यश व सिद्धि के लिए करें मां ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न
नवरात्र के दूसरे दिन मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप का पूजन किया जाता है। मां के नाम में समाविष्ट ब्रह्म शब्द के पीछे भी गूढ़ संदेश है। वे त्याग और तपस्या की देवी हैं, इसलिए उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार, वे सभी वेद-शास्त्रों और ज्ञान की ज्ञाता हैं। उनका स्वरूप अत्यंत भव्य और तेजयुक्त है। तेज व आभा चाहने वाले लोगों को इस दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा करनी चाहिए।
मां ब्रह्मचारिणी के धवल वस्त्र हैं। उनके दाएं हाथ में अष्टदल की जपमाला एवं बाएं हाथ में कमंडल सुशोभित हैं। माता के इस स्वरूप के बारे में शास्त्रों की मान्यता है कि भगवती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए एक हजार वर्षों तक फलों का सेवन कर तपस्या की। इसके पश्चात तीन हजार वर्षों तक पेड़ों की पत्तियां खाकर तपस्या की। इतनी कठोर तपस्या के बाद इन्हें ब्रह्मचारिणी स्वरूप प्राप्त हुआ।
ध्यान - वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्घकृत शेखराम्। जपमाला कमण्डलु धरा ब्रह्मचारिणी शुभाम्॥ गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम। धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥ परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन। पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
स्तोत्र पाठ- तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्। ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥ शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी। शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
कवच- त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी। अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥ पंचदशी कण्ठे पातु मध्यदेशे पातु महेश्वरी॥ षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो। अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।
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