बाड़मेर कचरे के ढेर में हर रोज मिलती है मां की ममता
#पप्पू कुमार बृजवाल
पूरे नौ महीने जिसे अपने खून से सींचा और उम्मीद के पंख लगाए कि जब वो इस दुनियां में आकर परवाज भरेगी तो यह जहां कितना खुशनुमा होगा। मगर जिन हाथों में उसकी परवरिश का जिम्मा था उन्हीं ने उसे पैदा होते ही मरने को छोड़ दिया। बाड़मेर शहर में पिछले छह माह में ऎसे दर्जनो मामले सामने आ चुके हैं जिसमें ममता निर्दयी नजर आई। कहीं कन्या होने का पता चलने पर उसे कोख में ही खत्म करा दिया गया, तो कहीं जन्मते ही उसे जानवरों का निवाला बनने के लिए कचरे के ढेर या अन्य कहीं डाल दिया गया। इतना बड़ा जनसख्या में अनुपात का अंतर होने के बाद भी हम अपनी किस सोच के तहत कन्या भ्रूण की हत्या करते जा रहे हैं। सब ये दिलासा देते हैं कि अब समय बदल रहा है लोगों की सोच बदल रही है लेकिन फिर एकाएक कुछ ऐसा घट जाता है हम मजबूर हो जाते हैं की हम कहाँ बदल रहे हैं? कहाँ हमारी सोच बदल रही है। हम बिना पढ़े लिखे लोगों की बात मान सकते हैं की वे लड़की को बोझ समझ रहे हैं लेकिन वे पढ़े लिखे लोग - जो डॉक्टर हैं, जो शहर में अस्पताल चला रहे हैं वे तो अनपढ़ नहीं हैं वे तो इस वास्तविकता से अच्छी तरह से वाकिफ है की लिंग अनुपात तेजी से गिरता जा रहा है और इसका परिणाम मानव जाती के लिए अच्छा नहीं है। में और मेरे अन्य पत्रकार साथी हर रोज अखबार या न्यूज़ चेन्नल पर चीख चीख कर दिखाते है की इस जाती को भी जीने का हक़ है और वे आते ही अपने अधिकारों की मांग नहीं करने लगती हैं , वे बालक की तरह से ही जीवन जीती हैं , उन्हें संतान समझ कर जीवन दीजिये और अगर नहीं देना है तो फिर अगर आपके पास कोई निश्चित पुत्र ही पैदा करने का उपाय है तो उसको अपना लीजिये लेकिन भ्रूण की हत्या का पाप मत लीजिये। लेकिन उसके बावजूद भी लोग कन्या की हत्या कर कचरे में फेंक देते है या कोख में ही खत्म करते है। बाड़मेर में लगातार मिल रहे भ्रूर्ण इस बात का प्रतीक है कि इसमें कितने लोग शामिल हैं? सिर्फ माता पिता या उनके घर वाले नहीं, इसमें शामिल है वह डॉक्टर जो इस काम को अंजाम दे रहे हैं और यहाँ खुले आम भ्रूण हत्या करवा रहे हैं। अधिकतर कचरे के ढेर या अन्य जगह मिले कन्या के भ्रूर्ण पर अस्पताल की क्लिप सबूत के तौर पर लगी हुई होती है लेकिन पुलिस ज्यादा माथापच्ची लगाने की बजाय मामले को रफा दफा कर देती है और आज दिन तक एक भी मामले की तह तक नहीं पहुँच पाई है। में पुलिस पर सवाल इस लिए खड़े कर रहा हूँ की कुछ वर्ष पहले बाड़मेर जैसलमेर में पुलिस अधीक्षक दम्पति राहुल बारहठ और ममता विश्नोई ने कन्या भ्रूर्ण हत्या के खिलाफ अभियान को अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाकर ऐसे कृत्य करने वालो के खिलाफ सख्त कार्रवाही भी की थी और उसके परिणाम भी अच्छे देखने को मिले थे। लेकिन वर्तमान में पुलिस के ढीले रवैये के चलते आये दिन कचरे के ढेर में कन्या का भ्रूर्ण मिलता है और मौके पर पुलिस पहुँच कर अपनी इतिश्री पूरी देती है। अब अगर जिला पुलिस अधीक्षक परिस देशमुख ने इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया तो आने वाले दिनों में इसका परिणाम इससे भी ज्यादा मानवता को शर्मसार करने वाला होगा।
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