धीरे धीरे मंजर मंजर वक्त चलता रहता है:- कवि अमन
होली के उपलक्ष में काव्य गोष्ठी का हुई आयोजित
बाड़मेर । अन्तर प्रान्तीय कुमार साहित्य परिषद बाड़मेर की ओर से रविवार को होली के उपलक्ष में काव्य गोष्ठी पेंषनर समाज के महामंत्री मोहनलाल बोहरा के मुख्य आतिथ्य, डाॅ. बी.डी. तातेड़ की अध्यक्षता, पेंषनर समाज के अध्यक्ष जयकिषन जोषी के संरक्षकत्व व सीताराम व्यास राहगीर के विषिष्ट आतिथ्य में आयोजित हुई ।
गोष्ठी के मुख्य आतिथ्य मोहनलाल बोहरा ने अपनी बात रखते हुए कहा कि कवि और तमाम साहित्यकार देष, समाज और परिस्थितियों का सच्चा आईना होते है जो कुछ भी घटता है उसे कवि बहुत ही करीब से महसूस कर समाज को सही राह प्रषस्त करता है । गोष्ठी के संरक्षक जयकिषन जोषी ने स्वयं के कवियों से रहे नजदीकी तालुकातों का जिक्र करते हुए वीर रस कविता प्रस्तुत कर कवियों को देष के लिए कुछ करने की प्रेरणा दी ।
काव्य गोष्ठी के संयोजक मुकेष बोहरा ‘अमन’ ने बताया कि इस अवसर पर कवियों ने होली, फागुन, बसन्त सहित कई विषयों पर श्रृंगार, हास्य, शान्त व वीर रस की कविताएं प्रस्तुत की । गोष्ठी का आगाज रेंवताराम मायला की रचना ‘मैं पतझड़ हूं, तू मधुमास है’ से हुआ । तिलोकाराम मायला ने ‘महकी-महकी सी हवा’, दीपसिंह रणधा ने ‘नवप्रभात निरखतौ गीत खुषी रा गावै’, गौतम संखलेचा चमन ने ‘अंग अंग में रंग है’, हनुमान प्रजापत ने ‘कैथ गैरियों री टोळी’, कमल शर्मा राही ने ‘बिखरे ख्वाब समेटने आया हूं’, महेन्द्र तिवारी ने ‘वो खूबसूरती क्या’, सीताराम व्यास राहगीर ने ‘तकदीर क्या करेगा कुछ इल्म जान लिजिए’, मुकेष बोहरा ‘अमन’ ने ‘धीरे धीरे मंजर मंजर वक्त चलता रहता है’, डाॅ. बी.डी. तातेड़ ने हो सके तो उन्हें सलाम करना’ रचना प्रस्तुत कर खूब वाह वाही बटोरी । गोष्ठी के अन्तिम पायदान में परिषद के सचिव गौतम संखलेचा चमन ने सभी आभार व धन्यवाद ज्ञापित किया ।
होली के उपलक्ष में काव्य गोष्ठी का हुई आयोजित
बाड़मेर । अन्तर प्रान्तीय कुमार साहित्य परिषद बाड़मेर की ओर से रविवार को होली के उपलक्ष में काव्य गोष्ठी पेंषनर समाज के महामंत्री मोहनलाल बोहरा के मुख्य आतिथ्य, डाॅ. बी.डी. तातेड़ की अध्यक्षता, पेंषनर समाज के अध्यक्ष जयकिषन जोषी के संरक्षकत्व व सीताराम व्यास राहगीर के विषिष्ट आतिथ्य में आयोजित हुई ।
गोष्ठी के मुख्य आतिथ्य मोहनलाल बोहरा ने अपनी बात रखते हुए कहा कि कवि और तमाम साहित्यकार देष, समाज और परिस्थितियों का सच्चा आईना होते है जो कुछ भी घटता है उसे कवि बहुत ही करीब से महसूस कर समाज को सही राह प्रषस्त करता है । गोष्ठी के संरक्षक जयकिषन जोषी ने स्वयं के कवियों से रहे नजदीकी तालुकातों का जिक्र करते हुए वीर रस कविता प्रस्तुत कर कवियों को देष के लिए कुछ करने की प्रेरणा दी ।
काव्य गोष्ठी के संयोजक मुकेष बोहरा ‘अमन’ ने बताया कि इस अवसर पर कवियों ने होली, फागुन, बसन्त सहित कई विषयों पर श्रृंगार, हास्य, शान्त व वीर रस की कविताएं प्रस्तुत की । गोष्ठी का आगाज रेंवताराम मायला की रचना ‘मैं पतझड़ हूं, तू मधुमास है’ से हुआ । तिलोकाराम मायला ने ‘महकी-महकी सी हवा’, दीपसिंह रणधा ने ‘नवप्रभात निरखतौ गीत खुषी रा गावै’, गौतम संखलेचा चमन ने ‘अंग अंग में रंग है’, हनुमान प्रजापत ने ‘कैथ गैरियों री टोळी’, कमल शर्मा राही ने ‘बिखरे ख्वाब समेटने आया हूं’, महेन्द्र तिवारी ने ‘वो खूबसूरती क्या’, सीताराम व्यास राहगीर ने ‘तकदीर क्या करेगा कुछ इल्म जान लिजिए’, मुकेष बोहरा ‘अमन’ ने ‘धीरे धीरे मंजर मंजर वक्त चलता रहता है’, डाॅ. बी.डी. तातेड़ ने हो सके तो उन्हें सलाम करना’ रचना प्रस्तुत कर खूब वाह वाही बटोरी । गोष्ठी के अन्तिम पायदान में परिषद के सचिव गौतम संखलेचा चमन ने सभी आभार व धन्यवाद ज्ञापित किया ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें