चारगाह विकसीत करने हेतु सरकार प्रभावी कदम उठायें।जालोर-सिरोही सांसद देवजी पटेल
नईदिल्ली, 03 दिसम्बर 2015 गुरुवार।
जालोर-सिरोही सांसद देवजी पटेल ने 16वीं लोकसभा के छठें शीतकालीन सत्र में प्रशनकाल के दौरान पशुचारे की कमी एवं कीटनाशकों के दुरूपयोग का मुद्दा उठाया।
सांसद देवजी पटेल ने बताया ने कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री डाॅ. संजीव कुमार बालियान से प्रश्न करते हुए कहा कि क्या दुधारू पशुओं हेतु संतुलत पशुचारे एवं खुली जगह की कमी तथा इन पशुओं में जनन अक्षमता, एक महामारी का रूप ले रही हैं। क्या भारत में देशी नस्लों की गाय में बढती जनन अक्षमता से इनकी संख्या घट रही है और इससे दुग्ध उत्पादन प्रभावित हो रहा हैं। इस स्थति से निपटने के लिए सरकार द्वारा क्या सुधारात्मक कदम उठाया जा रहा हैं। राजस्थान प्रदेश सहित देश में उपलब्ध चारागाह का कुल क्षैत्र कितना हैं और विभिन्न राज्यों में चारागाहों को विकसित करने के लिए सरकार द्वारा लागू की गई योजनाओं का ब्यौरा क्या हैं।
सांसद पटेल के प्रश्न का उतर देते हुए कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री डाॅ. संजीव कुमार बालियान ने बताया कि उपयुक्त पोषण की कमी से उर्वरता और इसके परिणामस्वरूप दूध का उत्पादन बुरी तरह से प्रभावित होता हैं। स्थान की कमी के कारण अनुपयुक्त प्रबंध रोगों का फैलाव होता हैं जिससे बांझपन होता है। उर्वरता तथा दुग्ध उत्पादन के लिए ऊर्जा, प्रोटीन, खनीज तथा विटामिन वाला संतुलित पोषण आवश्यक होता हैं। उन्होंने बताया कि मूल नस्लों में विदेशी तथा वर्ग संकर नस्लों के मुकाबले बाझपन कम हैं। मूल नस्लों की संख्या में कमी बांझपन के अलावा अन्य कारणों जैसे उपयुक्त प्रबंधन तथा प्रजनन में रूचि की कमी के कारण तथा इस कारण भी है कि अधिकांश मूल नस्लें भारवाही प्रकार की है तथा यांत्रीकरण में वृद्धि हो रही है और पशु भारवाही क्षमता के प्र्रयोग के लिए श्रम की उपलब्धतता में कमी हो रही हैं। पशुओं की उर्वरता में सुधार करने के लिए राज्यों द्वारा किए जा रहे प्रयासों को सम्पूरित तथा अनुपूरित करने के लिए उर्वरता कैंप आयोजित करने हेतु राष्ट्रीय बोवाईन प्रजनन तथा डेयरी विकास कार्यक्रम के अंतर्गत राज्यों को निधियां जारी की जाती हैं। इसके अलवा 12वीं योजना में पशुओं में प्रजनात्मक निष्पादन को बढाने के लिए पौषणिक तथा शरीर विज्ञान संबंधि हस्तक्षेप संबंधी अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना प्रारंभ की गई हैं। भूमि प्रयोग संख्यिकीय पर एक दृष्टिपात जून, 2014 के अनुसार राजस्थान सहित पूरे देश में उपलब्ध स्थायी चारागाह तथा अन्य चराई भूमि 10,296 हजार हैक्टेयर हैं। मई, 21014 में विभाग ने आहार तथा चारा विकास संबंधि उप-मिशन के साथ राष्ट्रीय पशुधन मिशन प्रांरभ किया था, जो चराई भूमि के लिए राज्यों को वित्तीय सहायता प्रदान करता हैं।
सांसद देवजी पटेल ने बताया ने कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री डाॅ. संजीव कुमार बालियान से प्रश्न करते हुए कहा कि क्या देश में कीटनाशकों के दुरूपयोग का पता चला हैं। क्या यह सच है कि देश में उपयोग किए जा रहे 25 प्रतिशत कीटनाशक नकली हैं, जिससे फसलों का भारी नुकसान हो रहा है, मृदा की उर्वरता कम हो रही है और पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ रहा हैं। इस समस्या पर नियंत्रण के किए तथा विनिर्माण करने वाली कम्पनियों या संबंधित वितरण एजेंसियों को दंडित करने के लिए सरकार द्वारा क्या कार्रवाही की गई हैं। क्या सरकार इस संबंध में कानून अधिनियमित करने और प्रभावित किसानों का मुआवजा देने पर विचार कर रहीं हैं और किसानों को गुणवत्ता कीटनाशनक प्रदान करने के लिए सरकार द्वारा कदम उठाय गए हैं।
सांसद पटेल के प्रश्न का उतर देते हुए कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री डाॅ. संजीव कुमार बालियान ने बताया कि केन्द्र सरकार केन्द्रीय स्कीम ‘‘राष्ट्रीय स्तर पर कीटनाशक अवशेषों की निगरानी’’ (एमपीआरएनएल) के तहत विभिन कृषि जिंसो इत्यादि में कीटनाशक अवशेषों के स्तरों को मानीटर करती हैं। 2014-15 की एमपीआरएनएल की वार्षिक रिर्पोट दर्शाती हैं कि विभिन्न जिंसो के नमूनों की कुल संख्या के 2.6 प्रतिशत में भारतीय खाद्य कीटनाशक अवशेष शामिल पाये गये। केन्द्र और राज्य सरकारों ने घटिया कीटनाशकां के प्रयोग की जांच के लिए कृमिनाशी अधिनियम 1968 के प्रावधानोे के तहत क्रमशः 168 और 11645 कृमिनाशी निरीक्षको की संख्या अधिसूचित की हैं। 2014-15 में कीटनाशी निरीक्षको द्वारा कुल 51167 कीटनाशक नमूनों का विश्लेषण हेतु एकत्रित किया गया था। यह पाया गया कि 1260 कीटनाशक नमुने अर्थात कुल 2.46 प्रतिशत घटिया पाये गये और परिणामस्वरूप 296 मामलों में कार्यवाही प्रारम्भ की गई हैं। कीटनाशक प्रबंधन विधेयक 2008 संसद में इस दृष्टि से लंबित हे कि कृमिनाशी अधिनियम 1968 के एवज में लाया जायें। विधेयक में घटिया कीटनाशकों के आयात,निर्माण, विक्रय इत्यादि के लिए और अधिक कडा दंड प्रस्तावित किया गया है। इसके अलवा विधेयक उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के तहत प्रतिपूर्ति का भी प्रस्ताव करता हैं। कीटनाशकों की गुणवत्ता की निगरानी के लिए केन्द्र और राज्य सरकार के बिच साझा जिम्मेदारी हैं। केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों ने क्रमशः 168 और 11645 कृमिनाशी निरिक्षक अधिसूचित किये हैं। जिससे कि विनिर्माण, भण्डारण और विक्रय केन्द्रो इत्यादि तथा कीटनाशको की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए निरिक्षण कार्यान्वित किये जा सकें। केन्द्र सरकार ने एक केन्द्रीय कृमिनाशी प्रयोगशाला ओर दो क्षैत्रिय कीटनाशी जाॅच प्रयोगशालाए चण्डीगढ एवं कानपूर में स्थापित की हैं। केन्द्र सरकार ने अभी तक 68 राज्य कीटनाशी जाॅच प्रयोगशालाए स्थापित करने के लिए वित्तिय सहायता के माध्यम से राज्य सरकारों की भी सहायता की हैं। कृमिनाशी अधिनियम, 1968 के प्रावधानों के उल्लंघन के मामले में सक्षम न्यायलयों में कार्यवाही प्रारंभ की गई हैं।
जालोर-सिरोही सांसद देवजी पटेल ने 16वीं लोकसभा के छठें शीतकालीन सत्र में प्रशनकाल के दौरान पशुचारे की कमी एवं कीटनाशकों के दुरूपयोग का मुद्दा उठाया।
सांसद देवजी पटेल ने बताया ने कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री डाॅ. संजीव कुमार बालियान से प्रश्न करते हुए कहा कि क्या दुधारू पशुओं हेतु संतुलत पशुचारे एवं खुली जगह की कमी तथा इन पशुओं में जनन अक्षमता, एक महामारी का रूप ले रही हैं। क्या भारत में देशी नस्लों की गाय में बढती जनन अक्षमता से इनकी संख्या घट रही है और इससे दुग्ध उत्पादन प्रभावित हो रहा हैं। इस स्थति से निपटने के लिए सरकार द्वारा क्या सुधारात्मक कदम उठाया जा रहा हैं। राजस्थान प्रदेश सहित देश में उपलब्ध चारागाह का कुल क्षैत्र कितना हैं और विभिन्न राज्यों में चारागाहों को विकसित करने के लिए सरकार द्वारा लागू की गई योजनाओं का ब्यौरा क्या हैं।
सांसद पटेल के प्रश्न का उतर देते हुए कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री डाॅ. संजीव कुमार बालियान ने बताया कि उपयुक्त पोषण की कमी से उर्वरता और इसके परिणामस्वरूप दूध का उत्पादन बुरी तरह से प्रभावित होता हैं। स्थान की कमी के कारण अनुपयुक्त प्रबंध रोगों का फैलाव होता हैं जिससे बांझपन होता है। उर्वरता तथा दुग्ध उत्पादन के लिए ऊर्जा, प्रोटीन, खनीज तथा विटामिन वाला संतुलित पोषण आवश्यक होता हैं। उन्होंने बताया कि मूल नस्लों में विदेशी तथा वर्ग संकर नस्लों के मुकाबले बाझपन कम हैं। मूल नस्लों की संख्या में कमी बांझपन के अलावा अन्य कारणों जैसे उपयुक्त प्रबंधन तथा प्रजनन में रूचि की कमी के कारण तथा इस कारण भी है कि अधिकांश मूल नस्लें भारवाही प्रकार की है तथा यांत्रीकरण में वृद्धि हो रही है और पशु भारवाही क्षमता के प्र्रयोग के लिए श्रम की उपलब्धतता में कमी हो रही हैं। पशुओं की उर्वरता में सुधार करने के लिए राज्यों द्वारा किए जा रहे प्रयासों को सम्पूरित तथा अनुपूरित करने के लिए उर्वरता कैंप आयोजित करने हेतु राष्ट्रीय बोवाईन प्रजनन तथा डेयरी विकास कार्यक्रम के अंतर्गत राज्यों को निधियां जारी की जाती हैं। इसके अलवा 12वीं योजना में पशुओं में प्रजनात्मक निष्पादन को बढाने के लिए पौषणिक तथा शरीर विज्ञान संबंधि हस्तक्षेप संबंधी अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना प्रारंभ की गई हैं। भूमि प्रयोग संख्यिकीय पर एक दृष्टिपात जून, 2014 के अनुसार राजस्थान सहित पूरे देश में उपलब्ध स्थायी चारागाह तथा अन्य चराई भूमि 10,296 हजार हैक्टेयर हैं। मई, 21014 में विभाग ने आहार तथा चारा विकास संबंधि उप-मिशन के साथ राष्ट्रीय पशुधन मिशन प्रांरभ किया था, जो चराई भूमि के लिए राज्यों को वित्तीय सहायता प्रदान करता हैं।
सांसद देवजी पटेल ने बताया ने कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री डाॅ. संजीव कुमार बालियान से प्रश्न करते हुए कहा कि क्या देश में कीटनाशकों के दुरूपयोग का पता चला हैं। क्या यह सच है कि देश में उपयोग किए जा रहे 25 प्रतिशत कीटनाशक नकली हैं, जिससे फसलों का भारी नुकसान हो रहा है, मृदा की उर्वरता कम हो रही है और पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ रहा हैं। इस समस्या पर नियंत्रण के किए तथा विनिर्माण करने वाली कम्पनियों या संबंधित वितरण एजेंसियों को दंडित करने के लिए सरकार द्वारा क्या कार्रवाही की गई हैं। क्या सरकार इस संबंध में कानून अधिनियमित करने और प्रभावित किसानों का मुआवजा देने पर विचार कर रहीं हैं और किसानों को गुणवत्ता कीटनाशनक प्रदान करने के लिए सरकार द्वारा कदम उठाय गए हैं।
सांसद पटेल के प्रश्न का उतर देते हुए कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री डाॅ. संजीव कुमार बालियान ने बताया कि केन्द्र सरकार केन्द्रीय स्कीम ‘‘राष्ट्रीय स्तर पर कीटनाशक अवशेषों की निगरानी’’ (एमपीआरएनएल) के तहत विभिन कृषि जिंसो इत्यादि में कीटनाशक अवशेषों के स्तरों को मानीटर करती हैं। 2014-15 की एमपीआरएनएल की वार्षिक रिर्पोट दर्शाती हैं कि विभिन्न जिंसो के नमूनों की कुल संख्या के 2.6 प्रतिशत में भारतीय खाद्य कीटनाशक अवशेष शामिल पाये गये। केन्द्र और राज्य सरकारों ने घटिया कीटनाशकां के प्रयोग की जांच के लिए कृमिनाशी अधिनियम 1968 के प्रावधानोे के तहत क्रमशः 168 और 11645 कृमिनाशी निरीक्षको की संख्या अधिसूचित की हैं। 2014-15 में कीटनाशी निरीक्षको द्वारा कुल 51167 कीटनाशक नमूनों का विश्लेषण हेतु एकत्रित किया गया था। यह पाया गया कि 1260 कीटनाशक नमुने अर्थात कुल 2.46 प्रतिशत घटिया पाये गये और परिणामस्वरूप 296 मामलों में कार्यवाही प्रारम्भ की गई हैं। कीटनाशक प्रबंधन विधेयक 2008 संसद में इस दृष्टि से लंबित हे कि कृमिनाशी अधिनियम 1968 के एवज में लाया जायें। विधेयक में घटिया कीटनाशकों के आयात,निर्माण, विक्रय इत्यादि के लिए और अधिक कडा दंड प्रस्तावित किया गया है। इसके अलवा विधेयक उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के तहत प्रतिपूर्ति का भी प्रस्ताव करता हैं। कीटनाशकों की गुणवत्ता की निगरानी के लिए केन्द्र और राज्य सरकार के बिच साझा जिम्मेदारी हैं। केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों ने क्रमशः 168 और 11645 कृमिनाशी निरिक्षक अधिसूचित किये हैं। जिससे कि विनिर्माण, भण्डारण और विक्रय केन्द्रो इत्यादि तथा कीटनाशको की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए निरिक्षण कार्यान्वित किये जा सकें। केन्द्र सरकार ने एक केन्द्रीय कृमिनाशी प्रयोगशाला ओर दो क्षैत्रिय कीटनाशी जाॅच प्रयोगशालाए चण्डीगढ एवं कानपूर में स्थापित की हैं। केन्द्र सरकार ने अभी तक 68 राज्य कीटनाशी जाॅच प्रयोगशालाए स्थापित करने के लिए वित्तिय सहायता के माध्यम से राज्य सरकारों की भी सहायता की हैं। कृमिनाशी अधिनियम, 1968 के प्रावधानों के उल्लंघन के मामले में सक्षम न्यायलयों में कार्यवाही प्रारंभ की गई हैं।
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