मुंबई।7 साल सलाखों की कैद के बाद साबित हुई बेगुनाही, अब ठोका 200 करोड़ के हर्जाने का दावा
दुष्कर्म के आरोप में एक शख्स का 7 साल तक सलाखों के पीछे रहना और फिर कोर्ट का उसे बेगुनाह कहते हुए बाइज़्ज़त बरी कर देने का आदेश। जीवन के इतने साल कैद में गुज़ारने के बाद जब यह शख्स निर्दोष साबित होकर बाहर निकलता है तो वो हर्जाने के तौर पर दो सौ करोड़ रूपए का दावा ठोकता है।
इस अजीबो-गरीब वाकये का शिकार हुआ है मुंबई निवासी गोपाल शेट्टे। गोपाल को न सिर्फ दुष्कर्म के झूठे केस के जुर्म में सात साल की सजा ही मिली बल्कि निर्दोष साबित होने से पहले वो अपने परिवार के सदस्यों से भी बिछड़ गया। इन सज़ायाफ्ता सालों के दौरान उसे जेल में ज़िल्लत भरी ज़िन्दगी जीने की मजबूरी मिली जो अलग।
पीड़ित गोपाल शेट्टे अब चाहते हैं कि उनकी तरह कोई और निर्दोष ऐसा स्थिति का शिकार न हो इसके लिए वह हर्जाने का दावा कर रहे हैं। उन्होंने अब 200 करोड़ रुपये के हर्जाने की मांग की है।
शेट्टे ने सजा देने वाले सेशन कोर्ट के जज, पैरवी करने वाले सरकारी वकील और जांच में झूठा फंसाने वाले जांच अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।
कानून में झूठे सबूत के आधार पर किसी निर्दोष को सजा देने और दिलाने के आरोपियों को 7 साल की सजा का प्रावधान है।
उजड़ गया भरा-पूरा परिवार
42 साल के गोपाल रामदास शेट्टे मुंबई में कुछ बनने का सपना लेकर आए थे। लेकिन यहां दुष्कर्म के आरोप में ऐसे फंसे कि उन्हें 7 साल की सजा हो गई। गोपाल पर दुष्कर्म के आरोप और जेल जाने के घटनाक्रम के बाद सदमे से उनके पिता चल बसे, पत्नी घर छोड़कर चली गई और दोनो बेटियां अनाथालय पहुंच गईं।
हिम्मत नहीं हारी, जुटाए बेगुनाही के सबूत
गोपाल ने हिम्मत नहीं हारी। गोपाल ने जेल में रहते हुए ही दो ग्रेजुएशन किए और आरटीआई के जरिए अपनी बेगुनाही के सबूत जुटाए। रुपये न होने की वजह से उन्होंने अपनी पैरवी खुद ही की। गोपाल शेट्टे का कहना है कि 6 साल बाद आखिरकार हाईकोर्ट से न्याय तो मिला लेकिन अधूरा।
गोपी की जगह गोपाल पहुंचा हवालात
यह मामला साल 2009 का है। घाटकोपर रेलवे स्टेशन के पुल पर एक लड़की से दुष्कर्म हुआ था। आरोपी का नाम गोपी बताया गया था। रेलवे पुलिस ने गोपाल को गोपी समझकर आरोपी बना दिया।
गोपाल शेट्टे का दावा है कि उन्होंने पुलिस को बताया कि वह गोपी नहीं गोपाल रामदास शेट्टे है और यहां काम से आया है, लेकिन उसकी बात नहीं सुनी गई।
जीआरपी ने चार दिन तक बिना किसी लिखा-पढ़ी के उसको लॉकअप में रखा और बाद में आरोपी बना दिया। पहचान परेड के दिन भी जब लड़की नहीं पहचान पाई तो उंगली से इशारा कर शिनाख्त करा दी गई।
सबूत सामने आए तो असलियत सामने आ गई
यहां तक कि उस सीसीटीवी को जिसमें कि गोपाल को देखे जाने का दावा किया गया था, सबूत नहीं बनाया गया। बात हैरान करने वाली थी इसलिए गोपाल ने आरटीआई के जरिए सीसीटीवी के फुटेज मांगे, जो पहले तो पुलिस ने बहाना बनाया कि वह डिलीट हो गया।
लेकिन जब गोपाल ने अपील की तो मजबूर होकर उसे सीसीटीवी फुटेज देना पड़े। सीसीटीवी टीवी में मिले फुटेज उस वारदात के न होकर कुछ और ही थे।
इस अजीबो-गरीब वाकये का शिकार हुआ है मुंबई निवासी गोपाल शेट्टे। गोपाल को न सिर्फ दुष्कर्म के झूठे केस के जुर्म में सात साल की सजा ही मिली बल्कि निर्दोष साबित होने से पहले वो अपने परिवार के सदस्यों से भी बिछड़ गया। इन सज़ायाफ्ता सालों के दौरान उसे जेल में ज़िल्लत भरी ज़िन्दगी जीने की मजबूरी मिली जो अलग।
पीड़ित गोपाल शेट्टे अब चाहते हैं कि उनकी तरह कोई और निर्दोष ऐसा स्थिति का शिकार न हो इसके लिए वह हर्जाने का दावा कर रहे हैं। उन्होंने अब 200 करोड़ रुपये के हर्जाने की मांग की है।
शेट्टे ने सजा देने वाले सेशन कोर्ट के जज, पैरवी करने वाले सरकारी वकील और जांच में झूठा फंसाने वाले जांच अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।
कानून में झूठे सबूत के आधार पर किसी निर्दोष को सजा देने और दिलाने के आरोपियों को 7 साल की सजा का प्रावधान है।
उजड़ गया भरा-पूरा परिवार
42 साल के गोपाल रामदास शेट्टे मुंबई में कुछ बनने का सपना लेकर आए थे। लेकिन यहां दुष्कर्म के आरोप में ऐसे फंसे कि उन्हें 7 साल की सजा हो गई। गोपाल पर दुष्कर्म के आरोप और जेल जाने के घटनाक्रम के बाद सदमे से उनके पिता चल बसे, पत्नी घर छोड़कर चली गई और दोनो बेटियां अनाथालय पहुंच गईं।
हिम्मत नहीं हारी, जुटाए बेगुनाही के सबूत
गोपाल ने हिम्मत नहीं हारी। गोपाल ने जेल में रहते हुए ही दो ग्रेजुएशन किए और आरटीआई के जरिए अपनी बेगुनाही के सबूत जुटाए। रुपये न होने की वजह से उन्होंने अपनी पैरवी खुद ही की। गोपाल शेट्टे का कहना है कि 6 साल बाद आखिरकार हाईकोर्ट से न्याय तो मिला लेकिन अधूरा।
गोपी की जगह गोपाल पहुंचा हवालात
यह मामला साल 2009 का है। घाटकोपर रेलवे स्टेशन के पुल पर एक लड़की से दुष्कर्म हुआ था। आरोपी का नाम गोपी बताया गया था। रेलवे पुलिस ने गोपाल को गोपी समझकर आरोपी बना दिया।
गोपाल शेट्टे का दावा है कि उन्होंने पुलिस को बताया कि वह गोपी नहीं गोपाल रामदास शेट्टे है और यहां काम से आया है, लेकिन उसकी बात नहीं सुनी गई।
जीआरपी ने चार दिन तक बिना किसी लिखा-पढ़ी के उसको लॉकअप में रखा और बाद में आरोपी बना दिया। पहचान परेड के दिन भी जब लड़की नहीं पहचान पाई तो उंगली से इशारा कर शिनाख्त करा दी गई।
सबूत सामने आए तो असलियत सामने आ गई
यहां तक कि उस सीसीटीवी को जिसमें कि गोपाल को देखे जाने का दावा किया गया था, सबूत नहीं बनाया गया। बात हैरान करने वाली थी इसलिए गोपाल ने आरटीआई के जरिए सीसीटीवी के फुटेज मांगे, जो पहले तो पुलिस ने बहाना बनाया कि वह डिलीट हो गया।
लेकिन जब गोपाल ने अपील की तो मजबूर होकर उसे सीसीटीवी फुटेज देना पड़े। सीसीटीवी टीवी में मिले फुटेज उस वारदात के न होकर कुछ और ही थे।
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