जयपुर। उसकी नजरें शून्य में ताकती रहती हैं। जैसे ही किसी मददगार की आहट कानों में पड़ती है, वह पैर छूकर अपने बेटे को बचाने की गुहार करता है, साहब! मेरे बेटे को बचा लो।
एक ही बेटा है मेरा। उसे किडनी का कैंसर है। बस जांच करा दो। कोटा के पीपलदा निवासी पप्पूलाल बीते एक महीने से एसएमएस अस्पताल में आने-जाने वालों के सामने यही गुहार लगा रहे हैं। अब तो मुंह खोलते ही गला रूंधने लगता है।
आंखों में बस चुकी बेबसी को सरकारी कानून और बढ़ा रहे हैं। मजदूरी कर पेट पालने वाला पप्पूलाल "गरीब" तो है, लेकिन बेबस है कि कागजों में वह बीपीएल नहीं है। इसलिए उसके 7 साल के बेटे लोकेश का नि:शुल्क सीटी स्कैन नहीं हो सकता।
फाकाकशी को मजबूर पप्पूलाल को डॉक्टरों ने टका-सा जवाब दे दिया है...इलाज के लिए जांच तो करानी ही होगी। पैसा है नहीं, जांच हुई नहीं और डॉक्टरों ने बीमार हालत में लोकेश को छुट्टी दे डाली।
अनसुनी : हर दरवाजे पर
पप्पूलाल बताते हैं, पहले उन्होंने लोकेश को देख रहे डॉक्टर को अपनी मजबूरी बताई। उसने अनसुनी की तो अफसरों के पास गए। कई कक्षों में तो चौकीदारों ने जाने ही नहीं दिया। जहां पहुंचे भी वहां "साहब" ने दरवाजा दिखा दिया।
विकल्प : नि:शुल्क गरीब श्रेणी
जिस गरीब के पास बीपीएल कार्ड भी नहीं है, उसका इलाज अस्पताल प्रशासन नि:शुल्क गरीब श्रेणी के तहत कर सकता है। उस मरीज को देख रहे डॉक्टर के पास उसकी नि:शुल्क जांच व इलाज की सिफारिश का अधिकार है।
सवाल : फिर इलाज किसका
लेकिन, पप्पूलाल की गरीबी न तो किसी डॉक्टर को दिखी और न ही अधिकारी को। डॉक्टरों के विवेकाधीन गरीबों की मदद के लिए दी गई इस सुविधा का इस्तेमाल रसूखदारों और चहेतों के लिए होने के मामले आम हैं।
पत्रिका पहुंचा तो डॉक्टर बोले, भेज दो करा देंगे मुफ्त जांच
एसएमएस अस्पताल के यूरोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. एस.एस. यादव से जब पत्रिका संवाददाता ने बात की तो बोले, एक ऎसा बच्चा भर्ती तो था, पर मुझे केस का ठीक से ध्यान नहीं है। उसने अपनी स्थिति ठीक से बताई नहीं होगी। आप उसे ओपीडी के दिन कभी भी मेरे पास भेज दो, उसका नि:शुल्क इलाज करा देंगे।
ये महंगी जांचें भारी
सीटी स्कैन, एमआरआई, एंजियोग्राफी, एंजियोप्लास्टी, कैंसर की जांच।
गैर बीपीएल गरीब की नि:शुल्क जांच की सिफारिश यूनिट का प्रोफेसर कर सकता है। मंजूरी का अधिकार कुछ प्रशासनिक अधिकारियों के पास हैं।
डॉ.अजीत सिंह, अतिरिक्त अधीक्षक -
एक ही बेटा है मेरा। उसे किडनी का कैंसर है। बस जांच करा दो। कोटा के पीपलदा निवासी पप्पूलाल बीते एक महीने से एसएमएस अस्पताल में आने-जाने वालों के सामने यही गुहार लगा रहे हैं। अब तो मुंह खोलते ही गला रूंधने लगता है।
आंखों में बस चुकी बेबसी को सरकारी कानून और बढ़ा रहे हैं। मजदूरी कर पेट पालने वाला पप्पूलाल "गरीब" तो है, लेकिन बेबस है कि कागजों में वह बीपीएल नहीं है। इसलिए उसके 7 साल के बेटे लोकेश का नि:शुल्क सीटी स्कैन नहीं हो सकता।
फाकाकशी को मजबूर पप्पूलाल को डॉक्टरों ने टका-सा जवाब दे दिया है...इलाज के लिए जांच तो करानी ही होगी। पैसा है नहीं, जांच हुई नहीं और डॉक्टरों ने बीमार हालत में लोकेश को छुट्टी दे डाली।
अनसुनी : हर दरवाजे पर
पप्पूलाल बताते हैं, पहले उन्होंने लोकेश को देख रहे डॉक्टर को अपनी मजबूरी बताई। उसने अनसुनी की तो अफसरों के पास गए। कई कक्षों में तो चौकीदारों ने जाने ही नहीं दिया। जहां पहुंचे भी वहां "साहब" ने दरवाजा दिखा दिया।
विकल्प : नि:शुल्क गरीब श्रेणी
जिस गरीब के पास बीपीएल कार्ड भी नहीं है, उसका इलाज अस्पताल प्रशासन नि:शुल्क गरीब श्रेणी के तहत कर सकता है। उस मरीज को देख रहे डॉक्टर के पास उसकी नि:शुल्क जांच व इलाज की सिफारिश का अधिकार है।
सवाल : फिर इलाज किसका
लेकिन, पप्पूलाल की गरीबी न तो किसी डॉक्टर को दिखी और न ही अधिकारी को। डॉक्टरों के विवेकाधीन गरीबों की मदद के लिए दी गई इस सुविधा का इस्तेमाल रसूखदारों और चहेतों के लिए होने के मामले आम हैं।
पत्रिका पहुंचा तो डॉक्टर बोले, भेज दो करा देंगे मुफ्त जांच
एसएमएस अस्पताल के यूरोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. एस.एस. यादव से जब पत्रिका संवाददाता ने बात की तो बोले, एक ऎसा बच्चा भर्ती तो था, पर मुझे केस का ठीक से ध्यान नहीं है। उसने अपनी स्थिति ठीक से बताई नहीं होगी। आप उसे ओपीडी के दिन कभी भी मेरे पास भेज दो, उसका नि:शुल्क इलाज करा देंगे।
ये महंगी जांचें भारी
सीटी स्कैन, एमआरआई, एंजियोग्राफी, एंजियोप्लास्टी, कैंसर की जांच।
गैर बीपीएल गरीब की नि:शुल्क जांच की सिफारिश यूनिट का प्रोफेसर कर सकता है। मंजूरी का अधिकार कुछ प्रशासनिक अधिकारियों के पास हैं।
डॉ.अजीत सिंह, अतिरिक्त अधीक्षक -
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