पुराणों में वर्णित देवी दुर्गा और देवी काली सहित 64 योगिनियों की प्राण प्रतिष्ठा से अलंकृत देश का अकेला मंदिर है काशी का चौसठ्ठी माता मंदिर। सिर्फ आध्यात्मिक दृष्टि से ही नहीं ऐतिहासिक दृष्टि से भी मंदिर का आभामंडल प्रकाशमान है।
पुराणों में वर्णित देवी दुर्गा और देवी काली सहित 64 योगिनियों की प्राण प्रतिष्ठा से अलंकृत देश का अकेला मंदिर है काशी का चौसठ्ठी माता मंदिर। सिर्फ आध्यात्मिक दृष्टि से ही नहीं ऐतिहासिक दृष्टि से भी मंदिर का आभामंडल प्रकाशमान है।
शिल्पकला
गंगा किनारे ऊंची सीढि़यों के पार चौसठ्ठी घाट पर बना 500 साल से भी प्राचीन मंदिर विशुद्ध उत्तर भारतीय शिल्प कला का उत्कृष्ट नमूना है। बावजूद इस वैभव के होली-दीपावली और वार्षिक श्रृंगार महोत्सवों के रौनक की बात छोड़ दें तो देवगृह वर्ष भर प्राय: अलग-थलग ही पड़ा रहता है।
देवी रूप
मंदिर की मुख्य प्रतिमा देवी दुर्गा की है। आठ भुजाओं वाली इस भव्य प्रतिमा के हाथों में असुर शुंभ-निशुंभ के मुंड देवी के रौद्र रूप का दर्शन करते हैं। सामने स्थित देवी काली की प्राचीन प्रतिमा भी शिल्प की दृष्टि से अद्वितीय है। मंदिर की दीवारों और इन दीवारों के विशाल आलों में पुराण वर्णित चौसठ योगिनियों कीप्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं। पत्थरों के क्षरण के चलते इन भित्ति प्रतिमाओं में से कुछ भग्न हो चली हैं। कुछ तो अब प्रतीक रूप में ही शेष हैं। उत्सवों के क्रम में काशी का होलिकोत्सव और मंदिर की परंपरा एक दूसरे के पर्याय हैं।
'मां' के चरणों में गुलाल अर्पित किये बगैर काशीवासी पर्व की पूर्णता ही नहीं मानते। दीपावली को अन्नकूट श्रृंगार और वासंतिक तथा शारदीय नवरात्र में प्रतिदिन अलग मुखौटों का दर्शन देवालय के नियमित उत्सव हैं। देवी का प्राकट्योत्सव
चैत्र पूर्णिमा को मनाया जाता है। अभी हाल ही में हुए जीर्णोद्धार के बाद परिसर और भव्य हुआ है।
कैसे पहुंचें
बंगाली टोला की गली से आगे चलकर चौसट्ठी घाट की ओर मुड़ने वाली गली से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
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