महाभारत युद्ध के उपरांत युधिष्ठिर ने धृतराष्ट्र के कहने पर युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए सभी वीरों के शवों का सम्मानपूर्वक अंतिम किया। तभी कुंती ने पांडवों को बताया की कर्ण उनका बड़ा भाई था। युधिष्ठिर इस सत्य को जानकर बहुत दुखी हुआ और उसने अपनी मां कुंती को ऐसा श्राप दिया जो आज भी संपूर्ण नारी जाति के लिए अभिशाप है। कुंती को मिले श्राप का असर आज भी भुगत रही है नारी जाति।
महाभारत युद्ध के उपरांत धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर से पूछा," इस युद्ध में कितने लोग वीरगति को प्राप्त हुए हैं?"
युधिष्ठिर ने कहा," इस युद्ध में एक अरब, छ्यासठ करोड़, बीस हजार वीर वीरगति को प्राप्त हुए हैं। इसके अतिरिक्त चौदह हजार अज्ञात हैं और दस हजार एक पैंसठ वीरों का भी कुछ अता-पता नहीं है।"
धृतराष्ट्र बोले," जितने भी वीर महाभारत युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए हैं उन सभी वीरों के शवों का सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार सनातन संस्कृति के अनुसार तुम्हें ही करवाना चाहिए।"
धृतराष्ट्र की बात से सहमत युधिष्ठिर ने अपने पुरोहित धौम्य व सुधर्मा, संजय, विदुर, युयुत्सु आदि को आदेश दिया सभी वीरों के शवों का अंतिम संस्कार विधिपूर्वक करवाएं।
सभी पांडव, धृतराष्ट्र और उनके अन्य सगे-संबंधी गंगा तट पर गए और मृतक वीरों को जलांजलि दी। तभी कुंती के मन में आया की अज्ञात वीरों को मेरे पुत्र विधि- विधान से जलांजलि अर्पित कर रहे हैं तो अपने भाई को क्यों नहीं कर सकते। उसने भरे कण्ठ से पांडवों को बताया कि कर्ण उनका बड़ा भाई था इसलिए उनके प्रति भी आप सभी को जलांजलि अर्पित करनी चाहिए। कर्ण को अपना भाई जान सभी पाण्डवों को बहुत दुख हुआ।
युधिष्ठिर ने कुंती से कहा," अगर आप इस रहस्य से पहले ही पर्दा उठा देती तो संभवत: महाभारत युद्ध को टाला जा सकता था।"
कुंती मौन रही। युधिष्ठिर ने शास्त्रीय विधि के अनुसार कर्ण का भी अंतिम संस्कार किया और उन्हें जलांजलि दी।
सभी वीरों का अंतिम संस्कार करने के उपरांत पांडव, धृतराष्ट्र और उनके अन्य सगे संबंधी गंगा तट पर एक महीने तक रहे। कर्ण को अपना श्रेष्ठ भ्राता जानकर युधिष्ठिर बहुत दुखी थे। प्रतिदिन वहां बड़े-बड़े ऋषियों और महर्षियों का आना-जाना लगा रहता था। सभी ने अपने-अपने तर्क-वितर्क देकर युधिष्ठिर को समझाने का प्रयास किया, लेकिन फिर भी युधिष्ठिर का शोक कम नहीं हुआ।
जब सभी प्रयास विफल हो गए तो माता कुंती ने युधिष्ठिर को समझाने का यत्न किया मगर युधिष्ठिर ने कहा," माता! आपने भ्राता कर्ण और हमारे रिश्ते को रहस्य बनाकर रखा जिस वजह से आज हमें मानसिक क्लेश से गुजरना पड़ रहा है। आज मैं नारी जाति को श्राप देता हूं कि आज से कोई भी स्त्री अपने ह्रदय में कोई भी रहस्य गुप्त नहीं रख पाएगी।"
ऐसे वचन बोल युधिष्ठिर दुखी होकर वन को जाने लगे मगर अर्जुन और भीम ने उन्हें जाने नहीं दिया।
महाभारत युद्ध के उपरांत धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर से पूछा," इस युद्ध में कितने लोग वीरगति को प्राप्त हुए हैं?"
युधिष्ठिर ने कहा," इस युद्ध में एक अरब, छ्यासठ करोड़, बीस हजार वीर वीरगति को प्राप्त हुए हैं। इसके अतिरिक्त चौदह हजार अज्ञात हैं और दस हजार एक पैंसठ वीरों का भी कुछ अता-पता नहीं है।"
धृतराष्ट्र बोले," जितने भी वीर महाभारत युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए हैं उन सभी वीरों के शवों का सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार सनातन संस्कृति के अनुसार तुम्हें ही करवाना चाहिए।"
धृतराष्ट्र की बात से सहमत युधिष्ठिर ने अपने पुरोहित धौम्य व सुधर्मा, संजय, विदुर, युयुत्सु आदि को आदेश दिया सभी वीरों के शवों का अंतिम संस्कार विधिपूर्वक करवाएं।
सभी पांडव, धृतराष्ट्र और उनके अन्य सगे-संबंधी गंगा तट पर गए और मृतक वीरों को जलांजलि दी। तभी कुंती के मन में आया की अज्ञात वीरों को मेरे पुत्र विधि- विधान से जलांजलि अर्पित कर रहे हैं तो अपने भाई को क्यों नहीं कर सकते। उसने भरे कण्ठ से पांडवों को बताया कि कर्ण उनका बड़ा भाई था इसलिए उनके प्रति भी आप सभी को जलांजलि अर्पित करनी चाहिए। कर्ण को अपना भाई जान सभी पाण्डवों को बहुत दुख हुआ।
युधिष्ठिर ने कुंती से कहा," अगर आप इस रहस्य से पहले ही पर्दा उठा देती तो संभवत: महाभारत युद्ध को टाला जा सकता था।"
कुंती मौन रही। युधिष्ठिर ने शास्त्रीय विधि के अनुसार कर्ण का भी अंतिम संस्कार किया और उन्हें जलांजलि दी।
सभी वीरों का अंतिम संस्कार करने के उपरांत पांडव, धृतराष्ट्र और उनके अन्य सगे संबंधी गंगा तट पर एक महीने तक रहे। कर्ण को अपना श्रेष्ठ भ्राता जानकर युधिष्ठिर बहुत दुखी थे। प्रतिदिन वहां बड़े-बड़े ऋषियों और महर्षियों का आना-जाना लगा रहता था। सभी ने अपने-अपने तर्क-वितर्क देकर युधिष्ठिर को समझाने का प्रयास किया, लेकिन फिर भी युधिष्ठिर का शोक कम नहीं हुआ।
जब सभी प्रयास विफल हो गए तो माता कुंती ने युधिष्ठिर को समझाने का यत्न किया मगर युधिष्ठिर ने कहा," माता! आपने भ्राता कर्ण और हमारे रिश्ते को रहस्य बनाकर रखा जिस वजह से आज हमें मानसिक क्लेश से गुजरना पड़ रहा है। आज मैं नारी जाति को श्राप देता हूं कि आज से कोई भी स्त्री अपने ह्रदय में कोई भी रहस्य गुप्त नहीं रख पाएगी।"
ऐसे वचन बोल युधिष्ठिर दुखी होकर वन को जाने लगे मगर अर्जुन और भीम ने उन्हें जाने नहीं दिया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें