप दान दै बहु सुख पावत।।
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा।
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा।।
दोहा---
प्रतिमा श्री शनिदेव की, लोह धातु बनवाय।
प्रेम सहित पूजन करै, सकल कष्ट कटि जाय।।
चालीसा नित नेम यह, कहहिं सुनहिं धरि ध्यान।
नि ग्रह सुखद ह्नै, पावहिं नर सम्मान।।
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
दशरथ कृत शनि स्तोत्र----
(हिन्दी पद्य रूपान्तरण)----
हे श्यामवर्णवाले, हे नील कण्ठ वाले।
कालाग्नि रूप वाले, हल्के शरीर वाले।।
स्वीकारो नमन मेरे, शनिदेव हम तुम्हारे।
सच्चे सुकर्म वाले हैं, मन से हो तुम हमारे।।
स्वीकारो नमन मेरे।
स्वीकारो भजन मेरे।।
हे दाढ़ी-मूछों वाले, लम्बी जटायें पाले।
हे दीर्घ नेत्र वालेे, शुष्कोदरा निराले।।
भय आकृति तुम्हारी, सब पापियों को मारे।
स्वीकारो नमन मेरे।
स्वीकारो भजन मेरे।।
हे पुष्ट देहधारी, स्थूल-रोम वाले।
कोटर सुनेत्र वाले, हे बज्र देह वाले।।
तुम ही सुयश दिलाते, सौभाग्य के सितारे।
स्वीकारो नमन मेरे।
स्वीकारो भजन मेरे।।
हे घोर रौद्र रूपा, भीषण कपालि भूपा।
हे नमन सर्वभक्षी बलिमुख शनी अनूपा ।।
हे भक्तों के सहारे, शनि! सब हवाले तेरे।
हैं पूज्य चरण तेरे।
स्वीकारो नमन मेरे।।
हे सूर्य-सुत तपस्वी, भास्कर के भय मनस्वी।
हे अधो दृष्टि वाले, हे विश्वमय यशस्वी।।
विश्वास श्रद्धा अर्पित सब कुछ तू ही निभाले।
स्वीकारो नमन मेरे।
हे पूज्य देव मेरे।।
अतितेज खड्गधारी, हे मन्दगति सुप्यारी।
तप-दग्ध-देहधारी, नित योगरत अपारी।।
संकट विकट हटा दे, हे महातेज वाले।
स्वीकारो नमन मेरे।
स्वीकारो नमन मेरे।।
नितप्रियसुधा में रत हो, अतृप्ति में निरत हो।
हो पूज्यतम जगत में, अत्यंत करुणा नत हो।।
हे ज्ञान नेत्र वाले, पावन प्रकाश वाले।
स्वीकारो भजन मेरे।
स्वीकारो नमन मेरे।।
जिस पर प्रसन्न दृष्टि, वैभव सुयश की वृष्टि।
वह जग का राज्य पाये, सम्राट तक कहाये।।
उत्तम स्वभाव वाले, तुमसे तिमिर उजाले।
स्वीकारो नमन मेरे।
स्वीकारो भजन मेरे।।
हो वक्र दृष्टि जिसपै, तत्क्षण विनष्ट होता।
मिट जाती राज्यसत्ता, हो के भिखारी रोता।।
डूबे न भक्त-नैय्या पतवार दे बचा ले।
स्वीकारो नमन मेरे।
शनि पूज्य चरण तेरे।।
हो मूलनाश उनका, दुर्बुद्धि होती जिन पर।
हो देव असुर मानव, हो सिद्ध या विद्याधर।।
देकर प्रसन्नता प्रभु अपने चरण लगा ले।
स्वीकारो नमन मेरे।
स्वीकारो भजन मेरे।।
होकर प्रसन्न हे प्रभु! वरदान यही दीजै।
बजरंग भक्त गण को दुनिया में अभय कीजै।।
सारे ग्रहों के स्वामी अपना विरद बचाले।
स्वीकारो नमन मेरे।
हैं पूज्य चरण तेरे।।
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
आरती श्री शनिदेव की----
कर्मफल दाता श्री शनिदेव की भक्ति और आरती करने से हर प्रकार के कष्टों का शमन हो जाता है। श्री शनिदेव को काला कपड़ा और लोहा बहुत प्रिय है। उन्हें आक का फूल बहुत भाता है। शनिवार और अमावस्या तिथि को उनको उड़द, गुड़, काले तिल और सरसों का तेल चढ़ाना लाभप्रद रहता है। श्रद्धापूर्वक उनकी आरती करने से सब प्रकार की प्रतिकूलताएं समाप्त हो जाता हैं।
दोहा----
जय गणेश, गिरजा, सुवन,
मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुख दूर करि,
कीजै नाथ निहाल।।
जय-जय श्री शनिदेव प्रभु,
सुनहं विनय महाराज।
करहंु कृपा रक्षा करो,
राखहुं जन की लाज।।
आरती श्री शनिदेव तुम्हारी।।
प्रेम विनय से तुमको ध्याऊं, सुधि लो बेगि हमारी।।
आरती श्री शनिदेव तुम्हारी।।
देवों में तुम देव बड़े हो, भक्तों के दुख हर लेते।
रंक को राजपाट, धन-वैभव, पल भर में दे देते।
तेरा कोई पार न पाया तेरी महिमा न्यारी।
आरती श्री शनिदेव तुम्हारी।।
वेद के ज्ञाता, जगत-विधाता तेरा रूप विशाला।
कर्म भोग करवा भक्तों का पाप नाश कर डाला।
यम-यमुना के प्यारे भ्राता, भक्तों के भयहारी।
आरती श्री शनिदेव तुम्हारी।।
स्वर्ण सिंहासन आप विराजो, वाहन सात सुहावे।
श्याम भक्त हो, रूप श्याम, नित श्याम ध्वजा फहराये।
बचे न कोई दृष्टि से तेरी, देव-असुर नर-नारी।।
आरती श्री शनिदेव तुम्हारी।।
उड़द, तेल, गुड़, काले तिल का तुमको भोग लगावें।
लौह धातु प्रिय, काला कपड़ा, आक का गजरा भावे।
त्यागी, तपसी, हठी, यती, क्रोधी सब छबी तिहारी।
आरती श्री शनिदेव तुम्हारी।।
शनिवार प्रिय शनि अमावस, तेलाभिषेक करावे।
शनिचरणानुरागी मदन तेरा आशीर्वाद नित पावे।
छाया दुलारे, रवि सुत प्यारे, तुझ पे मैं बलिहारी।
आरती श्री शनिदेव तुम्हारी।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें