गुरुवार, 28 मई 2015

जयपुर। नौकरी के लिए 23 साल तक लड़ी लड़ाई, मौत के बाद आया फैसला



जयपुर।
नौकरी के लिए 23 साल तक लड़ी लड़ाई, मौत के बाद आया फैसला


बैंक में 1991 में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी पद पर नौकरी तो लग गई, लेकिन शिवप्रसाद से साढ़े छह माह में यह छिन भी गई। इसके बाद बहाली से लेकर बकाया भुगतान और नियमित होने के लिए कोर्ट का सहारा लेता रहा।
नियमित होने के लिए पिछले साल आखिरी याचिका की, उसकी सुनवाई जीते जी हो गई लेकिन फैसला मरने के बाद आया।
यूं तो शिवप्रसाद जैसे इस तरह के मामलों में कानूनी संघर्ष कर रहे अनेक लोग हैं और शिवप्रसाद अपने आखिरी मामले में हार भी गया, लेकिन कोर्ट ने इस मामले में व्यवस्था दी है कि सुनवाई के बाद रिजर्व प्रकरणों में व्यक्ति की मौत होने पर भी फैसला सुनाया जा सकता है। इस मामले में कोर्ट ने शिवप्रसाद के वारिशों को अपील करने की छूट भी दी है।
इस तरह चला संघर्ष
मार्च 1991 में यूको बैंक में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी नियुक्त, अक्टूबर 1991 में नौकरी छिन गई। याचिका करने पर हाईकोर्ट ने 1994 में बहाली का आदेश दिया। उसी साल छंटनी में फिर निकाल दिया, तो दिसम्बर 1999 में औद्योगिक विवाद न्यायाधिकरण ने बहाली का आदेश दिया। बैंक ने इसे चुनौती दी, लेकिन हाईकोर्ट की खण्डपीठ तक से बैंक हार गया।
वर्ष 2011 में शिवप्रसाद ने नियमित करने के लिए हाईकोर्ट से गुहार की। कोर्ट ने मई 2012 में बैंक से विचार करने को कहा। बैंक राजी नहीं हुआ शिवप्रसाद ने फिर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
इस पर हाईकोर्ट ने दिसम्बर 2013 में बैंक को ज्ञापन देने को कहा। बैंक ने फिर भी नियमित नहीं किया तो 10 साल की सेवा के आधार पर नियमित करने के लिए फिर याचिका की।
इसी पर गत पांच मई को हाईकोर्ट ने सुनवाई पूरी की और फैसला 14 मई को सुनाया गया। इसी बीच शिवप्रसाद पहले जिंदगी से हारा और मरने के बाद मुकदमा भी हार गया।

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