रजनीश अग्रवाल/जोधपुर। बाड़मेर के बाद जोधपुर जिले में भी पेट्रोल मिल सकता है। यह दावा है जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के भूगर्भ विज्ञानिकों का।
इन वैज्ञानिकों ने इंटरनेशनल यूनियन ऑफ जियोलॉजिकल कॉरेलेशन (आईयूजीसी) प्रोजेक्ट के तहत मारवाड़ सुपर ग्रुप (सैंड स्टोन और चूना पत्थर) चट्टानों में इडियाकारा जीवाश्म खोजा है। ऎसी चट्टानों में ऑस्ट्रेलिया में पेट्रोल मिला है।
जेएनवीयू के भूविज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो. सुरेश चन्द्र माथुर ने बताया कि पहले 24.8 से 6.5 करोड़ वर्ष आयु (क्रिटेशियस-ईयोसीन काल) वाली चट्टानों से ही पेट्रोल मिलने की धारणा थी। लेकिन ऑस्ट्रेलिया के इडियाकारा क्षेत्र और अन्य देशों में इडियाकारा जीवाश्म (63 से 54.2 करोड़ वर्ष आयु) वाली चट्टानों में पेट्रोलियम मिलने से यह धारणा बदल गई।
यहां मिले जीवाश्म
डॉ. वीरेन्द्र परिहार ने बताया कि जीवाश्मों की खोज जोधपुर से सिंध तक हुई है। ये चट्टानें इडियाकारा काल का सुमद्रीय तट था। इनमें शैलीय चट्टानें सॉर्स रॉक तथा बालू पत्थर पेट्रोल के लिए रिजर्ववायर रॉक हो सकती है। बीकानेर के बाघेवाला में मिला तेल इसको बल देता है। कुछ क्षेत्रों में चूना पत्थरों से हाइड्रोकार्बन की गंध आना इसका प्रमाण है।
बाड़मेर में भी खोजे जीवाश्म
प्रो. सुरेश चन्द्र माथुर ने बताया कि बाड़मेर में उन्होंने अपने शोधार्थियों के साथ मछलियों की 24 प्रजातियों के जीवाश्म खोजे थे। इससे स्थापित हुआ कि वहां भी कभी समुद्री वातावरण रहा था। उसके बाद हुए शोध से ही वहां तेल मिला।
इसलिए है संभावना
प्रो. माथुर ने बताया कि जोधपुर की मारवाड़ सुपर ग्रुप की चट्टानों की भूवैज्ञानिक स्थितियां एवं पारिस्थितिकी ओमान, ऑस्ट्रेलिया, अर्जेटीना, साइबेरिया और वेनेजुएला से मिलती-जुलती है, क्योंकि इडियाकारा काल (63 से 54.2 करोड़ वर्ष) में यह सभी क्षेत्र भारत के नजदीक थे।
इन तरह की चट्टानों में प्रचुर मात्रा में इडियाकारा व इन्फ्राकेम्ब्रियन जीव जतुंओं के मरने के बाद उनका ऑर्गेनिक मैटर उच्च ताप एवं दाब द्वारा परिपक्व होकर हाइड्रोकॉर्बन में परिवर्तित हुआ। ऎसी चट्टानों को चिन्हित करके पेट्रोलियम संभावनाओं का आकलन किया जा सकता है। -
इन वैज्ञानिकों ने इंटरनेशनल यूनियन ऑफ जियोलॉजिकल कॉरेलेशन (आईयूजीसी) प्रोजेक्ट के तहत मारवाड़ सुपर ग्रुप (सैंड स्टोन और चूना पत्थर) चट्टानों में इडियाकारा जीवाश्म खोजा है। ऎसी चट्टानों में ऑस्ट्रेलिया में पेट्रोल मिला है।
जेएनवीयू के भूविज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो. सुरेश चन्द्र माथुर ने बताया कि पहले 24.8 से 6.5 करोड़ वर्ष आयु (क्रिटेशियस-ईयोसीन काल) वाली चट्टानों से ही पेट्रोल मिलने की धारणा थी। लेकिन ऑस्ट्रेलिया के इडियाकारा क्षेत्र और अन्य देशों में इडियाकारा जीवाश्म (63 से 54.2 करोड़ वर्ष आयु) वाली चट्टानों में पेट्रोलियम मिलने से यह धारणा बदल गई।
यहां मिले जीवाश्म
डॉ. वीरेन्द्र परिहार ने बताया कि जीवाश्मों की खोज जोधपुर से सिंध तक हुई है। ये चट्टानें इडियाकारा काल का सुमद्रीय तट था। इनमें शैलीय चट्टानें सॉर्स रॉक तथा बालू पत्थर पेट्रोल के लिए रिजर्ववायर रॉक हो सकती है। बीकानेर के बाघेवाला में मिला तेल इसको बल देता है। कुछ क्षेत्रों में चूना पत्थरों से हाइड्रोकार्बन की गंध आना इसका प्रमाण है।
बाड़मेर में भी खोजे जीवाश्म
प्रो. सुरेश चन्द्र माथुर ने बताया कि बाड़मेर में उन्होंने अपने शोधार्थियों के साथ मछलियों की 24 प्रजातियों के जीवाश्म खोजे थे। इससे स्थापित हुआ कि वहां भी कभी समुद्री वातावरण रहा था। उसके बाद हुए शोध से ही वहां तेल मिला।
इसलिए है संभावना
प्रो. माथुर ने बताया कि जोधपुर की मारवाड़ सुपर ग्रुप की चट्टानों की भूवैज्ञानिक स्थितियां एवं पारिस्थितिकी ओमान, ऑस्ट्रेलिया, अर्जेटीना, साइबेरिया और वेनेजुएला से मिलती-जुलती है, क्योंकि इडियाकारा काल (63 से 54.2 करोड़ वर्ष) में यह सभी क्षेत्र भारत के नजदीक थे।
इन तरह की चट्टानों में प्रचुर मात्रा में इडियाकारा व इन्फ्राकेम्ब्रियन जीव जतुंओं के मरने के बाद उनका ऑर्गेनिक मैटर उच्च ताप एवं दाब द्वारा परिपक्व होकर हाइड्रोकॉर्बन में परिवर्तित हुआ। ऎसी चट्टानों को चिन्हित करके पेट्रोलियम संभावनाओं का आकलन किया जा सकता है। -
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