गुरुवार, 9 अक्तूबर 2014

श्री कृष्ण ने लिया कौन सा अवतार जिससे द्रोपदी की बची लाज

भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए अवतार धारण करते हैं। दु:शासन ने कुरु सभा में द्रोपदी को निर्वस्त्र करने का अथक प्रयास किया किन्तु श्री कृष्ण ने वस्त्रावतार लेकर  द्रोपदी के तन को ढकते हुए उसकी साड़ी को असिमित मात्रा में इतना बढ़ा दिया की हजारों हाथियों का बल रखने वाला दु:शासन भी थक कर चूर हो गया और सभासदों की वासनाभरी आंखे द्रोपदी का स्पर्श नहीं कर सकी।

महाराज द्रुपद ने गुरु द्रोणाचार्य से अपने अपमान का बदला लेने के लिए संतान प्राप्ति के उद्देश्य से यज्ञ किया। यज्ञकुंड से एक कुमारी प्रकट हुई। उसका वर्ण श्याम था तथा वह अत्यंत सुंदरी थी। महाकाली ने अंश रूप से उसमें प्रवेश किया था। उसका नाम कृष्णा रखा गया। द्रुपद की पुत्री होने से वह द्रौपदी भी कहलाई। पूर्व जन्म के प्रभाव से द्रोपदी पांच पांडवों की पत्नी बनी। श्री कृष्ण की कृपा से युधिष्ठिर दिग्विजय हुए और राजसूय यज्ञ करके वे चक्रवर्ती सम्राट बन गए।

 श्री कृष्ण ने लिया कौन सा अवतार जिससे द्रोपदी की बची लाज


दुर्योधन ने शकुनि की सलाह से महाराज युधिष्ठिर को जुआ खेलने के लिए आमंत्रित किया। सब कुछ हारने के बाद वे अपने भाइयों के साथ द्रौपदी को भी हार गए।
दुर्योधन के आदेश से दु:शासन द्रौपदी को रजस्वला अवस्था में उसके केशों को पकड़ कर घसीटता हुआ राजसभा में ले आया। पांडव मस्तक नीचे किए बैठे थे। द्रौपदी की करुण पुकार भी उनके असमर्थ हृदयों में जान नहीं डाल पाई। भीष्म, द्रोण और कृपाचार्य जैसे गुरुजन भी इस अत्याचार को देख कर मौन रहे।

‘‘दु:शासन देखते क्या हो? इसके वस्त्र उतार लो।’’ दुर्योधन ने कहा।

दस सहस्त्र हाथियों के बल वाला दु:शासन द्रौपदी की साड़ी खींचने लगा। ‘‘हे कृष्ण! द्वारकानाथ! दौड़ो! कौरवों के समुद्र में मेरी लज्जा डूब रही है। रक्षा करो। ’’

द्रौपदी ने आर्त स्वर में भगवान को पुकारा। फिर क्या था, दीनबंधु का वस्त्रावतार हो गया। अंत में दु:शासन थक कर चूर हो गया। चाहे दुर्वासा के आतिथ्य-सत्कार की समस्या रही हो, चाहे भीष्म की पांडव-वध की प्रतिज्ञा, श्रीकृष्ण प्रत्येक अवस्था में द्रौपदी की पुकार सुनकर उसका क्षणमात्र में समाधान कर देते थे। द्रौपदी श्री कृष्ण की अनन्य भक्त थीं। भगवान के प्रति दृढ़ विश्वास का ऐसा उदाहरण अन्यत्र दुर्लभ है।

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