कुष्ण भगवान एक राजकुमार के रूप में पैदा हुए थे। उस समय के सबसे शक्तिशाली राजकुमार के साथ भला कौन पिता अपनी पुत्री का ब्याह नहीं रचाना चाहेगा।
द्रौपदी की बात करें तो उनके लिए तो यह किसी सपने से कम नहीं था कि गोपियों को रिझाने वाला सारे संसार का पालक ग्वाला राजकुमार उनका पति बने।
लेकिन ऎसा हुआ नहीं और कृष्ण ने द्रौपदी को अपनी सखी बना लिया।
इसका कारण खुद कृष्ण हैं क्योंकि वे ऎसा नहीं चाहते थे। हालांकि द्रौपदी के पिता पांचाल नरेश दु्रपद तो खुद कृष्ण को अपना दामाद बनाना चाहते थे लेकिन कृष्ण ने द्रुपद को इसके लिए मना किया।
द्रुपद असल में शक्तिशाली कृष्ण की सहायता से अपने दुश्मन द्रोण को हराना चाहते थे।
कृष्ण ने द्रुपद को बताया है कि उन्होंने अपने शिष्य अर्जुन से द्रौपदी का विवाह निश्चित किया है। शुरू में द्रुपद को यह नागवार गुजरा लेकिन इसे कृष्ण का प्रभाव ही कहिए कि वह इसके लिए तैयार हो गए।
कृष्ण ने द्रौपदी को भी इसके लिए राजी कर लिया। हालांकि कृष्ण ने यह सब पहले ही सोच रखा था कि कौन किससे शादी करेगा लेकिन इसके बावजूद भी सांसारिक तरीके से उन्होंने सबकी भावनाओं का ख्याल रखते हुए अपने काम को अंजाम दिया।
इसलिए हम सभी को भी भगवान की इच्छा पर कोई प्रतिक्रिया न देते हुए उसे सहज भाव से स्वीकार कर लेना चाहिए। -
द्रौपदी की बात करें तो उनके लिए तो यह किसी सपने से कम नहीं था कि गोपियों को रिझाने वाला सारे संसार का पालक ग्वाला राजकुमार उनका पति बने।
लेकिन ऎसा हुआ नहीं और कृष्ण ने द्रौपदी को अपनी सखी बना लिया।
इसका कारण खुद कृष्ण हैं क्योंकि वे ऎसा नहीं चाहते थे। हालांकि द्रौपदी के पिता पांचाल नरेश दु्रपद तो खुद कृष्ण को अपना दामाद बनाना चाहते थे लेकिन कृष्ण ने द्रुपद को इसके लिए मना किया।
द्रुपद असल में शक्तिशाली कृष्ण की सहायता से अपने दुश्मन द्रोण को हराना चाहते थे।
कृष्ण ने द्रुपद को बताया है कि उन्होंने अपने शिष्य अर्जुन से द्रौपदी का विवाह निश्चित किया है। शुरू में द्रुपद को यह नागवार गुजरा लेकिन इसे कृष्ण का प्रभाव ही कहिए कि वह इसके लिए तैयार हो गए।
कृष्ण ने द्रौपदी को भी इसके लिए राजी कर लिया। हालांकि कृष्ण ने यह सब पहले ही सोच रखा था कि कौन किससे शादी करेगा लेकिन इसके बावजूद भी सांसारिक तरीके से उन्होंने सबकी भावनाओं का ख्याल रखते हुए अपने काम को अंजाम दिया।
इसलिए हम सभी को भी भगवान की इच्छा पर कोई प्रतिक्रिया न देते हुए उसे सहज भाव से स्वीकार कर लेना चाहिए। -
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