बुधवार, 18 मार्च 2015

यहां कृष्ण के अवतार के साथ होती है रुक्मिणी की पूजा



सनातन संस्कृति में देवी-देवताओं के पूजन की परंपरा है। वास्तव में सभी देवता परमात्मा की विशेष शक्ति का एक प्रतीक हैं। इनका पूजन भगवान का ही पूजन है। भारत भूमि में भगवान ने कई अवतार लिए हैं। राम, कृष्ण आदि अवतारों के अलावा लोकदेवाओं के रूप में भी भगवान का प्राकट्य हुआ है।



भगवान विट्ठल भी ऐसे ही देवता हैं जो श्रीकृष्ण के अवतार माने जाते हैं। विट्ठल के बारे में यह बात मशहूर है कि उनके दर्शन और यहां तक कि नाम स्मरण से भी अगर आप कुछ मांगें तो वे मनोकामना जरूर पूरी करते हैं।




यूं तो उनकी पूजा का मुख्य दिन बुधवार माना जाता है लेकिन उनके द्वार पर ऐसा कोई दिन नहीं जब दूर-दूर से आए भक्तों के शीश अपने भगवान के सामने न झुकते हों। हर रोज श्रद्धालु अपने प्रभु से मन्नत मांगने आते हैं।




न्यारी है विट्ठल की महिमा

भारत के कई गांव-शहरों में भगवान विट्ठल के मंदिर हैं, लेकिन उनका सबसे प्रसिद्ध मंदिर महाराष्ट्र के पंढरपुर में है। विट्ठल की प्रतिमा काले रंग की होती है। उनके दोनों हाथ कमर पर होते हैं। विट्ठल के साथ रुक्मिणी भी विराजमान रहती हैं और भक्त उनका पूजन कर आशीर्वाद लेते हैं।




महाराष्ट्र के अलावा दक्षिण भारत के कई स्थानों पर भी विट्ठल के मंदिर हैं। यहां सभी विशेष पर्वों पर धूमधाम के साथ भगवान का पूजन किया जाता है। महाराष्ट्र में स्थित मंदिर में हर दिन श्रद्धालु आते हैं लेकिन चार महीने - आषाढ़, कार्तिक, माघ और श्रावण में काफी संख्या में श्रद्धालुओं का आगमन होता है।




ऐसा माना जाता है कि विट्ठल के लिए की जाने वाली इन पदयात्राओं का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है। लोगों के मुताबिक 800 वर्षों से भी ज्यादा समय से लोग दूर-दूर से पैदल आकर अपने भगवान के प्रति श्रद्धा प्रकट करते रहे हैं। इस दौरान पंढरपुर की अलग ही रौनक होती है।




विट्ठल तेरे कितने नाम!

भगवान विट्ठल को उनके भक्त विभिन्न नामों से भी संबोधित करते हैं। कोई उन्हें विट्ठाला कहता है तो किसी के लिए वे पांडुरंगा हैं। इसके अलावा नारायण, पंधारीनाथ और हरि जैसे नाम भी भगवान विट्ठल के ही हैं। मंदिर में विट्ठल के साथ विराजमान रुक्मिणी को साक्षात लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है।




महाराष्ट्र के कई संतों ने मराठी भाषा में भगवान विट्ठल के गुणगान में रचनाएं लिखी हैं। श्रद्धालु पदयात्रा के दौरान उनकी रचनाओं का संगीतमय तरीके से गायन भी करते हैं। भक्तों की प्रबल मान्यता है कि विट्ठल के दरबार में कोई सच्चे मन से आए तो कभी खाली हाथ नहीं जाता।

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