गुरुवार, 9 जुलाई 2015

गोवर्द्धन पर्वत उठाकर कृष्ण ने दिया था ये अमर संदेश



मौसम प्रकृति की निरंतरता की अभिव्यक्ति है। प्रकृति की यह निरंतरता मनुष्य से संवेदनशीलता की आशा रखती है। बरसात का मौसम तो मनुष्य और प्रकृति के संवेदनशील संबंधों का चरम है। यह ऋतु मनुष्य को सामंजस्य सिखाती है।

अपने परिवेश के प्रति जागरूक करती है। सामंजस्य के लिए जिस सहजता की आवश्यकता है, वह धीरज रखने से ही संभव है। परिवेश का अपना विधान है। मनुष्य के धैर्य खो देने से प्रकृति का सामंजस्य डगमगा गया है। यह मौसम बरसात का है जो चौमासा कहलाता है।

यही समय हमारे इम्तहान का है। वर्षाकाल में धीरज का अभ्यास किया जा सकता है। चातुर्मास का यह समय स्वाध्याय और अभ्यास का समय है। धैर्य का अभ्यास सृष्टि में विश्वास जगाता है।

जो खोता है धीरज

जो धैर्य खोता है उसे ईश्वर की योजना में विश्वास नहीं है। वह प्रकृति के विरुद्ध जाता है। यह अनुकरणीय नहीं है। रमजान का अवसर भी इसी सब्र और इबादत की और इशारा करता है। सामूहिक प्रार्थनाएं हमारे दायित्वबोध और दायित्व निर्वहन की प्रतीक हैं।

धैर्य मन में साहस भरता है सभ्यता के विकास क्रम में मनुष्य आज मशीनी युग में पहुंच गया है। इस युग की चुनौतियां दिन-ब-दिन विकट होती जा रही हैं और इंसान का सब्र जवाब देने लग गया है। इस दौर में सहनशीलता की मिसाल मिलना मुश्किल है लेकिन सामंजस्य और सहनशीलता हमारे सामूहिक दायित्वबोध के लिए अनिवार्य है।


कठिन परिस्थितियों से मुकाबला करने के लिए जिस साहस की आवश्यकता होती है वह धैर्य से ही उत्पन्न होता है। धीरज रखने से परिस्थितियों से सामंजस्य ही राह दिखाई देने लगती है। उतावलापन समय का अपमान है। मौसम का अपमान है और स्वयं की सहनशीलता का भी अपमान है।

इनसे लें शिक्षा

हमारे धर्मग्रंथों में भी धैर्य और सामंजस्य के अनेक उदाहरण मिलते हैं। हमारे कथानायकों का जीवनवृत धैर्य की प्रतिमूर्ति है। सीताहरण के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम वर्षाकाल की अवधि बीतने तक प्रतीक्षा करते हैं।

तब जाकर सीता की खोज का अभियान शुरू होता है। कौशल्या ने 14 वर्ष तक धैर्यपूर्वक श्रीराम की प्रतीक्षा की। देवी अहिल्या ने श्रीराम की प्रतीक्षा की, उनकी आंखें पथरा गईं। शबरी भी राम की प्रतीक्षा करती रही, असीम धैर्य के साथ।

महाभारत में कुंती बारह बरस के वनवास और एक बरस के अज्ञातवास तक अपने पुत्रों की प्रतीक्षा करती हैं। कितना महान धैर्य रहा होगा इनके हृदय में! कंस ने देवकी के आठवें पुत्र की प्रतीक्षा नहीं कि सभी संतानों के संहार का निर्णय लिया। इंद्र ने वर्षा की तो कृष्ण ने गोवर्द्धन पर्वत उठाकर लोगों को शरण दी और धैर्य धारण करने का अमर संदेश दिया।

सुभद्रा ने चक्रव्यूह भेदने का रहस्य धैर्यपूर्वक नहीं सुना। यदि वह सब्र रखती तो कुरुक्षेत्र की कहानी कितनी बदल गई होती, लेकिन उसने धीरज खोया और नींद को चुना। गंगापुत्र भीष्म ने मृत्युशैया पर असहनीय कष्ट सहते हुए सूर्य के उत्तरायण गमन की प्रतीक्षा की।

महानायकों का यह धैर्य हमें प्रेरणा देता है। ये पौराणिक कथासूत्र हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं। उनका गुणकथन हमारे अभ्यास को बल देता है। इससे स्वाध्याय की दिशा प्राप्त होती है। विराम और विश्राम में अंतर अपनी मर्जी से ठहराव और परिस्थितिवश रुकने को समझें।

जिंदगी में बढ़ती बेताबी

तेज बारिश के नहीं रुकने पर बढ़ती बेताबी को हमने महसूस किया है। सड़कों पर बारिश की बूंदों की रफ्तार के साथ अपने वाहन की रफ्तार बढ़ाकर जल्दबाजी भी की है। इंतजार के समय धीरज खोना वक्त के साथ निरर्थक संघर्ष में उलझना है।

विश्राम और विराम के अंतर को समझना जरुरी है। अपनी सुविधा के साथ हम ठहरते हैं तो यह समय विश्राम का लगता है। हम सहज होते हैं। यूं ठहरना सुखदायक होता है। हमारी मर्जी का होता है। परिस्थितिवश हमें ठहरना पड़े तो बहुत बुरा लगता है। अनचाहा ठहराव सहनशीलता को बहुत अखरता है।

बारिश यही अनचाहा ठहराव लाती है। हमारे रोज के आचार-व्यवहार और दिनचर्या में बदलाव लाती है। हमारी रुटीन को बाधित करती है। समय की इकाइयों से हमने अपने जीवन को इतना जकड़ दिया है कि हम जीवन के विस्तार के प्रति उपेक्षा से भर गए हैं।

इसने जीवन के व्यापक फलक को असंतोष से भर दिया है। यह ठहराव हमें बाधा लगती है। यह मौसम बरसात का है जो चौमासा कहलाता है। वर्षाकाल में धीरज का अभ्यास किया जा सकता है।

धैर्य का अभ्यास

चातुर्मास का यह समय स्वाध्याय और अभ्यास का समय है। धैर्य का अभ्यास सृष्टि में विश्वास जगाता है। जो धैर्य खोता है, उसे ईश्वर की योजना में विश्वास नजर नहीं आता। वर्षा और संस्कार वर्षाकाल हमारी सहनशीलता को संस्कारित करने आया है। संतोष और शील का सबक सिखाने आया है।

धरती की कोख में करोड़ों बीज वर्षा का रास्ता देखते हैं। चातक स्वाति नक्षत्र की प्रतीक्षा करता है। तुलसीदासजी ने धैर्य की परीक्षा लेने की बात कही है। आपत्तिकाल में धीरज को परखना चाहिए। बरसात के मौसम की विपत्तियां प्राकृतिक हैं। यह प्रकृति की कसौटी है और हमें अपने धीरज की परीक्षा लेनी है। न केवल परीक्षा लेनी है अपितु संकल्पपूर्वक उसे इस परीक्षा में सफल भी करवाना है।

जिसका धैर्य सफल होता है उसका धर्म भी सफल होता है। वर्षा सब्र सिखाती है, सब्र परिग्रह से रोकता है। अपरिग्रह की ओर अग्रसर करता है। अपरिग्रह की भावना ही हमारी सामूहिक चेतना का आधार है। बारिश का मौसम प्रकृति का विश्राम है। इसे अनचाहा विराम समझ लेने से मन का संघर्ष बढ़ेगा।

यह प्रकृति का साथ निभाने का समय है। सब्र रखेंगे तो सारा असंतोष, नफरत और अशांति समाप्त हो जाएगी। शांति में ही सुख है, आनंद है। धैर्य के अतिरिक्त समय-प्रबंधन की कोई और पहेली नहीं है। जब अनुकूल समय हो तो उसका सामंजस्य तो बहुत आसान है।

मानवीय सामथ्र्य की परीक्षा विपरीत समय में ही होती है और विकट स्थितियों में सब्र करना ही सामंजस्य की कुंजी है। सामंजस्य में ही सफलता निहित है।

साभार -डॉ. राजकुमार व्यास

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