मुंबई। भले ही उनकी चीखें अब चुप्पी में बदल चुकी है। पर उस खौफनाक दिन का साया अक्सर उनकी खुली आंखों में, सपनों और इच्छाओं में, जब चाहे आ जाता है।
जिंदगी बेमकसद, बेस्वाद, बेसबब और बेहद स्याह हो जाती है। वष्ाü 2008 में 26 नवंबर (26/11) का दिन उनके लिए ऎसा था, जिसकी टीस आज भी उनके जेहन में है।
उस दिन दरिंदों की बंदूक में छिपकर बैठी मौत से अंजान उनके परिजन मुंबई सीएसटी से सफर कर रहे थे। अचानक आतंकियों ने ताबड़तोड़ गोलियां चलानी शुरू कर दीं। उसमें कई लोग अपनी जान गंवा बैठे।
उनके परिजनों की जिंदगी अब वैसी नहीं रही, जैसी 26/11 के पहले थी। हालांकि परिजन अब भी हंसते हैं। बातें करते हैं और सपने भी देखते हैं लेकिन रह रह कर अपनों को 26/11 में खोने का दर्द बरकरार है।
सोनिया ने रखा था सिर पर हाथ, 6 साल बाद खाली हाथ
बर्तन की आवाज से भी सिहरन...
पीडिता साबिरा खान कहती हैं, नेताओं ने तब कई वादे किए। पर हर बार छले गए। जहां 26/11 लिखा दिखता है तो वह काला दिन एकदम याद आ जाता है। आज भी सहमी हूं। बर्तनों तक की आवाज कलेजा हिला देती है। उस दिन ने हमारी जिंदगी में हर बात में खौफ भर दिया।
दर्जनों छर्रे धंसे थे बदन में...
साबिरा बोलीं, धमाका होते ही काफी दूर जा गिरीं। सामने एक-एक कर लाशों के ढेर लगते जा रहे थे। मेरे शरीर में दर्जनों छर्रे धंसे थे और दर्द के मारे कराह रही थी। थोड़ी देर बाद लाश सी बनकर ढेर हो गइंü। मौजूद लोगों ने इंसानियत का तकाजा दिखाते जेजे अस्पताल पहुंचाया।
आंख खुली, नेताओं से घिरे पाया
आंख खुलीं तो आसपास शीर्ष नेताओं को पाया। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और तत्कालीन केंद्र व राज्य सरकार के बड़े नेता मौजूद थे। सोनिया ने मेरे सिर पर हाथ रखा। इलाज व मुआवजे का आश्वासन भी दिया मगर मिला नहीं।
6 साल, सैकड़ों अर्जियां
साबिरा के बेटे अब्दुल ने कहा, उस दिन मां के साथ था। लाशों के ढेर लगते देखे। 6 साल में केंद्र से राज्य सरकारों तक सैकड़ों अर्जियां दी। हर बार 26/11 को नेता हमारे पास आते हैं, फोटो खिंचाते हैं। फिर बुरे दिन की तरह भूल जाते हैं।
घर का बिका सामान
घर का सारा सामान बेच मां का इलाज कराया। किसी तरह की मदद नहीं मिली। सूत्रों के अनुसार हादसे में पीडित 300 में से 40 फीसदी परिवारों को सरकारी मदद चाहिए। अब्दुल को मोदी राज से अच्छे दिनों की बड़ी उम्मीद है।
न आए ऎसी रात
हमले में शहीद महाराष्ट्र पुलिस के विजस सालस्कर की पत्नी स्मिता यही कह उठती हैं, ऎसी काली रात आनी ही नहीं चाहिए थी। बेटी के साथ खुश रहने का प्रयास करती हैं। कहा, सरकार से गुहार की तो देर-सवेर जरूर सुनी जाएगी।
अफसर हैं तो राहत भी
इस परिवार को सरकार से मुआवजा भी मिला। बेटी को नौकरी भी पर वह कॉर्पोरेट सेक्टर में काम करना चाहती है। लिहाजा नौकरी से मना कर दिया। स्मिता बताती हैं, आज भी कई परिवार सरकारी मदद के इंतजार में हैं।
घात लगाए बैठे थे...
घटना के गवाह कृष्णकुमार पी. अरूण जाधव ने कहा, आतंकी अजमल कसाब, अबू इस्माइल पुलिस वैन पर घात लगाए बैठे थे, जिसमें हेमंत करकरे, अशोक राव, सालस्कर व 3 कांस्टेबल सवार थे।
मंजर भयावह था
अरूण बताते हैं, कंट्रोल रूम से फायरिंग की खबर मिली तो बगैर सुरक्षा कवच मौके पर पहुंचे तो मंजर भयावह था। जवाबी फायरिंग में घायल कसाब भागा पर तुकाराम से नहीं बच पाया। -
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