जयपुर। राजस्थान के इस मंदिर में पहली बार आने वाले भक्त डर जाते हैं।
चारों तरफ उटपटांग हरकतें करते और सिर हिलाकर विलाप करते लोगों को देखकर एक बार तो कोई भी भयभीत हो जाए।
हम बात कर रहे हैं प्रदेश के दौसा जिले में स्थित मेंहदीपुर बालाजी मंदिर की। कहा जाता है कि यहां आने वाले किसी भक्त पर यदि भूत प्रेत का साया हो तो वह दूर हो जाता है।
यह मंदिर जयपुर-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर जयपुर से तकरीबन 100 किलोमीटर और आगरा से लगभग 145 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां ट्रेन और बस दोनों से जाया जा सकता है।
यहां ट्रेन से आने वाले यात्रियों को बांदीकुई रेल स्टेशन उतरना होगा। यहां से बालाजी टैक्सी या बस से जाया जा सकता है। इस मंदिर में सभी धर्म और सम्प्रदाय के लोग आते हैं।
ऎसी मान्यता है कि बालाजी महाराज के हजारों गण यानि कि अतशप्त आत्माएं यहां बालाजी के नित्य लगने वाले भोग की खुशबू से तृप्त हो रही हैं। इसलिए यहां भूत प्रेत के साये से परेशान लोग आते हैं और ठीक होकर जाते हैं।
प्रकृति ने उकेरी आकृतियां
करौली और दौसा की सुरभ्य घाटियों में स्थित होने के कारण यह देवस्थान घाटा वाले बाबा के नाम से जाना जाता है। सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि यहां स्थित बालाजी महाराज प्रेतराज सरकार भैरवजी और कोतवाल की प्रतिमाएं प्रकृति द्वारा पर्वत शिलाओ में उकेरी गई आकृतियां हैं।
विचित्र पौराणिक कथा
कहा जाता है कि लगभग एक हजार वर्ष पहले यह देवस्थान प्रकाश में आया था। यहां के महंत परिवार को बालाजी ने स्वंय दर्शन देकर अपनी सेवा का आदेश दिया। इसके बाद यह देवस्थान जनता की नजर में आया।
एक पौराणिक प्रसंग बाल हनुमान द्वारा सूर्य को गेंद समझकर मुंह में दबा लेने और सूर्य को बंधन मुक्त कराने के लिए इंद्र द्वारा ब्रज प्रहार करने से संबंधित है। बताया जाता है कि इस प्रहार के कारण ही यहां की पहाडियों में आकृतियां उभर आई। -
चारों तरफ उटपटांग हरकतें करते और सिर हिलाकर विलाप करते लोगों को देखकर एक बार तो कोई भी भयभीत हो जाए।
हम बात कर रहे हैं प्रदेश के दौसा जिले में स्थित मेंहदीपुर बालाजी मंदिर की। कहा जाता है कि यहां आने वाले किसी भक्त पर यदि भूत प्रेत का साया हो तो वह दूर हो जाता है।
यह मंदिर जयपुर-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर जयपुर से तकरीबन 100 किलोमीटर और आगरा से लगभग 145 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां ट्रेन और बस दोनों से जाया जा सकता है।
यहां ट्रेन से आने वाले यात्रियों को बांदीकुई रेल स्टेशन उतरना होगा। यहां से बालाजी टैक्सी या बस से जाया जा सकता है। इस मंदिर में सभी धर्म और सम्प्रदाय के लोग आते हैं।
ऎसी मान्यता है कि बालाजी महाराज के हजारों गण यानि कि अतशप्त आत्माएं यहां बालाजी के नित्य लगने वाले भोग की खुशबू से तृप्त हो रही हैं। इसलिए यहां भूत प्रेत के साये से परेशान लोग आते हैं और ठीक होकर जाते हैं।
प्रकृति ने उकेरी आकृतियां
करौली और दौसा की सुरभ्य घाटियों में स्थित होने के कारण यह देवस्थान घाटा वाले बाबा के नाम से जाना जाता है। सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि यहां स्थित बालाजी महाराज प्रेतराज सरकार भैरवजी और कोतवाल की प्रतिमाएं प्रकृति द्वारा पर्वत शिलाओ में उकेरी गई आकृतियां हैं।
विचित्र पौराणिक कथा
कहा जाता है कि लगभग एक हजार वर्ष पहले यह देवस्थान प्रकाश में आया था। यहां के महंत परिवार को बालाजी ने स्वंय दर्शन देकर अपनी सेवा का आदेश दिया। इसके बाद यह देवस्थान जनता की नजर में आया।
एक पौराणिक प्रसंग बाल हनुमान द्वारा सूर्य को गेंद समझकर मुंह में दबा लेने और सूर्य को बंधन मुक्त कराने के लिए इंद्र द्वारा ब्रज प्रहार करने से संबंधित है। बताया जाता है कि इस प्रहार के कारण ही यहां की पहाडियों में आकृतियां उभर आई। -
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