ई दिल्ली। देश में बढ़ रहे यौन अपराध को रोकने औऱ यौनकर्मियों के पुनर्वास के मकसद से वेश्यावृति को वैध करने के लिए फिर से मुहिम तेज हो गयी है। वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता देने के लिए आठ नवंबर को सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पैनल में इस कानून को मान्यता देने के प्रस्ताव पर चर्चा की जाएगी।
राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ललिता कुमारमंगलम ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट की समिति वेश्यावृत्ति को वैध बनाने के प्रस्ताव को राष्ट्रीय रायशुमारी में आठ नवंबर को पेश करेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला 2011 में यौनकर्मियों के पुनर्वास को लेकर दाखिल गई पीआईएल के बाद लिया है। कोर्ट ने 2011 में एनसीडब्ल्यू को समिति की बैठक में शामिल होने का भी निर्देश दिया था। वहीं कुमारमंगलम का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सम्मान पूर्वक जीवनयापन की परिस्थिति मुहैया कराने के लिए अनैतिक आवागमन (निवारण) अधिनियम-1956 (आईटीपीए) में कुछ संभावित संशोधन की सिफारिश की मांग की थी।
ओपिनियन पोल
क्या भारत में वेश्यावृत्ति को वैध करना चाहिए ?
हांनहीं
वहीं महिला आयोग के इस प्रस्ताव का कई अन्य संगठनों ने जमकर विरोध किया है। सेंटर ऑफ सोशल रिसर्च की निदेशक रंजना कुमारी का कहना है कि वेश्यावृत्ति को वैधता प्रदान करना अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की सम्मानजनक कार्य की परिभाषा के खिलाफ है, क्योंकि आइएलओ वेश्यावृत्ति को संकट के कारण देह की बिक्री मानता है।
उन्होंने कहा कि देह व्यापार को अपराध घोषित किए जाने के बजाए हम यौनकर्मियों को शोषण करने वाले लोगों के हाथ में नहीं सौंप सकते हैं। यौनकर्मियों के साथ दुर्व्यवहार करने वाले लोग इन्हें बाजार में खरीदना और बेचना शुरु कर देंगे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें