पवित्र भारत भूमि का कण-कण देवी-देवताओं के चरणरज से पवित्र है इसलिए भारत में हर जगह तीर्थ है, परन्तु कुछ तीर्थ ऐसे हैं जो भारत ही नहीं पूरे विश्व की धर्म प्राण जनता को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इन तीर्थों के दर्शन हर वर्ष लाखों स्त्री-पुरुष करते हैं और अपना जीवन सफल बनाते हुए अपनी मनोकामनाओं का मनोवांछित फल पाते हैं। इनमें से ही एक तीर्थ है जम्मू के पास स्थित माता वैष्णो देवी का दरबार। यहां महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली तीन भव्य पिण्डियों के रूप में विराजमान हैं।
चाहे गर्मी हो, सर्दी हो या चाहे बरसात हो। माता वैष्णो देवी के दरबार में चैबीसों घण्टे, 365 दिन हर समय ही भक्तों का मेला लगा रहता है और खासकर नवरात्रों के समय तो भक्तों की भीड़ इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि इस दौरान मां के दर्शन करने के लिए भक्तों को तीन से चार दिन तक का इंतजार भी करना पड़ता है। यहां आस्था से लबरेज धर्मप्राण जनता ही नहीं, बल्कि सभी आयु वर्गों के लोग बच्चे, बूढ़े, जवान,
नवविवाहित युगल, माता के दरबार में दर्शन करने आते हैं। आखिर ऐसा क्या आकर्षण है मां के इस मंदिर में? सम्पूर्ण भारत में मां के मंंदिर तो और भी कई जगह हैं पर मां के इस मंदिर में इतनी रंगत क्यों? इसका कारण है इस मंदिर की भौगोलिक स्थिति का भारतीय वास्तुशास्त्र एवं चीनी वास्तुशास्त्र फेंगशुई के सिद्धान्त के अनुरूप होना।
भारतीय वास्तुशास्त्र के अनुसार पूर्व दिशा में ऊंचाई होना और पश्चिम दिशा में ढलान व पानी का स्रोत होना अच्छा नहीं माना जाता परन्तु देखने में आया है कि ज्यादातर वो स्थान जो धार्मिक कारणों से प्रसिद्ध हैं, चाहे वह किसी भी धर्म से सम्बन्धित हों, उन स्थानों की भौगोलिक स्थिति में काफी समानताएं देखने को मिलती हैं। ऐसे स्थानों पर पूर्व की तुलना में पश्चिम में ढलान होती है और दक्षिण दिशा हमेशा उत्तर दिशा की तुलना में ऊंची रहती है। उदाहरण के लिए ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर उज्जैन, पशुपतिनाथ मंदिर मंदसौर इत्यादि। वह घर जहां पश्चिम दिशा में भूमिगत पानी का स्रोत जैसे भूमिगत पानी की टंकी, कुंआ, बोरवेल, इत्यादि होता है, उस भवन में निवास करने वालों में धार्मिकता दूसरो की तुलना में ज्यादा ही होती है।
वास्तु के सिदधांत:
1 त्रिकुट पर्वत पर स्थित मां का भवन (मंदिर) पश्चिम मुखी है जो समुद्रतल से लगभग 4800 फीट ऊंचाई पर है। मां के भवन के पीछे पूर्व दिशा में पर्वत काफी ऊंचाई लिए हुए है और भवन के ठीक सामने पश्चिम दिशा में पर्वत काफी गहराई लिए हुए है जहां त्रिकुट पर्वत का जल निरन्तर बहता रहता है।
2 भवन की उत्तर दिशा ठीक अंतिम छोर पर पर्वत में एकदम उतार होने के कारण काफी गहराई है। यह उत्तर दिशा में विस्तृत गहराई पूर्व से पश्चिम की ओर बढ़ती गई है।
3 भवन की दक्षिण दिशा में पर्वत काफी ऊंचाई लिए हुए है जहां दरबार से ढ़ाई किलोमीटर दूर भैरव जी का मंदिर है। समुद्रतल से इसकी ऊंचाई 6583 फीट है और यह ऊंचाई लगभग पश्चिम नैऋत्य तक है जहां पर हाथी मत्था है।
4 गुफा का पुराना प्रवेश द्वार जो कि काफी संकरा (तंग) है। लगभग दो गज तक लेटकर या काफी झुककर आगे बढ़ना पड़ता है, तत्पश्चात लगभग बीस गज लम्बी गुफा है। गुफा के अन्दर टखनों की ऊंचाई तक शुध्द जल प्रवाहित होता है। जिसे चरण गंगा कहते हैं। वास्तु का सिद्धान्त है कि जहां पूर्व में ऊंचाई हो और पश्चिम में निरन्तर जल हो या जल का प्रवाह हो वह स्थान धार्मिक रूप से ज्यादा प्रसिद्धि पाता
है।
5 आज से लगभग 26-27 वर्ष पूर्व प्रवेश द्वार संकरा होने के कारण दर्शनार्थियों को आने-जाने में काफी समय लगता था और अन्य यात्रियों को बहुत देर तक प्रतीक्षा करनी पड़ती थी, जिस कारण सीमित संख्या में लोग दर्शन कर पाते थे। तब भवन की उत्तर ईशान कोण वाले भाग में सन् 1977 में दो नई गुफाएं बनाई गई। इनमें से एक गुफा में से लोग दर्शन करने अन्दर आते हैं और दूसरी गुफा से बाहर निकल जाते हैं।
इन दोनों गुफाओं के फर्श का ढाल भी उत्तर दिशा की ओर ही है। यह दोनों ही गुफाएं भवन में ऐसे स्थान पर बनी जिस कारण इस स्थान की वास्तुनुकूलता बहुत बढ़ गई है। फलस्वरूप इस मंदिर की प्रसिद्धि में चार चांद लगे हैं, इन गुफाओं के बनने के बाद इस स्थान पर दर्शन करने वालों की संख्या पहले की तुलना में कई गुना बढ़ गई है और वैभव भी बहुत बढ़ गया है।
फेंगशुई के सिद्धान्त:
फेंगशुई का सिद्धान्त है कि किसी भी भवन के पीछे की ओर ऊंचाई हो, मध्य में भवन हो तथा आगे की ओर नीचा होकर वहां जल हो, वह भवन प्रसिद्धि पाता है और सदियों तक बना रहता है। इस सिद्धान्त में किसी दिशा विशेष का महत्व नहीं होता है।
मां वैष्णो देवी भवन के पूर्व में त्रिकुट पर्वत की ऊंचाई है। मंदिर के अन्दर मां की पिण्ड़ी के आगे पश्चिम दिशा में चरण गंगा है जहां हमेशा जल प्रवाहित होता रहता है। भवन के बाहर सामने पश्चिम दिशा में पर्वत में काफी ढलान है जहां पर पर्वत का पानी निरन्तर बहता रहता है।
इस प्रकार माता वैष्णोदेवी का दरबार वास्तु एवं फेंगशुई दोनों के सिद्धान्तों के अनुकुल होने से माता का यह दरबार विश्व में प्रसिद्ध है। इन्हीं विशेषताओं के कारण ही यहां भक्तों का तांता लगा रहता है, खूब चढ़ावा आता है और भक्तों की मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं।
चाहे गर्मी हो, सर्दी हो या चाहे बरसात हो। माता वैष्णो देवी के दरबार में चैबीसों घण्टे, 365 दिन हर समय ही भक्तों का मेला लगा रहता है और खासकर नवरात्रों के समय तो भक्तों की भीड़ इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि इस दौरान मां के दर्शन करने के लिए भक्तों को तीन से चार दिन तक का इंतजार भी करना पड़ता है। यहां आस्था से लबरेज धर्मप्राण जनता ही नहीं, बल्कि सभी आयु वर्गों के लोग बच्चे, बूढ़े, जवान,
नवविवाहित युगल, माता के दरबार में दर्शन करने आते हैं। आखिर ऐसा क्या आकर्षण है मां के इस मंदिर में? सम्पूर्ण भारत में मां के मंंदिर तो और भी कई जगह हैं पर मां के इस मंदिर में इतनी रंगत क्यों? इसका कारण है इस मंदिर की भौगोलिक स्थिति का भारतीय वास्तुशास्त्र एवं चीनी वास्तुशास्त्र फेंगशुई के सिद्धान्त के अनुरूप होना।
भारतीय वास्तुशास्त्र के अनुसार पूर्व दिशा में ऊंचाई होना और पश्चिम दिशा में ढलान व पानी का स्रोत होना अच्छा नहीं माना जाता परन्तु देखने में आया है कि ज्यादातर वो स्थान जो धार्मिक कारणों से प्रसिद्ध हैं, चाहे वह किसी भी धर्म से सम्बन्धित हों, उन स्थानों की भौगोलिक स्थिति में काफी समानताएं देखने को मिलती हैं। ऐसे स्थानों पर पूर्व की तुलना में पश्चिम में ढलान होती है और दक्षिण दिशा हमेशा उत्तर दिशा की तुलना में ऊंची रहती है। उदाहरण के लिए ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर उज्जैन, पशुपतिनाथ मंदिर मंदसौर इत्यादि। वह घर जहां पश्चिम दिशा में भूमिगत पानी का स्रोत जैसे भूमिगत पानी की टंकी, कुंआ, बोरवेल, इत्यादि होता है, उस भवन में निवास करने वालों में धार्मिकता दूसरो की तुलना में ज्यादा ही होती है।
वास्तु के सिदधांत:
1 त्रिकुट पर्वत पर स्थित मां का भवन (मंदिर) पश्चिम मुखी है जो समुद्रतल से लगभग 4800 फीट ऊंचाई पर है। मां के भवन के पीछे पूर्व दिशा में पर्वत काफी ऊंचाई लिए हुए है और भवन के ठीक सामने पश्चिम दिशा में पर्वत काफी गहराई लिए हुए है जहां त्रिकुट पर्वत का जल निरन्तर बहता रहता है।
2 भवन की उत्तर दिशा ठीक अंतिम छोर पर पर्वत में एकदम उतार होने के कारण काफी गहराई है। यह उत्तर दिशा में विस्तृत गहराई पूर्व से पश्चिम की ओर बढ़ती गई है।
3 भवन की दक्षिण दिशा में पर्वत काफी ऊंचाई लिए हुए है जहां दरबार से ढ़ाई किलोमीटर दूर भैरव जी का मंदिर है। समुद्रतल से इसकी ऊंचाई 6583 फीट है और यह ऊंचाई लगभग पश्चिम नैऋत्य तक है जहां पर हाथी मत्था है।
4 गुफा का पुराना प्रवेश द्वार जो कि काफी संकरा (तंग) है। लगभग दो गज तक लेटकर या काफी झुककर आगे बढ़ना पड़ता है, तत्पश्चात लगभग बीस गज लम्बी गुफा है। गुफा के अन्दर टखनों की ऊंचाई तक शुध्द जल प्रवाहित होता है। जिसे चरण गंगा कहते हैं। वास्तु का सिद्धान्त है कि जहां पूर्व में ऊंचाई हो और पश्चिम में निरन्तर जल हो या जल का प्रवाह हो वह स्थान धार्मिक रूप से ज्यादा प्रसिद्धि पाता
है।
5 आज से लगभग 26-27 वर्ष पूर्व प्रवेश द्वार संकरा होने के कारण दर्शनार्थियों को आने-जाने में काफी समय लगता था और अन्य यात्रियों को बहुत देर तक प्रतीक्षा करनी पड़ती थी, जिस कारण सीमित संख्या में लोग दर्शन कर पाते थे। तब भवन की उत्तर ईशान कोण वाले भाग में सन् 1977 में दो नई गुफाएं बनाई गई। इनमें से एक गुफा में से लोग दर्शन करने अन्दर आते हैं और दूसरी गुफा से बाहर निकल जाते हैं।
इन दोनों गुफाओं के फर्श का ढाल भी उत्तर दिशा की ओर ही है। यह दोनों ही गुफाएं भवन में ऐसे स्थान पर बनी जिस कारण इस स्थान की वास्तुनुकूलता बहुत बढ़ गई है। फलस्वरूप इस मंदिर की प्रसिद्धि में चार चांद लगे हैं, इन गुफाओं के बनने के बाद इस स्थान पर दर्शन करने वालों की संख्या पहले की तुलना में कई गुना बढ़ गई है और वैभव भी बहुत बढ़ गया है।
फेंगशुई के सिद्धान्त:
फेंगशुई का सिद्धान्त है कि किसी भी भवन के पीछे की ओर ऊंचाई हो, मध्य में भवन हो तथा आगे की ओर नीचा होकर वहां जल हो, वह भवन प्रसिद्धि पाता है और सदियों तक बना रहता है। इस सिद्धान्त में किसी दिशा विशेष का महत्व नहीं होता है।
मां वैष्णो देवी भवन के पूर्व में त्रिकुट पर्वत की ऊंचाई है। मंदिर के अन्दर मां की पिण्ड़ी के आगे पश्चिम दिशा में चरण गंगा है जहां हमेशा जल प्रवाहित होता रहता है। भवन के बाहर सामने पश्चिम दिशा में पर्वत में काफी ढलान है जहां पर पर्वत का पानी निरन्तर बहता रहता है।
इस प्रकार माता वैष्णोदेवी का दरबार वास्तु एवं फेंगशुई दोनों के सिद्धान्तों के अनुकुल होने से माता का यह दरबार विश्व में प्रसिद्ध है। इन्हीं विशेषताओं के कारण ही यहां भक्तों का तांता लगा रहता है, खूब चढ़ावा आता है और भक्तों की मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं।
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