राजस्थान का धर्म और आस्था से बहुत ही गहरा नाता है। लेक सिटी के नाम से फेमस उदयपुर में एक ऐसी जगह है जहां भगवान शिव से पहले रावण की पूजा की जाती है। यह स्थान है भगवान कमलनाथ महादेव, जो झीलों की नगरी उदयपुर से 80 किमी दूर झाड़ोल तहसील में स्थित है। कहा जाता है, इस मंदिर की स्थापना स्वयं लंकापति रावण ने की थी।
यह वह स्थान है जहां भगवान शिव को खुश करने के लिए रावण ने अपना सिर काट कर अग्नि कुण्ड में अर्पित कर दिया था। इस स्थान के साथ ऐसी मान्यता है कि यदि भगवान शिव की पूजा से पहले रावण की पूजा ना की जाये तो सारा कर्म काण्ड व्यर्थ जाता है अर्थात पूजा का कोई फल नहीं मिलता। कहा जाता है कि मेवाड़पति और वीर योद्धा महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी की लड़ाई के बाद कुछ समय इस स्थान पर व्यतीत किया था।
भगवान कमलनाथ महादेव के इस अद्भुत मंदिर से सम्बंधित एक कथा प्रचलित है- एक बार लंकापति रावण भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत पर पहुंचा और तपस्या करने लगा, उसके कठोर तप से प्रसन्न हो भगवान शिव ने रावण से वरदान मांगने को कहा। रावण ने भगवान शिव से लंका चलने का वरदान मांग डाला। भगवान शिव लिंग के रूप में उसके साथ जाने को तैयार हो गए, उन्होंने रावण को एक शिव लिंग दिया और यह शर्त रखी कि यदि लंका पहुंचने से पहले तुमने शिव लिंग को धरती पर कहीं भी रखा तो मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगा। कैलाश पर्वत से लंका का रास्ता काफी लम्बा था, रास्ते में रावण को थकावट महसूस हुई और वह आराम करने के लिए एक स्थान पर रुक गया। और ना चाहते हुए भी शिव लिंग को धरती पर रखना पड़ा।आराम करने के बाद रावण ने शिव लिंग उठाना चाहा लेकिन वह टस से मस ना हुआ, तब रावण को अपनी गलती का एहसास हुआ और पश्चाताप करने के लिए वह वहीं पर पुनः तपस्या करने लगे। वह भगवान को खुश करने के लिए दिन में एक बार शिव का 100 कमल के फूलों के साथ पूजन करते थे। ऐसा करते-करते रावण को साढ़े बारह साल बीत गए। उधर जब ब्रह्मा जी को लगा कि रावण की तपस्या सफल होने वाली है तो उन्होंने उसकी तपस्या विफल करने के उद्देश्य से एक दिन पूजा के समय एक कमल चुरा लिया।एक कमल के कम होने के कारण रावण के सामने विकट स्थिती उत्पन्न हो गई। इस पर रावण ने कमल की जगह भगवान भोले बाबा को खुद का सिर काट कर अग्नि कुण्ड में समर्पित कर दिया। भगवान शिव रावण की इस कठोर भक्ति से फिर प्रसन्न हुए और वरदान स्वरुप उसकी नाभि में अमृत कुण्ड की स्थापना कर दी। साथ ही इस स्थान को कमलनाथ महादेव के नाम से घोषित कर दिया। उसी समय से यहां रावण की पूजा भगवान शिव से पहले की जाती है।इसी जगह पर भगवान राम ने भी अपने वनवास का कुछ समय बिताया था। यह मंदिर रामायण कालीन है। इस मंदिर की सबसे बड़ी बात यह हे की इस मंदिर में रावण की मूर्ति भी बाबा कमलनाथ भगवान के पास ही लगी है। भक्त गण आते हैं और शिव के साथ यह इस मूर्ति की भी करते हैं। मंदिर में रामायण कालीन भी मुर्तिया लगी हुई है और बाहर बने चित्रों में रावण के सिर चढ़ाते हुए कहानी रूप में चित्रित किया गया है। यहां एक गोमुखी कुण्ड भी है जहां हजारों भक्त अपनी प्यास निर्मल और प्राकृतिक जल से तृप्त करते है। इस गोमुख के जल का प्रवाह भी अति प्राचीन है।
सन 1576 में महाराणा प्रताप और अकबर की सेनाओं के मध्य हल्दी घाटी का संग्राम हुआ था। हल्दीघाटी की लड़ाई के बाद महाराणा प्रताप ने भी यहां अपने पुत्र व पत्नी का साथ समय बिताया था। यहीं पर महाराणा प्रताप ने होली जलाई थी। उसी समय से समस्त झालौड़ में सर्वप्रथम इसी जगह होलिका दहन होता है। आज भी प्रतिवर्ष महाराण प्रताप के अनुयायी झालौड़ के लोग होली के अवसर पर पहाड़ी पर एकत्र होते है जहां कमलनाथ महादेव मंदिर के पुजारी होलिका दहन करते है। जिसकी अग्नि की रौशनी को देख आसपास के 100 से अधिक गावों में होलिका दहन किया जाता है।
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