पवनपुत्र हनुमान जी को चमत्कारिक सफलता देने वाला देवता माना जाता है। श्री हनुमान जी की भक्ति करने वाले को बल, बुद्धि और विद्या सहज में ही प्राप्त हो जाती है। भूत-पिशाचादि भक्त के समीप तक नहीं आते। हनुमान जी जीवन के सभी क्लेशों को दूर कर देते हैं। शास्त्रों के मतानुसार यह अष्ट चिरंजीवी हैं। जहां हनुमान भक्ति से अपने सभी मनोरथ पूरे किए जा सकते हैं। वहीं चमोली जिले के द्रोणागिरी गांव में हनुमान जी की पूजा अर्चना करना तो दूर की बात वहां के लोग इनका नाम तक नहीं लेते।
मान्यता है की इस गांव का जनमानस हनुमान जी से खफा है क्योंकि राम रावण युद्ध के समय जब लक्ष्मण जी मूर्छित थे तो हनुमान जी संजीवनी की तलाश में आए तो संजीवनी बूटी की बजाए द्रोणागिरी पर्वत का एक भाग लेकर ही लंका की तरफ प्रस्थान कर गए। इस घटना को बीते दो युग व्यतीत हो गए हैं लेकिन गांववासी हनुमान जी के इस कर्म को भुला नहीं पाए हैं और उन्हें उनका नाम लेना भी गवारा नहीं है।
जल, जंगल और जमीन के अभाव में पहाड़ों का विचार करना भी असंभव है क्योंकि इन्हीं स्त्रोतों से पृथ्वी की संरचना हो रही है। अत: वहां का आम जन मानस इनकी देवता रूप में पूजा करता है। उनकी इन प्राकृतिक देवताओं पर इतनी अटूट आस्था है की उन्हें लगता है कि यदि हनुमान जी का नाम भी लिया तो पर्वत देवता नाराज हो जाएंगे और वह उनके कोप का भाजन बन जाएंगे।
हनुमान जी के प्रति तो मन में कटुता पाले ही हुए हैं साथ ही प्रभु श्री राम के जीवन पर आधारित राम लीला का मंचन तक नहीं किया जाता क्योंकि मान्यता है की अगर गांव में राम लीला का मंचन किया गया तो कुछ न कुछ अशुभ घटना के घटित होने की आशंका बनी रहती है।
गांव के कुछ स्थानिय लोगों ने बताया कि वर्ष 1980 में द्रोणागिरी में रामलीला का मंचन हुआ था मगर कुछ ऐसी विलक्षण घटनाएं घटने लगी कि मंचन को रोकना पड़ा। इस घटना के पश्चात गांव वासी इतना डर गए की दोबारा से किसी ने भी ऐसी गुस्ताखी करने का साहस नहीं किया।
मान्यता है की इस गांव का जनमानस हनुमान जी से खफा है क्योंकि राम रावण युद्ध के समय जब लक्ष्मण जी मूर्छित थे तो हनुमान जी संजीवनी की तलाश में आए तो संजीवनी बूटी की बजाए द्रोणागिरी पर्वत का एक भाग लेकर ही लंका की तरफ प्रस्थान कर गए। इस घटना को बीते दो युग व्यतीत हो गए हैं लेकिन गांववासी हनुमान जी के इस कर्म को भुला नहीं पाए हैं और उन्हें उनका नाम लेना भी गवारा नहीं है।
जल, जंगल और जमीन के अभाव में पहाड़ों का विचार करना भी असंभव है क्योंकि इन्हीं स्त्रोतों से पृथ्वी की संरचना हो रही है। अत: वहां का आम जन मानस इनकी देवता रूप में पूजा करता है। उनकी इन प्राकृतिक देवताओं पर इतनी अटूट आस्था है की उन्हें लगता है कि यदि हनुमान जी का नाम भी लिया तो पर्वत देवता नाराज हो जाएंगे और वह उनके कोप का भाजन बन जाएंगे।
हनुमान जी के प्रति तो मन में कटुता पाले ही हुए हैं साथ ही प्रभु श्री राम के जीवन पर आधारित राम लीला का मंचन तक नहीं किया जाता क्योंकि मान्यता है की अगर गांव में राम लीला का मंचन किया गया तो कुछ न कुछ अशुभ घटना के घटित होने की आशंका बनी रहती है।
गांव के कुछ स्थानिय लोगों ने बताया कि वर्ष 1980 में द्रोणागिरी में रामलीला का मंचन हुआ था मगर कुछ ऐसी विलक्षण घटनाएं घटने लगी कि मंचन को रोकना पड़ा। इस घटना के पश्चात गांव वासी इतना डर गए की दोबारा से किसी ने भी ऐसी गुस्ताखी करने का साहस नहीं किया।
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