शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2014

बाड़मेर। टूट रहा है सब्र, अब तो जागो सरकार

बाड़मेर.अकालका दंश भोग रहे सरहदी गांवों के पशुपालकों के सब्र का बांध अब टूट रहा है। आपदा प्रबंधन कार्यों का इंतजार खत्म नहीं हो रहा है। पशुपालक अपने पशुधन बचाने तो युवा रोजगार के लिए पलायन कर गए। पीछे परिवार की देखरेख करने वाला कोई नहीं है। कमजोर आर्थिक स्थिति के चलते एक गाय को बचाना मुश्किल हो रहा है। लंबे अर्से से पेयजल संकट बरकरार है। इस स्थिति में एक-एक दिन गुजारना मुश्किल हो रहा है। आगामी कुछ दिनों में चारा,पानी के पुख्ता इंतजाम नहीं हुए तो बचा हुआ पशुधन भी अकाल के आगोश में समा जाएगा। फिलवक्त लोगों के सामने तीन प्रमुख चुनौतियां है, जिसमें चारा,पानी रोजगार शामिल है। ये तीनों समस्याएं बरकरार है। ग्रामीण समस्याओं का रोना रोते थक चुके है, जनप्रतिनिधियों को परवाह नहीं है। 

टूट रहा है सब्र, अब तो जागो सरकार
      बाड़मेर। करीमका पार में बकरियां की भूख शांत करने के लिए लूंख काटता पशुपालक। 


सरकार की नजरें इनायत नहीं हो रही है। क्षेत्र के सुंदरा, पांचला, पूंजराराज का पार, खबडाला, द्राभा, सरगुवाला, समद का पार, बंधड़ा, रतरेड़ी, नोहडिय़ाला समेत दर्जनों गांव ऐसे है जहां हालात दिन दिन विकट होते जा रहे हैं। करीम का पार के पशुपालक अरबाब खां ने बताया कि सरकार से राहत की उम्मीद छोड़ चुके है। वे अपनी भेड़ बकरियों को पड़ोसी जिले जैसलमेर ले जाएंगे।

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