रिपोर्ट :- ओमप्रकाश सोनी / बालोतरा
बालोतरा। बालोतरा कस्बे मे आज से 40 वर्ष पुर्व शुरू हुआ कपड़ा ओर टेक्सटाईल उद्योग मारवाड़ की मरू गंगा कही जाने वाली लुणी नदी के लिये अभिषाप बन गया है। बालोतरा मे चलने वाली कपड़ा ईकाईयो का रासायनिक प्रदुषित पानी पिछले चालीस वर्षो से लुणी नदी की उपजाउ कोख को बर्बाद कर चुका है।
बालोतरा,जसोल ओर बिठुजा में चल रही टेक्सटाईल फेक्ट्रियो का प्रदुषित पानी लुणी नदी में डाला जा रहा है। बालोतरा से आगे कच्छ के रण तक बालोतरा का प्रदुषित पानी नदी में पहुच गया हैं। बालोतरा में कपड़ा उद्योग के शुरू होने से पहले तक लुणी नदी बालोतरा उपखंड के लिये खुषहाली का प्रतीक थी। नदी के आस पास के गांवो ओर खेतो में नदी के पानी से सिंचाई होती थी। बाद में नदी में रासायनिक प्रदुषित पानी की आवक शुरू होने पर नदी को पेटा बंजर हो गया जिससे नदी के आस पास की उपजाउ जमीने भी बंजर होती जा रही है। किसानो की नदी को प्रदूषण से बचाने के लिये हाईकोर्ट में दर्ज याचिका पर सन 2006 में कोर्ट ने नदी के किनारे चल रही अवेध ईकाईयो को भी तुड़वाया था। सन 2012 में हाईकोर्ट जोधपूर ने नदी को बचाने के उद्देष्य से नदी में किसी भी प्रकार के प्रदुषित पानी को छोड़ने पर भी रोक लगा रखी है पर प्रषासन की लापरवाही से उस फेसल की पालना नही हो रही है। सरकार ने बालोतरा में बड़े वाटर ट्रीटमेंट प्लांट भी बना रखे है पर टेक्सटाईल उद्योग से होने वाले प्रदुषण को रोकने के लिये गठित वाटर ट्रीटमेंट प्लांट असफल साबित हो रहे है। नदी में बढ रहे प्रदुषण को देखते हुए हाईकोर्ट ने एक फेसला देकर नदी में किसी भी प्रकार के प्रदुषित पानी के डालने पर रोक लगा रखी है पर स्वंय वाटर ट्रीटमेंट प्लांट द्वारा बारिष की आड़ में लुणी नदी में प्रदुषित पानी छोड़ा जा रहा है। साथ ही ओद्योगिक क्षेत्र में रात के समय रासायनिक प्रदुषित पानी को टेंकरो के माध्यम से जेरला रोड के आस पास के खेतो में छोड़ा जा रहा है। बालोतरा में हाईकोर्ट द्वारा दिए गये आदेषो की धज्जियां उड़ रही है ओर प्रदुषण का स्तर बढ रहा है। इस बार अच्छी बारिष होने पर लुणी नदी के आस पास के किसानो ने उम्मीद लगाई थी कि बंजर हो रहे खेतो ओर सूखते भुगभर््ा को राहत मिलेगी। पर किसानो की उम्मीदो पर बालोतरा के टेक्स्टाईल उद्योगो ने पानी फेर दिया है। लुणी नदी के किनारे स्थित वाटर ट्रीटमेंट प्लांट जिसमे बालोतरा की टेक्सटाईल फेक्ट्रियो से आने वाला रासायनिक पानी एकत्रित होता है,उसी प्लांट में से बारिष की आड़ मे लुणी नदी में रासायनिक पानी डाला जा रहा है। नदी में चारो ओर रंगीन तेजाबी पानी पसरा हुआ है। नदी में फेला प्रदुषित पानी नदी की उपजाउ कोख को बर्बाद कर रहा है। नदी में बने पाताल तोड़ कुंओ के माध्यम से रासायनिक प्रदुषण नदी के उपजाउपन को लील रहा है। नदी में प्रदुषण के बढते स्तर ने किसानो की चिंताए बढा दी है। लंबे समय से किसान लुणी नदी में प्रदुषण की जानकारी प्रदुषण नियंत्रण मंडल ओर प्रषासन को दे रहे है पर कोर्ट के आदेषो की अवहेलना करने वालो के खिलाफ सख्त कार्रवाई नही हो रही है। बिठुजा में स्थित वाटर ट्रीटमेंट प्लांट से बारिष की आड़ मे बड़ी तादाद में प्रदुषित पानी को लुणी नदी में छोड़ दिया। गोरतलब है कि सन 2009 में हाईकोर्ट ने किसी भी प्रकार के प्रदुषित पानी को लुणी नदी में छोड़ने पर रोक लगा रखी है पर जिनके कंधो पर प्रदुषण की रोकथाम का जिम्मा है वे ही लोग हाईकोर्ट के आदेषो की धज्जियां उड़ा रहे है। रात के समय ओद्योगिक क्षेत्र के चतुर्थ चरण में प्रदुषित पानी टंेकरो के माध्यम से खेतो ओर सड़को पर डाला जा रहा हैं। क्षेत्र के टेक्सटाईलो उद्योगो द्वारा प्रदुषण के मानको की पालना नही हो रही है। टेक्सटाईल उद्योग की उंची पहुँच ओर राजनेतिक रसुखात मरू गंगा की उपजाउ कोख व किसानो की रोजी रोटी को छलनी कर रही है। लुणी नदी में प्रदुषित पानी डाला जा रहा है पर उच्च न्यायालय के आदेषो को ताक पर रखने वाले लोगो के खिलाफ कार्रवाई नही हो रही है। रासायनिक प्रदुषण की मार झेल रही मरू गंगा को संरक्षण की दरकार है अन्यथा आद्योगिकीकरण की हौड़ नदी के अस्तित्व को ही निगल जायेगी।
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