राजस्थान यूनिवर्सिटी: छात्रसंघ चुनाव हुआ रद्द
लिंगदोह ने अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव का सुझाव भी दे रखा है, जैसा जेएनयू व हैदराबाद विवि जैसे बड़े विवि में होता है। राजस्थान विवि भी काफी बड़ा है, सरकार अप्रत्यक्ष चुनाव पर विचार कर सकती है। सारांश घीया की याचिका पर न्यायाधीश मनीष्ा भण्डारी ने यह निर्णय सुनाया।
दो सलाहअप्रत्यक्ष पद्धति (कक्षा प्रतिनिधि प्रणाली) से चुनाव पर विचार करें।
सरकार चुनाव पर पाबंदी के लिए कानून लाने को भी स्वतंत्र है।
ये आधार देकर गुहारघीया ने याचिका के साथ राजस्थान पत्रिका सहित अन्य अखबारों की कटिंग पेश कर कहा था, छात्रसंघ चुनाव में आचार संहिता का उल्लंघन हुआ। प्रचार सामग्री से शहर गंदा हुआ। सड़कों पर खुलेआम हंगामा हुआ। लिहाजा चुनाव रद्द कर दिए जाएं।
इनकी बिना पर आदेशकोर्ट ने कहा, फोटोग्राफ व पेश सबूतों में साफ दिख रहा है कि शहरभर में पोस्टर चिपक रहे हैं। विवि, कॉलेज परिसर में पम्पलेट बिखरे हैं। छात्रों ने रैली निकाली व झगड़ा किया। झड़प में पुलिसकर्मी घायल हुआ। एफआईआर भी
दर्ज हुई।
सुप्रीम कोर्ट में मामलाहाईकोर्ट के चुनाव परिणाम पर रोक के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में छात्रनेता मूलचंद चौधरी व द्रोण ने विशेष्ा अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर की, जिस पर सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्रार के कार्यालय में 23 जनवरी को सुनवाई है।
कई नेता आयु सीमा पारविवि छात्रसंघ चुनाव लड़ने के लिए अधिकतम आयु सीमा 25 वष्ाü है। फिर चुनाव हुए तो इस बार के कई छात्र नेता इस सीमा को पार कर चुके होंगे।
निर्णय दुर्भाग्यपूर्ण
एबीवीपी भारतीय न्याय व्यवस्था में पूर्ण विश्वास करती है, लेकिन यह निर्णय अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। सरकार की उदासीनता और पुलिस-प्रशासन के नकारात्मक रवैये पर हमें गहरा क्षोभ है।
डॉ. मिथलेश गौतम, प्रदेश संगठन मंत्री, एबीवीपी
भाजपा सरकार जिम्मेदार
भाजपा सरकार ने इन चुनावों में हार की आशंका के चलते पुलिस-प्रशासन को कोर्ट में नकारात्मक रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा था। कोर्ट का फैसला छात्र राजनीति के लिए दुर्भाग्यपूर्ण रहा।
मुकेश भाकर, प्रदेश अध्यक्ष, एनएसयूआई
सीधे चुनाव तो भू-माफिया का दखल
कोर्ट ने जयपुर पुलिस आयुक्त के शपथपत्र का हवाला दे कहा, साफ दिखा कि आचार संहिता व लिंगदोह सिफारिशों का पालन नहीं हुआ। प्रत्यक्ष चुनाव में भूमाफिया व असामाजिक तत्वों की भागीदारी रहती है। इनके पैसे व बाहुबल का दखल रहता है। इस बार भी ऎसी बात सामने आई है। ऎसा प्रत्यक्ष चुनाव के कारण हो रहा है।
वोटिंग न होती तो मिल जाती अनुमति
हाईकोर्ट ने कहा, मतदान नहीं होता तो लिंगदोह कमेटी की सिफारिश का उल्लंघन नहीं करने वालों को चुनाव लड़ने की अनुमति दी जा सकती थी। आचार संहिता, लिंगदोह कमेटी की सिफारिश और सुप्रीम कोर्ट आदेश का पालन नहीं होने के कारण 23 अगस्त को हुए चुनाव निरस्त करने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं है।
पहले भी अटके थे
वर्ष 1978 में भी राजस्थान विवि छात्रसंघ चुनाव रद्द हुए थे। तब छात्र नेताओं के बीच हुई हिंसक वारदातों के कारण विवि प्रशासन ने चुनाव रद्द किए थे।
अब तक यह
22 अगस्त- परिणाम पर रोक, कोर्ट ने मांगे विवि, पुलिस से आचार संहिता की पालना के शपथपत्र।
23 अगस्त- मतदान हुआ। कोर्ट ने शपथपत्रों पर सुनवाई से पहले परिणाम जारी नहीं करने को कहा।
30 सितंबर- छात्रसंघ चुनाव परिणाम को लेकर याचिका पर कोर्ट में सुनवाई पूरी।
और आगे क्या
विश्वविद्यालय, सरकार या छात्रनेता इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट की खंडपीठ में अपील कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट में भी इस संबंध में लंबित एसएलपी में यह मुद्दा उठाया जा सकता है।
पत्रिका व्यू: स्वागत योग्य फैसला
राजस्थान विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव को लेकर हाईकोर्ट का फैसला स्वागत योग्य है। न्यायाधीश महोदय को साधुवाद। छात्रसंघ चुनाव के दौरान धनबल, बाहुबल का प्रदर्शन, दीवारें खराब और यातायात जाम का मंजर आम शहरी भूले नहीं होंगे। लिंगदोह कमेटी की सिफारिशें लागू होने के भ्रामक हलफनामों के कारण अदालत नाराज थी और ऎसा ही फैसला आना था। अदालत का फैसला आम जनता में उम्मीद जगाने वाला है, वहीं विश्वविद्यालय और पुलिस-प्रशासन के साथ छात्रों को नसीहत देने वाला।
छात्रसंघ चुनाव बेशक लोकतंत्र की पाठशाला है, लेकिन अनुशासन और आम जनता को तकलीफ ना होना ज्यादा अहम है। सरकार, प्रशासन और छात्र यदि चुनाव करवाना भी चाहते हैं तो विश्वविद्यालय परिसर में सादगी से चुनाव सुनिश्चित करें, इच्छाशक्ति हो तो यह मुश्किल काम नहीं है। सरकार को अदालत की यह गाइडलाइन अन्य विश्वविद्यालयों में भी लागू करनी चाहिए। -
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