सोशल मीडिया पर शुक्रवार का दिन रहा भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और सुभाषचंद्र बोस के नाम.
सोशल मीडिया इस्तेमाल करने वालों के दो गुट बन गए.
एक बोस के समर्थन में रहा तो दूसरा नेहरू का बचाव और समर्थन करते दिखा.
जिस ख़बर ने सोशल मीडिया पर हंगामा मचाया वो थी बोस की कथित जासूसी जो नेहरू सरकार ने दो दशकों तक कराई.
ये ख़बर इंडिया टुडे में छपी जिसमें सुभाषचंद्र बोस से जुड़ी ख़ुफ़िया फ़ाइलों का हवाला दिया गया था. उसके बाद सोशल मीडिया पर #NehruSnooped चलने लगा.
कई ट्विटर यूज़र्स ने ख़बर के बाद जवाहरलाल नेहरू की आलोचना करनी शुरू कर दी तो वहीं कई लोगों ने लिखा कि इस बात को बेवजह का तूल देने की कोई ज़रूरत नहीं है.
नेहरू की आलोचना
शेखर मित्तल नाम के एक ट्विटर यूज़र ने लिखा, "नेहरू, अंग्रेज़ों के बेहद क़रीबी थे. और उनसे यही उम्मीद की जा सकती है."
श्वेता पटेल लिखती हैं, "नेहरू से जुड़ी ऐसी और बातें सामने आनी चाहिए."
कुछ पाठकों ने लिखा कि गांधी का पटेल के बजाय नेहरू को प्रधानमंत्री बनाना एक ऐतिहासिक भूल थी.
समर्थन
वहीं कुछ पाठकों ने इस मामले में नेहरू का पक्ष लिया.
जस्ट रोज़ी ने लिखा, "सुभाषचंद्र बोस हिटलर के क़रीबी थे. ऐसे में उनकी जासूसी कराने में कोई ग़लती नहीं है."
मिथुन मेमन नाम के ट्विटर यूज़र ने लिखा, "नरेंद्र मोदी की सरकार भारत की मौजूदा समस्याओं को सुलझा नहीं पा रही है तो इतिहास के तथ्य तोड़-मरोड़ के लीक करा रही है."
वहीं विनोद कुमार ने लिखा, "सब शांत रहो. यहां कोई संत नहीं है."
महात्मा गांधी के पड़पोते तुषार गांधी ने ट्वीट किया, "नेहरू ने अगर सुभाषचंद्र बोस के परिवार की निगरानी की तो इसमें ग़लत क्या है."
कांग्रेस बनाम भाजपा
कांग्रेस ने इस पर नेहरू का बचाव किया.
वरिष्ठ कांग्रेस नेता पीसी चाको ने कहा, "ये इतिहास का सही प्रस्तुतीकरण नहीं है. पंडित नेहरू और सुभाषचंद्र बोस के बीच कुछ मतभेद ज़रूर थे लेकिन दोनों एक दूसरे की बड़ी इज़्ज़त करते थे."
कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा, "भाजपा की सरकार सत्ता में है तो ऐसी ख़बरें आएंगी ही. सब जानते हैं कि नेहरू संघ परिवार की हिंदू-मुसलमानों को बांटने की नीति के ख़िलाफ़ थे. इसलिए भाजपा नेहरू के बारे में ऐसी बातें फैला रही है."
भारतीय जनता पार्टी के नेता मुख्तार अब्बास नक़वी ने कहा, "कांग्रेस का इतिहास ही ऐसी नकारात्मक बातों से भरा है."
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