शुक्रवार, 3 अक्टूबर 2014

यहां रावण नहीं है बुराई का प्रतीक, धूमधाम से होती है पूजा -



नई दिल्ली। बुराई पर अच्छाई की जीत, यानी दशहरा शुक्रवार को पूरे देश में धूमधाम के साथ मनाया जाएगा। हालांकि रावण को बुराईयों का प्रतीक माना जाता है, लेकिन हमारे देश में कई जगह ऎसी भी है, जहां रावण को जलाया नहीं बल्कि उसकी पूजा की जाती है। इतना ही नहीं मध्यप्रदेश में तो बकायदा रावण का ससुराल भी है।
Here Ravana is not the symbol of evil





मध्यप्रदेश के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल मंदसौर में रावण की पूजा की जाती है। मंदसौर नगर के खानपुरा क्षेत्र में रावण रूण्डी नामक स्थान पर रावण की विशालकाय मूर्ति है। कहा जाता है कि रावण दशपुर (मंदसौर) का दामाद था। रावण की धर्मपत्नी मंदोदरी मंदसौर की निवासी थीं। मंदोदरी के कारण ही दशपुर का नाम मंदसौर माना जाता है। उत्तरप्रदेश में गौतमबुद्ध नगर जिले के बिसरख गांव में भी रावण का मंदिर निर्माणाधीन है। मान्यता है कि गाजियाबाद शहर से करीब 15 किलोमीटर दूर गांव बिसरख रावण का ननिहाल था। नोएडा के शासकीय गजट में रावण के पैतृक गांव बिसरख के साक्ष्य मौजूद नजर आते हैं। इस गांव का नाम पहले विश्वेशरा था, जो रावण के पिता विश्रवा के नाम पर पड़ा। कालांतर में इसे बिसरख कहा जाने लगा।

जोधपुर शहर में भी लंकाधिपति रावण का मंदिर है, जहां दवे, गोधा एव श्रीमाली समाज के लोग रावण की पूजा-अर्चना करते हैं। ये लोग मानते हैं कि जोधपुर रावण की ससुराल थी। रावण के वध के बाद रावण के वंशज यहां आकर बस गए थे। उक्त समाज के लोग स्वयं को रावण का वंशज मानते हैं।

महाराष्ट्र के अमरावती और गढ़चिरौली जिले में कोरकू और गोंड आदिवासी रावण और उसके पुत्र मेघनाद को अपना देवता मानते हैं। अपने एक खास पर्व फागुन के अवसर पर वे इसकी विशेष पूजा करते हैं। इसके अलावा, दक्षिण भारत के कई शहरों और गांवों में भी रावण की पूजा होती है। मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले के चिखली ग्राम में ऎसी मान्यता है कि यदि रावण को पूजा नहीं गया तो पूरा गांव जलकर भस्म हो जाएगा इसीलिए वहां भी रावण का दहन नहीं किया जाता बल्कि दशहरे पर रावण की पूजा होती है। गांव में ही रावण की विशालकाय मूर्ति स्थापित है। -

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें