जोधपुर 38 साल पुरानी लूट के मामले में फिर से भेजा जेल
राजस्थान उच्च न्यायालय ने 38 वर्ष पूर्व लूट के एक मामले के आरोपी की सम्पूर्ण सजा माफ करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अभियुक्तों के प्रति अपराध पुराना होने के आधार पर सहानुभूति बरतना अपराधों को बढ़ावा देना है। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनवारीलाल शर्मा ने पाली जिले के मारवाड़ जंक्शन निवासी सोहनलाल माली की पुनरीक्षण याचिका खारिज करते हुए उसे न्यायालय से ही सजा काटने के लिए हिरासत में भेज दिया।
उच्च न्यायालय ने अभियुक्त को 38 वर्ष पूर्व की लूट के लिए दोषी मानते हुए अधीनस्थ न्यायालय व अपीलीय न्यायालय द्वारा दोषी ठहराए जाने को सही माना, लेकिन उसे दी गई दो वर्ष की सजा को घटाकर एक वर्ष कर दिया। पुनरीक्षणकर्ता की ओर से कहा गया कि प्रार्थी पिछले 38 वर्षों से मामले में विचारण भुगत रहा है और उस पर मात्र आठ सौ रुपए की लूट का आरोप है। उनका यह भी कहना था कि सहअभियुक्त सोहनसिंह को अधीनस्थ न्यायालय ने दोषमुक्त कर दिया है। प्रार्थी की ओर से भुगती सजा में छोडऩे का अनुरोध किया गया।
राज्य सरकार की ओर से लोक अभियोजक एल.आर. उपाध्याय व परिवादी अधिवक्ता सुनील बेनीवाल ने पक्ष रखा। सभी पक्षों को सुनने के बाद न्यायाधीश बनवारीलाल शर्मा ने प्रार्थी को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 392 के तहत दोषी ठहराए जाने के अधीनस्थ न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया, लेकिन सजा के मामले में उसे भुगती सजा में छोडऩे के स्थान पर दो वर्ष के स्थान पर एक वर्ष की सजा और दो सौ रुपए जुर्माने की सजा सुनाते हुए जेल भेज दिया।
राजस्थान उच्च न्यायालय ने 38 वर्ष पूर्व लूट के एक मामले के आरोपी की सम्पूर्ण सजा माफ करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अभियुक्तों के प्रति अपराध पुराना होने के आधार पर सहानुभूति बरतना अपराधों को बढ़ावा देना है। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनवारीलाल शर्मा ने पाली जिले के मारवाड़ जंक्शन निवासी सोहनलाल माली की पुनरीक्षण याचिका खारिज करते हुए उसे न्यायालय से ही सजा काटने के लिए हिरासत में भेज दिया।
उच्च न्यायालय ने अभियुक्त को 38 वर्ष पूर्व की लूट के लिए दोषी मानते हुए अधीनस्थ न्यायालय व अपीलीय न्यायालय द्वारा दोषी ठहराए जाने को सही माना, लेकिन उसे दी गई दो वर्ष की सजा को घटाकर एक वर्ष कर दिया। पुनरीक्षणकर्ता की ओर से कहा गया कि प्रार्थी पिछले 38 वर्षों से मामले में विचारण भुगत रहा है और उस पर मात्र आठ सौ रुपए की लूट का आरोप है। उनका यह भी कहना था कि सहअभियुक्त सोहनसिंह को अधीनस्थ न्यायालय ने दोषमुक्त कर दिया है। प्रार्थी की ओर से भुगती सजा में छोडऩे का अनुरोध किया गया।
राज्य सरकार की ओर से लोक अभियोजक एल.आर. उपाध्याय व परिवादी अधिवक्ता सुनील बेनीवाल ने पक्ष रखा। सभी पक्षों को सुनने के बाद न्यायाधीश बनवारीलाल शर्मा ने प्रार्थी को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 392 के तहत दोषी ठहराए जाने के अधीनस्थ न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया, लेकिन सजा के मामले में उसे भुगती सजा में छोडऩे के स्थान पर दो वर्ष के स्थान पर एक वर्ष की सजा और दो सौ रुपए जुर्माने की सजा सुनाते हुए जेल भेज दिया।
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