इलाहाबाद।यूपी सरकार को झटका, हाईकोर्ट ने 1 लाख 75 हजार शिक्षामित्रों की नियुक्ति रद्द की
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को तगडा झटका देते हुए एक लाख 75 हजार शिक्षामित्रों को प्राथमिक विद्यालयों का अध्यापक बनाए जाने के आदेश को शनिवार को रद्द किया है। कोर्ट ने निर्धारित योग्यता नहीं होने तथा बिना संस्तुति वाले पदों के आधार पर इन नियुक्तियों को रद्द किया है।
अधिवक्ता हिमांशु राघव तथा अन्य की याचिकाओं पर मुख्य न्यायाधीश डी वाई चन्द्रचूड, न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा और दिलीप गुप्ता की तीन सदस्यीय पीठ ने एक लाख 75 हजार शिक्षामित्रों के समायोजन को निरस्त करते हुए अपने आदेश में कहा कि नियमों में किया गया संशोधन असंवैधानिक था।पीठ ने कहा कि राज्य सरकार को समायोजन करने का अधिकार नहीं है। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित प्राथमिक स्कूलों में संविदा पर तैनात एक लाख 70 हजार शिक्षामित्रों को प्रशिक्षण के बाद प्राथमिक स्कूलों में शिक्षक बनाने के प्रस्ताव को पिछले साल मंत्रिमंडल में मंजूरी दी थी।
मंत्रिमंडल की बैठक के दो दिन बाद ही बेसिक शिक्षा निदेशालय को नियमावली बनाने का निदेश दिया गया। महज तीन हजार पांच सौ रूपये मासिक मानदेय पर काम करने वाले शिक्षामित्र अरसे से खुद को शिक्षक बनाने की मांग कर रहे थे।इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने यह भी कहा कि शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी)में कोई भी ढील देने का अधिकार केवल केन्द्र सरकार के पास है। उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले साल 19 जून को शिक्षक नियमावली 1981 में संशोधन कर शिक्षामित्रों को समयवद्ध तरीके से समायोजित करने का शासनादेश जारी किया था।
सरकार ने शित्रामित्रों की नियुक्ति सहायक शिक्षक के पद पर की थी। नियमों के तहत सहायक शिक्षक को कम से कम स्नातक तथा बीटीसी होना आवश्यक है लेकिन शिक्षामित्र 12वीं पास हैं। ज्ञातव्य है कि वर्ष 2001 में शिक्षामित्र योजना शुरू की गई थी। इसके तहत इंटर उत्तीर्ण युवक-युवतियों को उनके गांव या पास के ही स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के लिए संविदा पर तैनात किया गया।
प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी ने 2012 में राज्य विधानसभा चुनाव के दौरान अपने घोषणा पत्र में शिक्षामित्रों को स्थायी शिक्षक बनाने का वादा किया था।
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