नई दिल्ली। एक तरफ जहां पीएम मोदी के नेतृत्व में केंद्र की बीजेपी नीत एनडीए सरकार महात्मा गांधी और उनके सिद्धांतों को अपनाने की कोशिश कर रही है वहीं दूसरी ओर बीजेपी के प्रमुख सहयोगी आरएसएस ने जहर उगला है।
आरएसएस ने अपने मुखपत्र केसरी में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर निशाना साधते हुए महात्मा गांधी के हत्यारे गोडसे को नेहरू से बेहतर करार दिया है।
मुखपत्र कहता है कि गोडसे ने तो महात्मा गांधी पर सीने में गोली मारी थी लेकिन नेहरू ने तो उनके पीछे से "खंजर" मारा था।
आरएसएस के मलयालम मुखपत्र केसरी तो यह कहने से भी नहीं चूका कि गोडसे को महात्मा गांधी को नहीं बल्कि जवाहर लाल नेहरू को मारना चाहिए था।
इस लेख में नेहरू की स्वार्थ भरी राजनीति को देश के बंटवारे का जिम्मेदार करार दिया गया है।
ब्रिटिश राज के तथ्य "गलत"
इस लेख को लोकसभा चुनाव में चलाकुडी से बीजेपी प्रत्याशी बी गोपालकृष्णन ने लिखा है। लेख केसरी के हाल के अंक में प्रकाशित हुआ है।
प्रमुख अंग्रेजी दैनिक "इंडियन एक्सप्रेस" को दिए एक इंटरव्यू में गोपालकृष्णन ने बताया कि अपने लेख से वह इतिहास में अंग्रेजों द्वारा दिए गए गलत तथ्यों को उजागर करना चाह रहे हैं।
आरएसएस के इस लेख में यह साफ किया गया है कि महात्मा गांधी को मारने से आरएसएस का कोई लेना देना नहीं था और यह इल्जाम लगाने के पीछे नेहरू का ही आइडिया था।
इतिहास दोबारा लिखेंगे
गोपालकृष्णन अपने इस लेख में नेहरू को ब्रिटिश का हितैषी बताते हुए कहते हैं कि वह कभी भी महात्मा गांधी के अनुयायी नहीं थे जैसा कि इतिहास में प्रचलित है। असल में नेहरू एक निहायत ही स्वार्थी पुरूष थे जो कि कांग्रेस में टॉप बनना चाहते थे लेकिन गांधी जी की लोकप्रियता के चलते ऎसा संभव नहीं था।
नेहरू ब्रिटिश के प्रिय थे इसलिए इतिहास ऎसे लिखा गया ताकि नेहरू लोकप्रिय नेता की छवि पा सकें। लेकिन अब इतिहास को दुबारा सही से लिखे जाने की जरूरत है।
नेहरू ने छिपाई बंटवारे की बात
बंटवारे का कारण बताते हुए लेख कहता है कि नेहरू को 1942 से ही पता था कि देश का बंटवारा होगा लेकिन उन्होंने यह बात हमेशा महात्मा गांधी से छुपा कर रखी। नेहरू को केवल गांधी टोपी और खादी से मतलब था जो उनके परिवार ने आखिरकार अपना कर खुद को गांधीवादी साबित करने की कोशिश की।
गोडसे नहीं था आरएसएस का मैंबर
लेख में दावा किया गया है कि महात्मा गांधी को मारने वाला नाथूराम गोडसे असल में आरएसएस का सदस्य था ही नहीं। वह तो सावरकर के हिंदू महासभा नामक एक दल का अनुयायी था। -
आरएसएस ने अपने मुखपत्र केसरी में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर निशाना साधते हुए महात्मा गांधी के हत्यारे गोडसे को नेहरू से बेहतर करार दिया है।
मुखपत्र कहता है कि गोडसे ने तो महात्मा गांधी पर सीने में गोली मारी थी लेकिन नेहरू ने तो उनके पीछे से "खंजर" मारा था।
आरएसएस के मलयालम मुखपत्र केसरी तो यह कहने से भी नहीं चूका कि गोडसे को महात्मा गांधी को नहीं बल्कि जवाहर लाल नेहरू को मारना चाहिए था।
इस लेख में नेहरू की स्वार्थ भरी राजनीति को देश के बंटवारे का जिम्मेदार करार दिया गया है।
ब्रिटिश राज के तथ्य "गलत"
इस लेख को लोकसभा चुनाव में चलाकुडी से बीजेपी प्रत्याशी बी गोपालकृष्णन ने लिखा है। लेख केसरी के हाल के अंक में प्रकाशित हुआ है।
प्रमुख अंग्रेजी दैनिक "इंडियन एक्सप्रेस" को दिए एक इंटरव्यू में गोपालकृष्णन ने बताया कि अपने लेख से वह इतिहास में अंग्रेजों द्वारा दिए गए गलत तथ्यों को उजागर करना चाह रहे हैं।
आरएसएस के इस लेख में यह साफ किया गया है कि महात्मा गांधी को मारने से आरएसएस का कोई लेना देना नहीं था और यह इल्जाम लगाने के पीछे नेहरू का ही आइडिया था।
इतिहास दोबारा लिखेंगे
गोपालकृष्णन अपने इस लेख में नेहरू को ब्रिटिश का हितैषी बताते हुए कहते हैं कि वह कभी भी महात्मा गांधी के अनुयायी नहीं थे जैसा कि इतिहास में प्रचलित है। असल में नेहरू एक निहायत ही स्वार्थी पुरूष थे जो कि कांग्रेस में टॉप बनना चाहते थे लेकिन गांधी जी की लोकप्रियता के चलते ऎसा संभव नहीं था।
नेहरू ब्रिटिश के प्रिय थे इसलिए इतिहास ऎसे लिखा गया ताकि नेहरू लोकप्रिय नेता की छवि पा सकें। लेकिन अब इतिहास को दुबारा सही से लिखे जाने की जरूरत है।
नेहरू ने छिपाई बंटवारे की बात
बंटवारे का कारण बताते हुए लेख कहता है कि नेहरू को 1942 से ही पता था कि देश का बंटवारा होगा लेकिन उन्होंने यह बात हमेशा महात्मा गांधी से छुपा कर रखी। नेहरू को केवल गांधी टोपी और खादी से मतलब था जो उनके परिवार ने आखिरकार अपना कर खुद को गांधीवादी साबित करने की कोशिश की।
गोडसे नहीं था आरएसएस का मैंबर
लेख में दावा किया गया है कि महात्मा गांधी को मारने वाला नाथूराम गोडसे असल में आरएसएस का सदस्य था ही नहीं। वह तो सावरकर के हिंदू महासभा नामक एक दल का अनुयायी था। -
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