भरतपुर। नगर निगम का नया बोर्ड भी गठित हुआ। जनता ने अपने चुने प्रत्याशियों में भरोसा जताया। मेयर भी चुन लिए गए। अब बारी चुने जनसेवकों की है कि वे जनता की उम्मीदों पर खरा उतरें और उन चुनौतियों को गंभीरता से लें, जो समस्याएं बन कब से निदान की बाट जोह रही हैं, लेकिन हर बार जनता को निराशा ही हाथ लगती रही है।
बदहाल सड़कें
शहर की सड़कों पर किसी भी आमजन से बात करें, उसके मुंह से इनकी बदहाली पर आह ही निकलती है। सड़कों की स्थिति के मद्देनजर यह शहर एक बड़े गांव सा लगता है। उड़ती धूल, कीचड़ से लथपथ गलियां और डंक मारते मच्छर इसे कहीं तो गांव से भी ज्यादा अव्यवस्थित बनाते हैं। नए बोर्ड के लिए सड़कें बड़ी चुनौंती हैं।
ओवरफ्लो नालियां
शहर में नालियों की बदहाली बड़ी समस्या है। ज्यादातर जल निकासी को कहीं आउटलेट नहीं दिए जाने से आए दिन इनमें ओवरफ्लो होने की समस्या बनी रहती है। नियमित सफाई भी नहीं होती, जिससे बदबू और गंदगी की समस्या शहर को घेरे ही रहती है। कहीं तो खुले नाले दुर्घटनाओं को सीधे आमंत्रित करते हैं।
कचरा पात्रों की उपेक्षा
शहर के बिगड़े स्वरूप में उपेक्षित कचरा पात्रों की भूमिका भी कम नहीं। इन्हें नियमित खाली नहीं किया जाता और भर जाने पर जानवर इनमें मुंह मारते हैं, जिससे मार्ग कचरे से अटे रहते हैं। कहीं ये जर्जर हाल में हैं और कहीं नदारद हैं।
कचरापात्र बने पार्क
कुछ पार्को की बात जाने दें तो शहर में कई पार्क हैं, जो आबाद होने की बाट जोह रहे हैं। स्टेशन रोड, बजरिया रेल्वे स्कूल के पास बना पार्क तो बरसों से बड़ा कचरा पात्र बना है। इस क्षेत्र का तमाम कचरा इसमें पटका जाता है। रात को यह जुआरियों शराबियों का अड्डा बनता है। गांधी पार्क धूल का मैदान है, जबकि यह कभी शहर का खूबसूरत पार्क था।
सुजानगंगा की बदहाली
सुजानगंगा उद्धार का सपना अब चुनौती रूप में सामने है। तमाम प्रयास और पैसा लगने के बावजूद यह जस की तस है। जबकि इसकी खुशहाली के किस्से पुरानी पीढ़ी की जुबां पर हैं। इसके लिए गंभीर प्रयास की जरूरत है।
आवारा पशु
बेकसूर जानवरों के लिए उचित व्यवस्था नहीं होने से वे शहर के लिए समस्या बने हैं। चौराहों पर लड़ते सांड, नालियों में लोट लगाते सूअर, कचरे में मुंह मारती गाएं और खौंखियाते बंदर। इस समस्या पर भी गंभीरता से काम करने की जरूरत है, लेकिन शहर में कभी ऎसा नहीं लगता कि यहां नगर निगम गंभीरता से काम करती है। जनता को उम्मीद है कि अब शायद कुछ राहत मिले।
बेलगाम अतिक्रमण
भरतपुर में सरकारी भूमि पर अतिक्रमण की समस्या काफी गंभीर है। सीएफसीडी पर इस हद तक अतिक्रमण हो चुके हैं कि कई स्थानों से उसका वजूद ही खत्म हो गया है। अन्य सरकारी जमीनों पर भी भूमाफियाओं की नजर है। सीएफसीडी पर अतिक्रमण हटाने का काम चुनौतीपूर्ण है, जिसे मजबूत इच्छाशक्ति से ही पूरा किया जा सकता है।
ये भी हैं दिक्कतें
स्ट्रीट लाइट व्यवस्था सुचारू नहीं है। सीवरेज कार्य अधरझूल में है और पुराने कुंड सड़ांध मार रहे हैं। कई स्थानों पर फैरोकवर नहीं होने से ये भी दुर्घटना के सबब बने हैं। इन्हें लेकर भी जनता को नए बोर्ड से आस हैं।
बदहाल सड़कें
शहर की सड़कों पर किसी भी आमजन से बात करें, उसके मुंह से इनकी बदहाली पर आह ही निकलती है। सड़कों की स्थिति के मद्देनजर यह शहर एक बड़े गांव सा लगता है। उड़ती धूल, कीचड़ से लथपथ गलियां और डंक मारते मच्छर इसे कहीं तो गांव से भी ज्यादा अव्यवस्थित बनाते हैं। नए बोर्ड के लिए सड़कें बड़ी चुनौंती हैं।
ओवरफ्लो नालियां
शहर में नालियों की बदहाली बड़ी समस्या है। ज्यादातर जल निकासी को कहीं आउटलेट नहीं दिए जाने से आए दिन इनमें ओवरफ्लो होने की समस्या बनी रहती है। नियमित सफाई भी नहीं होती, जिससे बदबू और गंदगी की समस्या शहर को घेरे ही रहती है। कहीं तो खुले नाले दुर्घटनाओं को सीधे आमंत्रित करते हैं।
कचरा पात्रों की उपेक्षा
शहर के बिगड़े स्वरूप में उपेक्षित कचरा पात्रों की भूमिका भी कम नहीं। इन्हें नियमित खाली नहीं किया जाता और भर जाने पर जानवर इनमें मुंह मारते हैं, जिससे मार्ग कचरे से अटे रहते हैं। कहीं ये जर्जर हाल में हैं और कहीं नदारद हैं।
कचरापात्र बने पार्क
कुछ पार्को की बात जाने दें तो शहर में कई पार्क हैं, जो आबाद होने की बाट जोह रहे हैं। स्टेशन रोड, बजरिया रेल्वे स्कूल के पास बना पार्क तो बरसों से बड़ा कचरा पात्र बना है। इस क्षेत्र का तमाम कचरा इसमें पटका जाता है। रात को यह जुआरियों शराबियों का अड्डा बनता है। गांधी पार्क धूल का मैदान है, जबकि यह कभी शहर का खूबसूरत पार्क था।
सुजानगंगा की बदहाली
सुजानगंगा उद्धार का सपना अब चुनौती रूप में सामने है। तमाम प्रयास और पैसा लगने के बावजूद यह जस की तस है। जबकि इसकी खुशहाली के किस्से पुरानी पीढ़ी की जुबां पर हैं। इसके लिए गंभीर प्रयास की जरूरत है।
आवारा पशु
बेकसूर जानवरों के लिए उचित व्यवस्था नहीं होने से वे शहर के लिए समस्या बने हैं। चौराहों पर लड़ते सांड, नालियों में लोट लगाते सूअर, कचरे में मुंह मारती गाएं और खौंखियाते बंदर। इस समस्या पर भी गंभीरता से काम करने की जरूरत है, लेकिन शहर में कभी ऎसा नहीं लगता कि यहां नगर निगम गंभीरता से काम करती है। जनता को उम्मीद है कि अब शायद कुछ राहत मिले।
बेलगाम अतिक्रमण
भरतपुर में सरकारी भूमि पर अतिक्रमण की समस्या काफी गंभीर है। सीएफसीडी पर इस हद तक अतिक्रमण हो चुके हैं कि कई स्थानों से उसका वजूद ही खत्म हो गया है। अन्य सरकारी जमीनों पर भी भूमाफियाओं की नजर है। सीएफसीडी पर अतिक्रमण हटाने का काम चुनौतीपूर्ण है, जिसे मजबूत इच्छाशक्ति से ही पूरा किया जा सकता है।
ये भी हैं दिक्कतें
स्ट्रीट लाइट व्यवस्था सुचारू नहीं है। सीवरेज कार्य अधरझूल में है और पुराने कुंड सड़ांध मार रहे हैं। कई स्थानों पर फैरोकवर नहीं होने से ये भी दुर्घटना के सबब बने हैं। इन्हें लेकर भी जनता को नए बोर्ड से आस हैं।
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